तुम कब आए, खबर ही नहीं हुई
तुम कब आए। खबर ही नहीं हुई। हां, कैलेंडर का पहला पन्ना जरूर बता रहा है कि तुम आ गए हो। लेकिन कैसे करुं यकीन। कैसे करुं तुम्हारा स्वागत। पहले तो तुम ऐसे नहीं आया करते थे, बिल्कुल दबे पांव और खामोशी ओढे़। पहले जब तुम आते थे, दसों दिशाएं गवाही दिया करती थीं। फूले नहीं समाती थी प्रकृति। हर तरफ सजा दिया करती थी वंदनवार। बहार ही बहार। हवाओं में होती थी सोलहवें साल सी एक लहर। हंसने लगते थे खेत। धरती ओढ़ लिया करती थी हरे, पीले, लाल, सिंदूरी और न जाने कितने रंगों का परिधान। किसी केसरिया बालम की सतरंगी पगड़ी की तरह। हर फूल के होठों पर होता था तुम्हारा नाम। धूप कुछ चटख, कुछ ज्यादा पीली हो जाया करती थी। नाच उठती थीं फिजाएं और घुल जाता था अजब का खुमार। मधुर-मदिर रस बरसाने लगती थी फूलों से सजी महुआ की डारियां। सांसों में उतर जाती थी सरसों की सुगंध। आम के तंबई कोपलों से झांकतीं नन्हीं बौरों पर गुनगुनाने लगते थे भ्रमर दल। रंग बिखेरने के लिए जवान होने लगते थे टेसू के फूल। तुम्हारे आने पर मंदिरों-चौबारों में उड़ता था, माथे पर सजता था गुलाल। मूर्त रूप ले लेती थीं वीणा वादिनी। पूजी जाती थीं पुस्तकें और लेखनी–या कुंदेंदु तुषार हार धवला। कुलांचे भरने लगता था मन में फागुनी एहसास। भौजाइयों के साथ ठिठोली का आगाज। सज जाती थी बैठकी, गोल-दुगोल। गूंजने लगती थी स्वर लहरियां–इत से निकलीं नवल राधिका, उतर से कुंवर कन्हाई। खेलत फाग परस्पर हिलि-मिलि। शोभा बरनी न जाई। इस बार जब तुम आए हो मैं हूं कंकरीट के जंगल से घिरा हूं। कहीं नजर नहीं आता धरा का सतरंगा आंचल। न महुआ है, ना सरसों और ना आम की बिहंसती डालियां। नजर नहीं आते गेहूं के खेत और न लहराती नवजात बालियां। न वो लोग हैं, जो परस्पर हिलि-मिलि गाते थे तुम्हारा यशगान। अगर कुछ है तो सिर्फ शोर और शोर। कर्कश शोर। मशीनों के बीच भागता आदमी भी बन गया है मशीन और उन्हीं में शामिल मैं भी। इस भागमभाग में कल कैलेंडर की तारीख भी बदल जाएगी। तुम्हारें आने का एहसास भी धूमिल हो जाएगा। जैसे एक कालखंड के बाद नई परंपराओं के आगे पुरानी परंपराएं शनै: शनै: धूमिल होने लग जाती हैं। उन्हीं धूमिल परंपराओं में झलका है आज धूमिल अतीत। आंखों के सामने घूम गए हैं बाग-बगीचे। गांव-घर, शिवाला। माई के हाथ की बनी हरी मटर की कचौरियां, सिवई और मालपुए। साथ ही इन सबसे बिछड़ने का मलाल। अब तुम्ही बताओं कैसे तुम्हारा स्वागत करूं मलाल के साथ। तुम्हीं बताओ वसंत, ऋतुराज? हां, एक गुजारिश है तुमसे। तुम तो मेरे गांव भी पहुंचे होगे। वहीं मेरे आने का करना इंतजार। तुम्हारा प्रवास तो 40 दिन का होता है न ?
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