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……..लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक……..

मेरी आवाज सुनो
मेरी आवाज सुनो
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kaba

 

हज

एक ऐसी अजीमुश्शान इबादत और फ़रीज़ा जिसके हर अमल से इश्क और मोहब्बत और कुरबानी का इज़हार होता है | एक मुसलमान के लिए अपने रब से मोहब्बत का इज़हार करते हुए दुनिया की हर चीज़ को छोडकर सिर्फा और सिर्फ दो बीना सीले हुए कपड़ो में यानी कफ़न पहने सच्चे आशिक बनाकर तमाम तकलीफों और मुसीबतों को खुशी के साथ बर्दाश्त करते हुए अल्लाह की खुशनूदी और रज़ा लेकर उसके दरबार में हाज़िर होता है| उस पाक दरबार में अपने आपको अल्लाह की इबादत में समेट लेता है| हज़ा को आना एक फ़रीज़ा तो है ही | हर मुसलमान इस पाक जगह पर पहोचने के लिए अपनी ज़िन्दगी की कमाई को इकठ्ठा करता है| दुनिया की साड़ी जिम्मेदारियों से फारिग होकर अपने को अल्लाह के सुपुर्द करता है| जो न किसी कर्जदार रहता है| हाजी जब अपने को अहेराम में समेट लेता है उस पर तभी से सारी पाबंदीया शुरू हो जाती हैं|

और हाजी अल्लाह से इन पाबंदीयों को निभाने का वादा करता है|

जैसे की …..

१) अहेराम की हालात में किसी जीव-जंतु को मारना नहीं|

२) शिकार करना नहीं है|

 ३) हरी घास या पेड़ काटने नहीं हैं|

४)खुशबु लगाना नहीं है|

५) नाखुन काटना नहीं है|

 ६) शारीरीक सम्बन्ध बनाना नहीं है|

“लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरीका लाका लब्बैक| इन्नल हमदा व नेअमता लाका वाला मुल्क ला शरीक लाका|

( हाज़िर हु अय अल्लाह आपका कोई शरीक नहीं| मैं हाज़िर हु| सारी तारीफें और सब नेअमते आपही के लिए हैं और सारी दुनिया पर हुकुमत आपकी ही है| हुकुमत में आपका कोई शरीक नहीं|

 “दिया हुआ तो उसी का है मगर हक तो यहाँ है की हक अदा हो जाये”|

 “तूं नवाबा है तो तेरा करमा है वरना, तेरी ताअतों का बदला मेरी बंदगी नहीं|’

की अल्लाह ने मुझ पर अपने करम की इनायत अता की|

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