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नये लाकडाउन का यह दौर मजदूरों, प्रवासी मजदूरों, गरीबों, किसानों, छोटे व्यापारियों, लघु उद्यमियों, वरिष्ठ नागरिकों और बीमारों के लिये और अधिक कठिनाइयों भरा रहने वाला है। प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने की व्यवस्था कर दी गयी होती तो न तो उन प्रवासी मजदूरों की कठिनाइयाँ बढ़तीं न उस राज्य की जहां वे लगभग एक माह से कोरोंटाइन जैसी स्थिति में कैद हैं। उनको लाकडाउन से पहले उनके घरों तक पहुंचा कर 14 दिन तक कोरोंटाइन में रखना मौजूदा व्यवस्था से सस्ता और सुविधाजनक होता। पर तब सरकार चूक गयी और नतीजा सभी के सामने है।
दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूर दोहरी समस्याएँ झेल रहे हैं। उनमें से अनेक फुटकर मजदूर हैं जो लाकड़ाऊन से पहले ही काम से हाथ धो बैठे थे। छोटे बड़े उद्योगों में कार्यरत मजदूरों को काम पर से हटा दिया गया है और उन्हें भुगतान तक नहीं किया। मोदीजी बड़े भोलेपन से बार बार अपील कर रहे हैं कि मजदूरों को काम पर से हटाया न जाये और उन्हें उनके वेतन का भुगतान किया जाये। पर जो उद्योगपति सामान्यकाल में मजदूरों को काम का पूरा मेहनताना नहीं देते वे भला बिना काम के मजदूरों का भुगतान करेंगे यह एक कोरी कल्पना मात्र है। छोटे व्यापारी और उद्यमी तो उन्हें भुगतान करने की स्थिति में भी नहीं हैं।
मजदूरों पर जो धनराशि थी वो अब पूरी तरह खर्च होचुकी है।स्थानीय मजदूर और किसान भी संकट में हैं। हर तरह के रोजगार समाप्त होगए हैं। मनरेगा का काम भी ठप पड़ा है। अलबत्ता फसल की कटाई चालू है जिससे ग्रामीण मजदूर और किसानों को कुछ राहत मिली है। परंतु सरकार के तमाम दाबों के बावजूद औसत गरीब परिवारों तक खाद्य पदार्थ पहुँच नहीं सके हैं। गोदामों में पर्याप्त अनाज भरे होने के दाबे अभावग्रस्तों को और भी मुंह चिढ़ा रहे हैं।मौजूदा सामाजिक व्यवस्था में अधिकांश सीनियर सिटीजन्स अकेले रहने को अभिशप्त हैं। उन्हें तमाम नसीहतें दी जारही हैं। लेकिन उनकी जरूरतों को पूरा करने को कोई सिस्टम तैयार नहीं किया गया। वे दवा, फल सब्जी और दूसरी जरूरत की चीजों को हासिल नहीं कर पारहे। उनमें से कई तो धनाभाव की पीड़ा झेल रहे हैं।
कोरोना के संक्रमितों की संख्या बढ़ने से लाक डाउन बढ़ाना आवश्यक था यह सभी समझ रहे थे। लेकिन इस फैसले को दो दिन पहले भी तो सुनाया जा सकता था। इससे अचानक घोषणा से फैली अफरा- तफरी से बचा जा सकता था। घोषणा से दिन दो दिन पहले राज्य सरकारों को भी बता दिया जाना चाहिए था। लेकिन सभी को दुविधा में रखा गया। इससे मुंबई और सूरत जैसी घटनाएँ सामने आयीं।। छोटे व्यापारियों, उद्यमियों और फुटकर व्यापार करने वालों को राहत की घोषणा कीजिये। नियंत्रित हालातों में उद्योग खुलवाने और प्रवासियों को घर पहुंचाने की व्यवस्था कीजिये।
अतएव समय की मांग है कि आप एक व्यापक और समग्र पैकेज की तत्काल घोषणा करें। सभी की मुफ्त जांच और इलाज की घोषणा कीजिये। मनरेगा सहित सभी कामकाजी लोगों को अग्रिम वेतन भुगतान कराइए और करिए। सभी को बीमा संरक्षण की व्यवस्था करिए। संगठित और असंगठित सभी क्षेत्रों के मजदूरों की नौकरियों और वेतनों की सुरक्षा करिए। सभी के लिये सभी जरूरी चीजें सार्वजनिक प्रणाली से मुफ्त उपलब्ध करने की व्यवस्था कीजिये। वरिष्ठ नागरिकों के लिये विशेष रक्षा दल गठित कीजिये। किसानों की फसलों की कटाई और फसल की सही कीमत दिलाने की गारंटी कीजिये।
मोदी जी खुद ही हर चीज की घोषणा करते हैं। अपने मंत्रिमंडल में भी शायद ही विचार करते हों। अचानक टीवी पर प्रकट होते हैं और एक लच्छेदार भाषण हमारे कानों में उंडेल दिया जाता है। पहले दो बार हमें तंत्र थमाये गये तो इस बार सात मंत्र। पर तंत्र- मंत्र से न पेट भरता है न इलाज होता है। कोरोना से लड़ाई देश के लोग मुस्तैदी से लड़ रहे हैं। पर उन्हें पर्याप्त भोजन, इलाज दवाएं जरूरी सामान और रहने की उचित व्यवस्था भी तो चाहिये। ये सब भाषण से नहीं मिलते। अच्छा होता आप एक समग्र राहत पैकेज के साथ सामने आते।
नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।
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