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सोच पर तरस

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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सोच पर तरस

तरस आता है
मुझे उन लोगों की सोच पर
जो लोग आंतकबादी की पहचान भी धर्म से करने लगते हैं
और
संतों के दुराचरण में भी
हिन्दू धर्म और सनातन धर्म को बीच में ले आते हैं
धर्म लोगों को
आपस में मिलजुल कर रहने की सीख देता है
आतंक ,यौनाचार
करने बाला सिर्फ
मानबता का अपराधी है
उसका कोई धर्म नहीं होता है

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

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