मैं, लेखनी और जिंदगी
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दुनिया में जिधर देखो हजारो रास्ते दीखते
मंजिल जिनसे मिल जाए बह रास्ते नहीं मिलते
किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
मिलते हाथ सबसे हैं दिल से दिल नहीं मिलते
करी थी प्यार की बाते कभी हमने भी फूलो से
शिकायत सबको उनसे है क़ी उनके लब नहीं हिलते
ज़माने की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
ख्बाबो में भी टूटे दिल सीने पर नहीं सिलते
कहने को तो ख्बाबो में हम उनके साथ रहते हैं
मुश्किल अपनी ये है कि हकीक़त में नहीं मिलते
किस को गैर कहदे हम और किसको मान ले अपना
मदन मोहन सक्सेना
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