Menu
blogid : 226 postid : 1296370

कैशलेस जमाना धीरे-धीरे आई बबुआ

सर-ए-राह
सर-ए-राह
  • 45 Posts
  • 1014 Comments
कैशलेस जमाना धीरे-धीरे आई बबुआ
दौर-ए-नोटबंदी। नया शहर और नए लोग। गली-बाजार, नाई-हलवाई, पंसारी-पनवाड़ी सब अनजाने। जेब में नोट। लेकिन खर्च होने पर एटीएम की लाइन में दिन-दिनभर खड़े रहने का डर। फिर भी एटीएम कार्ड में पैसा है, पेटीएम में पैसा है का दंभ। सोचा क्यों न ऊपर से आधा काला, नीचे आधा सफेद नजर आ रहे बालों की डेंट-पेंट करा ली जाए। नदेसर में होटल ताज वाली सड़क पर तीन-चार हाई-फाई नजर आ रहे सैलूनों की ओर कदमताल कर डाली। घुसते ही तनिक झिझकते हुए मेरा सवाल होता-पेटीएम से पेमेंट लेते हो क्या?  जवाब मिलता-‘अभी नहींÓ। फिर एक सवाल..और कार्ड स्वाइप। फिर वहीं जवाब-‘अभी नहींÓ। करीब दो किलोमीटर की चक्कर लगाने के बाद सोचा फिर कभी देखेंगे। चलो लौटते हैं। बगल सड़क एक पान की दुकान पर अड़ीबाजी की अंदाज में जमे लोग। भीड़ है तो नाम होगा, नाम है तो पान भी अच्छा होगा। यही सोचकर मैं भी दुकान की ओर मुड़ गया। एक पान हमहूं क खिलाय द भइया..कह कर तमाशबीन बन गया। बड़ी गंभीर बहस हो रही थी। पनवाड़ी का सवाल था-‘ई कैशलेस, पेटीएम का होत हौÓ…इसको परिभाषित करने में तीन-चार लोग अपना सारा ज्ञान उड़ेले पड़े थे। तब तक एक सेल्समैन ने पॉस निकाला-‘अरे गुरू छोड़ा जायेदा एटीएम-पीटीएम। ई देखा पॉस मशीन। एहमा कार्ड डाला अउर पेमेंट डन।Ó बहस-मुबाहिशे का गवाह बने बनते-बनते दस मिनट बीत गए। पैदल चलने से थकन की झल्लाहट में तनिक जोर से बोला-‘एक पान हमहूं क देबा।Ó इस बार आवाज पनवडि़ए के कानों तक जा पहुंची। पान दिया और मैं घुलाता हुआ आगे चल दिया। एटीएम, पेटीएम को कोसता हुआ। नकदी संकट को रोता हुआ। धीरे-धीरे सोचता हुआ-मोदी मालिक तो कैशलेस का फोकटियां मंतर दे दिये। सुना कितने लोगों ने…आजमाया कितनों ने। अंतत: नकदी खर्च न करने का संकल्प टूट ही गया। रिक्शा पकड़ कर आगे मलदहिया की ओर बढ़ गया गुनगुनाते हुए-एप से आई, स्वाइप से आई। एटीएम से आई, पेटीएम से आई। कैशलेस जमाना धीरे-धीरे आई बबुआ।
कैशलेस जमाना धीरे-धीरे आई बबुआ
दौर-ए-नोटबंदी। नया शहर और नए लोग। गली-बाजार, नाई-हलवाई, पंसारी-पनवाड़ी सब अनजाने। जेब में नोट। लेकिन खर्च होने पर एटीएम की लाइन में दिन-दिनभर खड़े रहने का डर। फिर भी एटीएम कार्ड में पैसा है, पेटीएम में पैसा है का दंभ। सोचा क्यों न ऊपर से आधा काला, नीचे आधा सफेद नजर आ रहे बालों की डेंट-पेंट करा ली जाए। नदेसर में होटल ताज वाली सड़क पर तीन-चार हाई-फाई नजर आ रहे सैलूनों की ओर कदमताल कर डाली। घुसते ही तनिक झिझकते हुए मेरा सवाल होता-पेटीएम से पेमेंट लेते हो क्या?  जवाब मिलता-‘अभी नहींÓ। फिर एक सवाल..और कार्ड स्वाइप। फिर वहीं जवाब-‘अभी नहींÓ। करीब दो किलोमीटर की चक्कर लगाने के बाद सोचा फिर कभी देखेंगे। चलो लौटते हैं। बगल सड़क एक पान की दुकान पर अड़ीबाजी की अंदाज में जमे लोग। भीड़ है तो नाम होगा, नाम है तो पान भी अच्छा होगा। यही सोचकर मैं भी दुकान की ओर मुड़ गया। एक पान हमहूं क खिलाय द भइया..कह कर तमाशबीन बन गया। बड़ी गंभीर बहस हो रही थी। पनवाड़ी का सवाल था-‘ई कैशलेस, पेटीएम का होत हौÓ…इसको परिभाषित करने में तीन-चार लोग अपना सारा ज्ञान उड़ेले पड़े थे। तब तक एक सेल्समैन ने पॉस निकाला-‘अरे गुरू छोड़ा जायेदा एटीएम-पीटीएम। ई देखा पॉस मशीन। एहमा कार्ड डाला अउर पेमेंट डन।Ó बहस-मुबाहिशे का गवाह बने बनते-बनते दस मिनट बीत गए। पैदल चलने से थकन की झल्लाहट में तनिक जोर से बोला-‘एक पान हमहूं क देबा।Ó इस बार आवाज पनवडि़ए के कानों तक जा पहुंची। पान दिया और मैं घुलाता हुआ आगे चल दिया। एटीएम, पेटीएम को कोसता हुआ। नकदी संकट को रोता हुआ। धीरे-धीरे सोचता हुआ-मोदी मालिक तो कैशलेस का फोकटियां मंतर दे दिये। सुना कितने लोगों ने…आजमाया कितनों ने। अंतत: नकदी खर्च न करने का संकल्प टूट ही गया। रिक्शा पकड़ कर आगे मलदहिया की ओर बढ़ गया गुनगुनाते हुए-एप से आई, स्वाइप से आई। एटीएम से आई, पेटीएम से आई। कैशलेस जमाना धीरे-धीरे आई बबुआ।

