Menu
blogid : 1412 postid : 337

“क्षितिज” के उस पार या इस पार????भाग-2

मेरी आवाज सुनो
मेरी आवाज सुनो
  • 88 Posts
  • 716 Comments

pri

अंदर जाते ही एक छोटा दरवाजा आया। एक लेडी कोंस्टेबल ने खोला।

अपने सर को झुका कर मैं एक बडी-सी ख़ुली जगह में पहोंच गई। वहाँ बडे बडे आम के पेड थे।

एक बडा पीपल का पेड था। जिसके नीचे सफ़ेद साडी पहनें करीबन 20 से 25 औरतें ईकठ्ठा होकर सब्ज़ी काट रही थीं जो थेलों में रख़्खी हुई थी।

उनके सभी के चहेरों पर प्रश्नार्थ था कि मैं कौन हुं? दूर 10 से 12 बच्चे खेल रहेथे।

कईं महिलाएं छोटे से मंदिर के पास मिलकर भजन गा रहीं थीं। बडे बडे लम्बे चार पांच  कमरों  के आसपास कपडे सुखाये हुए थे।

कुछ कदम पर एक मोटी महिलाकोंस्टेबल कुर्सी से उठकर मुझे नमस्ते कहकर बोली

“मेडम आपको  डीस्पेंसरी जाना है?चलो आपको पहोंचादुं। मैं समझ गई कि उसके हाथ के वोकीटोकी पर मेरे आनेका मेसेज आ चुका था। मैं अपनी डीस्पेंसरी पहोंच गई।

“महाराजा गायकवाड “ के ज़माने कि इस बिल्डींग की छत बहोत उंची थी।

और ये डीस्पेंसरी बीच में ही बनी हुई थी। मेरे साथ एक लेडी डोक्टर और दो नर्स भी थी। सभी ने मुझे आवकार दिया। और मैंने अपनी सीट संभालली मन ही मन ये कहते हुए कि मैं जो

“क्षितिज” को देखना चाहती थी कहीं ये वो तो नहिं? या उससे बिल्कुल विपरीत है?

मुझे देख एकएक करके बहोत सी महिलाएं कुछ न कुछ बहाने मेरे पास आने लगीं।

“दीदी आप अब यहाँ रहोगी? रोज़ आया करोगी? देखो मुझे बुखार आ रहा है, मेरा बच्चा बिमार है जैसे कईं सवालों के साथ आने लगीं। मैं सबको पढने की कोशिश करने लगी। पहले ही दिन मैं ये

जानने लगी कि यहाँ मेरा काम ही मुझे नहिं ले आया पर यहाँ मुझे मेरी संवेदनाएं ले आई हैं

ये कहकर कि “ए रज़िया तुमने तुम्हारी ज़िन्दगी में कइं कविताएं/गज़ल/कहानीयाँ लिखीं पर तुम क्या इस दुनिया से वाकिफ़ थी जो यही ज़मीन पर होते हुए दुनिया से दूर है?

“क्षितिज” के इस पार है।

यहाँ हर उम्र की ज़िन्दगी बसी है 1 साल से लेकर 90 साल तक की। अरे कइं ज़िन्दगीयाँ तो पेट में पनप रही हैं जिसकी माँ को अभी अभी ही सज़ा हुई क्योंकि ोई बच्चा अपनी जवान माँ के साथ

ये सज़ा भूगत रहा है तो कोई महिला अपनी बूढी माँ के साथ।

किसी की भाभी जल गई है तो किसी कि बहु। कोई चोरी के इल्ज़ाम में है तो कोई शराब के।

“फ़िज़ा” जब मुझे देखती है तो उसकी नादान हँसी भी मुझे चुभती है। क्योंकि उसके पापा इस दरवाज़े कि उस पार के दूसरे बडे दरवाज़े में हैं।

“ईद”भी यहाँ मनायेगी। बडे दरवाज़े के बाहर क्या है उसे पता भी नहिं  क्योंकि उसका जन्म यहाँ आनेके बाद हुआ है।

मंजु माँ 85 साल की हैं इल्जाम है उनकी बहु को जलाया गया था। तब वो 75 की रही होंगी। ज़िन्दगी के 10 साल यहाँ बिता चुकी है। एक बेटा पडोस के दरवाज़े के उस पार है। और भी बेटे हैं पर

पूनम बूढी मंजुमाँ का ज़्यादा ख़याल रख़ती है, उनकी वक़्त पर दवा देना। गंदगी साफ़ करना ,ख़ाना लेकर आना वगैरह वगैरह। और फ़िर

“पूनम” बहु से तो अच्छी है कि अब कोई इल्ज़ाम नहिं लगाएगी, वो जो हमदर्द-हमसज़ावार है जो।

“छोटा बाबू” भगाता है

जब बंदर दिवार के ऊस पार चला जाता है तो छोटा सा बाबू अपने तोतले अंदाज में कहता है मैंने बंदल को भगा दिया!!!! यहाँ

ओटो, बस साइकल टेक्षी वगैरह कि आवाज़ तक नहिं आती

पर हाँ यहां ऊपर आसमान में उडते ऎरोप्लेन नज़र आतेहैं। ऎर्पोर्ट यहाँ से कुछ मिल की दूरी पर ही है। बिल्ली के छोटे छोटे तीन बच्चे

यहाँ वहाँ भागते रह्ते हैं।

“कुत्ते”का डर नहिं है।

ऐसी कहीं ज़िन्दगी हैं जो मैं सभी को अपनी ज़बानी कहना चाहुंगी। अभी तो सिर्फ 2% ही बात कह पाई हुं आगे और भी शे’र करती रहुंगी आपके साथ। मैने ये पाया है कि ज़्यादातर महिलाएं

कानुन के तौर तरीकों से अनजान होने के कारन फ़ँस गई हैं। ऐसी महिलाओं कि संख्या  80% है शायद।

……क्षितिज के इस पार

जागरन ज़ंकशन से मेरा रिश्ता सदा बना रहे इसलिये नेट कनेकशन अपने रिहायशी क्वाटर पर लेने कि मैं अभी कोशिश में लगी हुं। उम्मीद करती हुं

मेरा काम ज़रुर बनजायेगा।

मेरा इंतेज़ार करना जल्द वापस आउंगी । हर ज़िन्दगी का एक एक पहलु लेकर…..


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh