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हे ईश्वर

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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हे ईश्वर
आखिर तू ऐसा क्यूँ करता है अशिक्षित ,गरीब ,सरल लोग
तो अपनी ब्यथा सुनाने के लिए
तुझसे मिलने के लिए ही आ रहे थे
बे सुनाते भी तो भला किस को
आखिर कौन उनकी सुनता ?
और सुनता भी
तो कौन उनके कष्टों को दूर करता ?
उन्हें बिश्बास था कि तू तो रहम करेगा
किन्तु
सुनने की बात तो दूर
बह लोग बोलने के लायक ही नहीं रहे
जिसमें औरतें ,बच्चें और कांवड़िए भी शामिल थे
जो कात्यायनी मंदिर में जल चढ़ाने जा रहे थे
क्योंकि उनका बिश्बास था कि
सावन का आखिरी सोमवार होने से शिब अधिक प्रसन्न होंगें।
कभी केदार नाथ में तूने सीधे सच्चें लोगों का इम्तहान लिया
क्योंकि उनका बिश्बास था कि चार धाम की यात्रा करने से
उनके सभी कष्टों का निबारण हो जायेगा।
और कभी कुम्भ मेले में सब्र की परीक्षा ली
क्योंकि उनका बिश्बास था कि गंगा में डुबकी लगाने से
उनके पापों की गठरी का बोझ कम होगा
उनको क्या पता था कि
भक्त और भगबान के बीच का रास्ता
इतना काँटों भरा होगा
हे इश्वर
आखिर तू ऐसा क्यों करता है।
उने क्या पता था कि
जीबन के कष्ट से मुक्ति पाने के लिए
ईश्वर के दर पर जाने की बजाय
आज के समय में
चापलूसी , भ्रष्टाचार ,धूर्तता का होना ज्यादा फायदेमंद है
सत्य और इमानदारी की राह पर चलने बाले की
या तो नरेन्द्र दाभोलकर की तरह हत्या कर दी जाती है
या फिर दुर्गा नागपाल की तरह
बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
हे इश्वर
आखिर तू ऐसा क्यों करता है।

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