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मदन मोहन सिंह, नई दिल्ली : आइए आपको लेकर चलते हैं बिहार के सफर पर। मौर्यकाल से लेकर नीतीश युग तक के सफर पर। जहां नजर आता है संस्कृति के आईने में बिहार। अर्थ व्यवस्था की दौड़ में चमत्कार दिखाता बिहार। दिल्ली का प्रगति मैदान। दिन रविवार का इसलिए भीड़ बेहिसाब। पवेलियन बिहार का। प्रवेश का नजारा बिहार जाने वाली ट्रेनों में घुसने की जद्दोजहद जैसा ही। धक्का-मुक्की के साथ प्रवेश करते ही नजर आते हैं एक बडे़ फलक में ठोढ़ी पर हाथ रखे नीतीश कुमार-न्याय के साथ विकास। बिहार कोकिला शारदा सिन्हा के -ले ले आइह हो पिया सेनुरा बंगाल के..मद्धम कर्णप्रिय गीत के साथ गलियारे से शुरू होती बिहार की संस्कृति यात्रा-इंडियन हैंडीक्रॉफ्ट : मैजिक ऑफ गिफ्टेड हैंड्स। मौर्यकाल के सिंहासन और खिलौनों से रूबरू होते हैं। सिल्क और जरदोजी के आधुनिक परिधान इतने आकर्षक कि आपको एक बार छूकर देखने को मजबूर कर देते हैं। लोग पूछ ही बैठते हैं-क्या कीमत है? सिक्की, बांस और काष्ठ की कलाकृतियां भी बिहार की जीवंतता से परिचय कराती हैं। इस दरम्यान अगर विश्व प्रसिद्ध मधुबनी पेंटिंग का जिक्र न आए तो बेईमानी होगी। बीच-बीच में बिहार राज्य पुल निर्माण निगम विकास के सफर में योगदान बताता है तो भ्रष्टाचार पर अंकुश की दिशा में सरकारी पहल नजर आता है-गवर्नमेंट इनिसिएटिव अगेंस्ट करप्शन। गलियारे से आगे बढ़ते हैं तो आदमकद पोस्टर में फिर झलकते हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। साथ में है मिरेकल इकोनॉमी का जिक्र, जो बताता है कि बिहार कैसे देश के सभी राज्यों को पीछे छोड़ता जा रहा है। इसके बाद सामने होता है दूसरा तल। यहां भीड़भाड़ कुछ ज्यादा होती है, खासकर महिला खरीदारों की। बिहार महिला उद्योग समिति पटना के स्टाल पर मधुबनी की मंजू झा एक खरीददार से पूछती हैं-आप खाने में लहसुन का इस्तेमाल करती हैं? कड़ाही में थोड़ा तेल गरम करिए, उसमें लहसुन तल लीजिए फिर इसे डाल दीजिए। उनके हाथ में एक पैकेट था। मैंने पूछा इसमें क्या है, मंजू झा ने बताया चने के साग की पिडि़या। इस स्टाल पर पापड़, तिलौरी, बरी, चने के साग की पिडि़या के साथ-साथ हाथ से बने पीले-लाल जनेऊ भी मिल जाएंगे। आगे एक ऐसे महकमे का स्टाल है जो प्रगति मैदान व्यापार मेले में पहली बार आया है। आकर्षण का केंद्र यह स्टाल बताता है कि कैदियों को स्वावलंबी बनाने का प्रयास तिहाड़ से कुछ कम नहीं है-बिहार के विकास में बंदी और बंदे साथ-साथ। आगे बढ़ने के साथ खत्म होता है गलियारा और फिर सामने होती है सीढ़ी, नीचे उतरने के लिए। यहां स्वागत करता है-मिस्टर लिट्टी वाला। इसके साथ ही खत्म होता है यह सफर और नजर आती है निकास पर भगवान बुद्ध की विशालकाय प्रतिमा। यहां खड़े होकर दो मिनट सोचने के लिए मैं जरूर मजबूर हो गया कि दुनियाभर में बिहार की पहचान भगवान बुद्ध को सबसे पीछे बैठाने के पीछे लॉजिक क्या है, शायद विकास का श्रेय। तभी तो नीतीश कुमार आगे बैठ गए हैं और भगवान बुद्ध पीछे।
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