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गज़ल( जिंदगी जिंदगी)

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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गज़ल( जिंदगी जिंदगी)

तुझे पा लिया है जग पा लिया है
अब दिल में समाने लगी जिंदगी है

कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी
मगर आज भाने लगी जिंदगी है

समय कैसे जाता समझ मैं ना पाता
अब समय को चुराने लगी जिंदगी है

कभी ख्बाब में तू हमारे थी आती
अब सपने सजाने लगी जिंदगी है

तेरे प्यार का ये असर हो गया है
अब मिलने मिलाने लगी जिंदगी है

मैं खुद को भुलाता, तू खुद को भुलाती
अब खुद को भुलाने लगी जिंदगी है

गज़ल( जिंदगी जिंदगी)

मदन मोहन सक्सेना

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