Menu
blogid : 10271 postid : 622812

नबरात्री उत्सब और हम

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
  • 211 Posts
  • 1274 Comments

नबरात्री उत्सब और हम

नब रात्रि के समय में
भारत के घर घर में माता की पूजा होती है
भजन कीर्तन होता है
कहीं कहीं गरबा होता है
तो कहीं दुर्गा पूजा मनाई जाती है
पत्थर की मूर्ति तो पूजी जाती है
लेकिन गली गली शहर शहर में
देश की बेटियां खुद को पूजनीय क्या
खुद को सुरक्षित भी नहीं महसूस कर पाती है
कहीं तथाकथित संतों द्वारा उनका यौन शोषण होता हैं
तो कहीं आसपास के परिचित , सहकर्मी अजबनी
नज़रों से पूरे शारीर का मुआइना करने को आतुर रहतें हैं
कैसी बिध्म्ब्ना है
यहाँ पूजा जाता है शिव लिँग को
और योनियोँ मेँ ठूँस दी जाती है
मोमबत्तियाँ, प्लास्टिक की बोतलेँ ,कंकड़ पत्थर
लोहे की सलाखेँ तलक
और चीर दिया जाता है गर्भ
कर दी जाती है बोटी-बोटी अजन्मे भ्रूण की
और भालोँ पर उछाला जाता है दूधमुँहा नवजात
कही पर नवजात को जहर दिया जाता है
सरेबाजार दौड़ाया जाता है जिस्म नंगा कर के
बता कर के डायन खीँच लिए जाते हैं बस्त्र
और बना कर देवदासी भोगा जाता है बार बार
ये सब हो रहा है जगह जगह
हम आप और सभी इस को सहन किये जा रहे हैं
कभी भाषा की श्लीलता अश्लीलता के चक्कर में
कभी मर्यादा के नाम पर
और कभी सब चलता है की आदत से मजबूर होकर
कभी ये सोच कर क्या फर्क पड़ता है
मेरे साथ या मेरे परिबार के साथ तो नहीं हुआ
सच को ढक कर और तह में छिपाने की
यह सांस्कृतिक विरासत अपने पास रखने को मजबूर होकर
केबल रस्म अदायगी कर अपना फर्ज ,भक्ति निभा रहें हैं
सबाल है
हमारी ऐसी भक्ति से कौन प्रशन्न होगा
माँ दुर्गा , हमारे समाज की बेटियां या फिर हम सब
समय की मांग है कि
हम सब नयी परम्पराओं को जन्म दें
जिससे देश कि बेटियां पूजनीय महसूस करें
ना कि मूर्तियाँ

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply