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कफस नहीं है कश्मीर

loksangharsha
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कश्मीर घाटी में 42 दिन से सुलग रही आग पहले ही पीर पंजाल और जम्मू क्षेत्र की चेनाब घाटी तथा करगिल क्षेत्र तक फैलनी शुरू हो चुकी है. मोदी और उनके गिरोह के लोग कश्मीर में चल रही छाया युद्ध जैसी घटनाएं का समाधान निकालने में असफल हो रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी साहब समाधान की बजाये बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर अपनी नाकामियों को छिपाने के प्रयास कर रहे हैं. केंद्र व राज्य सरकार व उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पेट्रोल तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की बिक्री रोकने जैसे प्रशासनिक कदमों का इस्तेमाल कर ‘आंदोलन को कुचलने की’ कोशिश कर रही हैं।
जबकि इसके विपरीत आर्मी नेतृत्व की ओर से कहा जा रहा है कि अलग-अलग माइंडसेट वाले लोगों के बीच बातचीत होनी चाहिए. तो अब सवाल यह उठता है कि आखिर हमारे नेता लोग ऐसा क्यों नहीं कर सके. कश्मीर में हिंसा की वारदातें जारी रहने के बीच आर्मी ने शुक्रवार को अपील की थी कि शांति बनाएं रखें. आर्मी की ओर से कहा गया था कि हर किसी को पीछे हटने की जरूरत है, आर्मी ने कहा था कि वर्तमान हालत से निपटने के लिए मिल बैठकर रास्ता निकालने की जरूरत है.
जो काम राजनीतिक नेतृत्व को करना चाहिए उसकी बात हमारी सेना कर रही है और राजनीतिक नेतृत्व कश्मीरी जनता को जेलखाने में बंद समझ कर हर बात मानने को मजबूर कर देना चाहती है. राजनीतिक नेतृत्व के दिमागी दिवालियेपन से कश्मीर घाटी में आन्दोलन तेज पकड़ रहा है. आज वहीँ पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में राष्ट्रपति से मिला पूर्व मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश कांग्रेस समिति के प्रमुख जीए मीर के नेतृत्व में कांग्रेस विधायक, माकपा विधायक एमवाई तारिगामी और निर्दलीय विधायक हाकिम यासीन भी थे।
जब गैर राजनितिक,गैर लोकतान्त्रिक संविधान की प्रस्तावना को न मानने वाले  लोग सरकार पर काबिज हो गए हैं तो लोकतांत्रिक

या राजनीतिक प्रक्रिया बंद होगी और हिटलर या मोसाद की नरसंहारी योजनायें लागू होंगी. यह देश के दुर्भाग्पूर्ण स्तिथि है. कोई भी देश जनता से बनता है, रेखाओं से नहीं लेकिन नरसंहारी गिरोहों ने यह समझ रखा है की जनता को मार पीट कर गुलाम बना कर देश में रखा जा सकता है. हमारी सेना लोकतान्त्रिक प्रक्रिया या राजनितिक प्रक्रिया को समझती है इसीलिए कहती है  कि मिल बैठ कर रास्ता निकालो. जिसके लिए ये नरसंहारी गिरोह तैयार नहीं हैं.

सुमन

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