cashlesslogo

दौर-ए-नोटबंदी। नया शहर और नए लोग। गली-बाजार, नाई-हलवाई, पंसारी-पनवाड़ी सब अनजाने। जेब में नोट। लेकिन खर्च होने पर एटीएम की लाइन में दिन-दिनभर खड़े रहने का डर। फिर भी एटीएम कार्ड में पैसा है, पेटीएम में पैसा है का दंभ। सोचा क्यों न ऊपर से आधा काला, नीचे आधा सफेद नजर आ रहे बालों की डेंट-पेंट करा ली जाए। नदेसर में होटल ताज वाली सड़क पर तीन-चार हाई-फाई नजर आ रहे सैलूनों की ओर कदमताल कर डाली। घुसते ही तनिक झिझकते हुए मेरा सवाल होता-पेटीएम से पेमेंट लेते हो क्या?  जवाब मिलता-‘अभी नहींÓ। फिर एक सवाल..और कार्ड स्वाइप। फिर वहीं जवाब-‘अभी नहींÓ। करीब दो किलोमीटर की चक्कर लगाने के बाद सोचा फिर कभी देखेंगे। चलो लौटते हैं। बगल सड़क एक पान की दुकान पर अड़ीबाजी की अंदाज में जमे लोग। भीड़ है तो नाम होगा, नाम है तो पान भी अच्छा होगा। यही सोचकर मैं भी दुकान की ओर मुड़ गया। एक पान हमहूं क खिलाय द भइया..कह कर तमाशबीन बन गया। बड़ी गंभीर बहस हो रही थी। पनवाड़ी का सवाल था-‘ई कैशलेस, पेटीएम का होत हौÓ…इसको परिभाषित करने में तीन-चार लोग अपना सारा ज्ञान उड़ेले पड़े थे। तब तक एक सेल्समैन ने पॉस निकाला-‘अरे गुरू छोड़ा जायेदा एटीएम-पीटीएम। ई देखा पॉस मशीन। एहमा कार्ड डाला अउर पेमेंट डन।Ó बहस-मुबाहिशे का गवाह बने बनते-बनते दस मिनट बीत गए। पैदल चलने से थकन की झल्लाहट में तनिक जोर से बोला-‘एक पान हमहूं क देबा।Ó इस बार आवाज पनवडि़ए के कानों तक जा पहुंची। पान दिया और मैं घुलाता हुआ आगे चल दिया। एटीएम, पेटीएम को कोसता हुआ। नकदी संकट को रोता हुआ। धीरे-धीरे सोचता हुआ-मोदी मालिक तो कैशलेस का फोकटियां मंतर दे दिये। सुना कितने लोगों ने…आजमाया कितनों ने। अंतत: नकदी खर्च न करने का संकल्प टूट ही गया। रिक्शा पकड़ कर आगे मलदहिया की ओर बढ़ गया गुनगुनाते हुए-एप से आई, स्वाइप से आई। एटीएम से आई, पेटीएम से आई। कैशलेस जमाना धीरे-धीरे आई बबुआ।

———-दौर-ए-नोटबंदी। नया शहर और नए लोग। गली-बाजार, नाई-हलवाई, पंसारी-पनवाड़ी सब अनजाने। जेब में नोट। लेकिन खर्च होने पर एटीएम की लाइन में दिन-दिनभर खड़े रहने का डर। फिर भी एटीएम कार्ड में पैसा है, पेटीएम में पैसा है का दंभ। सोचा क्यों न ऊपर से आधा काला, नीचे आधा सफेद नजर आ रहे बालों की डेंट-पेंट करा ली जाए। नदेसर में होटल ताज वाली सड़क पर तीन-चार हाई-फाई नजर आ रहे सैलूनों की ओर कदमताल कर डाली। घुसते ही तनिक झिझकते हुए मेरा सवाल होता-पेटीएम से पेमेंट लेते हो क्या?  जवाब मिलता-‘अभी नहींÓ। फिर एक सवाल..और कार्ड स्वाइप। फिर वहीं जवाब-‘अभी नहींÓ। करीब दो किलोमीटर की चक्कर लगाने के बाद सोचा फिर कभी देखेंगे। चलो लौटते हैं। बगल सड़क एक पान की दुकान पर अड़ीबाजी की अंदाज में जमे लोग। भीड़ है तो नाम होगा, नाम है तो पान भी अच्छा होगा। यही सोचकर मैं भी दुकान की ओर मुड़ गया। एक पान हमहूं क खिलाय द भइया..कह कर तमाशबीन बन गया। बड़ी गंभीर बहस हो रही थी। पनवाड़ी का सवाल था-‘ई कैशलेस, पेटीएम का होत हौÓ…इसको परिभाषित करने में तीन-चार लोग अपना सारा ज्ञान उड़ेले पड़े थे। तब तक एक सेल्समैन ने पॉस निकाला-‘अरे गुरू छोड़ा जायेदा एटीएम-पीटीएम। ई देखा पॉस मशीन। एहमा कार्ड डाला अउर पेमेंट डन।Ó बहस-मुबाहिशे का गवाह बने बनते-बनते दस मिनट बीत गए। पैदल चलने से थकन की झल्लाहट में तनिक जोर से बोला-‘एक पान हमहूं क देबा।Ó इस बार आवाज पनवडि़ए के कानों तक जा पहुंची। पान दिया और मैं घुलाता हुआ आगे चल दिया। एटीएम, पेटीएम को कोसता हुआ। नकदी संकट को रोता हुआ। धीरे-धीरे सोचता हुआ-मोदी मालिक तो कैशलेस का फोकटियां मंतर दे दिये। सुना कितने लोगों ने…आजमाया कितनों ने। अंतत: नकदी खर्च न करने का संकल्प टूट ही गया। रिक्शा पकड़ कर आगे मलदहिया की ओर बढ़ गया गुनगुनाते हुए-एप से आई, स्वाइप से आई। एटीएम से आई, पेटीएम से आई। कैशलेस जमाना धीरे-धीरे आई बबुआ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh