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दामिनी ,अमानत या फिर कोई

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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Wednesday, January 16, 2013

दामिनी ,अमानत या फिर कोई और
क्या फर्क पड़ता है नाम से
हर लड़की होती है
घर आँगन की दुलारी, परिवार की प्यारी,
सबका मन मोहने वाली, सबका दुःख बाँटने वाली…
मात-पिता की लाडली, भाई की दुलारी
जब किसी दामिनी का हुआ
चलती बस में बलात्कार
तो दिखती है
पुलिस प्रशाशन की नाकामी और हार
उसके बाद
युबा और युब्तियों की हमदर्दी और न्याय के लिए प्रदर्शन
सोनिया ,राहुल, शिंदे ,शीला ,पुलिस कमिश्नर का निन्दनीय आचरण
हमेशा की तरह आन्दोलन को दवाने की साजिश
पुलिस का ब्यबहार गैरजरूरी और शरमशार
भारत और दिल्ली की जनता एक बार फिर से लाचार .
मैं भी तीन तीन बेटियों का पिता हूँ ,शिंदे मनमोहन और आर पी एन सिंह का ये कहना
हर मौके की तरह इस बार भी मनमोहन का मौन रहना
पहले तो गाँव में
खेतों खलिआनों में ,
अकेले जाने में डर लगता था
किन्तु अब तो
हद ही हो गयी
दामिनी का बलात्कार ही नहीं हुआ
लगता है कि
हमारे संस्कार , ब्यबस्था और जीवन दर्शन का ही बलात्कार हो गया
क्यों दिल्ली में आज माँ पिता को डर लगता है
जब लडकी बाहर जाती है
क्या पता कि एक दिन यह मासूम कली दरिंदो के हाथ लग जाये
मेरी प्यारी ,दुलारी मासूम कली
उनकी हवस का शिकार न बन जाए
जब जब ऐसी शर्मनाक घटना होती है
पबित्र गंगा हर घर में रोती है
दिल्ली की हर एक यमुना डरी डरी होती है
क्यों फिर सरस्वती खून के आंसू बहाती है
और पवित्रता के संगम का क़त्ल करके
क्यों यह दरिन्दे शराब में नहाते हैं
क्या इन्हें कानून का खौफ़ नहीं है
या फिर इनको स्त्री का सम्मान करने का संस्कार ही नहीं मिला
इसके लिए कौन दोषी है
हम ,आप,कानून या फिर समाज
या फिर इस देश के रहनुमाँ ,कानून बनाने बाले या कोई और
आज मंथन करना जरुरी है कि
हम लोंग किस तरफ जा रहें है
किसी ने सच ही कहा है कि
कन्या पहले देवी है,
फिर बेटी ,बहन ,पत्नी और माँ है,
अब गंगा की पवित्रता का अपमान न करो
घर घर में गंगा है , उसका आदर सम्मान करो
कोई पुरुष अकेला नहीं हैं उसकी बेटी है ,बहन है ,माँ है
आखिर क्यों नहीं सोचतें है ऐसा शर्मनाक कार्य करने से पहले
कि मेरी अपनी के साथ
कल को खुदा न करें ऐसा हो जाये
तो मुझ पर
मेरी अपनी पर क्या गुजरेगी
आखिर क्यों आज देखना पड़ता है .
अब करा करता है शोषण ,आजकल बीरों का पोरुष
मानकर बिधि का विधान, जुल्म हम सब सह गए हैं
और जुल्म, अन्याय को देख कर हम सब खामोश क्यों हो जाते हैं .
सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है
अब समय आ गया है की
हम सभी अपने कल को बदलने के लिए प्रयासरत हों .

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

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