Menu
blogid : 10271 postid : 422

ग़ज़ल (हालात)

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
  • 211 Posts
  • 1274 Comments

दीवारें ही दीवारें नहीं दीखते अब घर यारों
बड़े शहरों के हालात कैसे आज बदले है.

उलझन आज दिल में है कैसी आज मुश्किल है
समय बदला, जगह बदली क्यों रिश्तें आज बदले हैं

जिसे देखो बही क्यों आज मायूसी में रहता है
दुश्मन दोस्त रंग अपना, समय पर आज बदले हैं

जीवन के सफ़र में जो पाया है सहेजा है
खोया है उसी की चाह में ,ये दिल क्यों मचले है

समय ये आ गया कैसा कि मिलता अब समय ना है
रिश्तों को निभाने के अब हालात बदले हैं

ग़ज़ल प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply