मैं, लेखनी और जिंदगी
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गज़ल ( अहसास)
हर इंसान के जीवन में ,ऐसे कुछ अहसास होते हैं
भले मुद्दत गुजर जाये , बे दिल के पास होते हैं
जो दिल कि बात सुनता है बही दिलदार है यारों
दौलत बान अक्सर तो असल में दास होते हैं
अपनापन लगे जिससे बही तो यार अपना है
आजकल तो स्वार्थ सिद्धि में रिश्ते नाश होते हैं
धर्म अब आज रुपया है कर्मअब आज रुपया है
जीवन केखजानें अब, क्यों सत्यानाश होते हैं
समय रहते अगर चेते तभी तो बात बनती है
बरना नरक है जीबन , पीढ़ियों में त्रास होते हैं
गज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
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