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ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )

मैं, लेखनी और जिंदगी
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ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )

सुबह सुबह अफ़रा तफ़री में फ़ास्ट फ़ूड दे देती माँ तुम
टीचर क्या क्या देती ताने , मम्मी तुमको क्या मालूम

क्या क्या रूप बना कर आती ,मम्मी तुम जब लेने आती
लोग कैसे किस्से लगे सुनाने , मम्मी तुमको क्या मालूम

रोज पापा जाते पैसा पाने , मम्मी तुम घर लगी सजाने
पूरी कोशिश से पढ़ते हम , मम्मी तुमको क्या मालूम

घर मंदिर है ,मालूम तुमको पापा को भी मालूम है जब
झगड़े में क्या बच्चे पाएं , मम्मी तुमको क्या मालूम

क्यों इतना प्यार जताती हो , मुझको कमजोर बनाती हो
दूनियाँ बहुत ही जालिम है , मम्मी तुमको क्या मालूम

ग़ज़ल ( मम्मी तुमको क्या मालूम )
मदन मोहन सक्सेना

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