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‘मां’ जीवन का आधार

Tripti
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मां घर पर हो, तब कहीं भी रहलो, तो जीवन कट जाता है,
पर मां बिन घर में रहने में भी , जीवन नहीं सुहाता है

मां घर पर हो ,तो बेटी ससुराल में भी रह लेती है,
पर मईया बिन, अपने घर में भी रात सिसकियां भरती हैं

मां की ममता का क्या जवाब, चौखट की आहट पढ़ती है
आज उसी चौखट पर खड़े खड़े, पूरा जीवन,दोहरा जाता है

कितना भी आंसू बह जाए ,पर वो चेहरा नज़र ना आता है
घर के कमरे का खाली बिस्तर जैसे उजड़ा सा लगता है

पूजा घर से, चौंका आंगन सब रूठा सा लगता है
दिल के हर कोने में भी बस सन्नाटा लगता है

जन्मदिन , त्योहार सभी , अब सब सूना सा लगता है
आज तुम्हारे बिना , ओ मां, ये संसार अधूरा लगता है

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