मैं, लेखनी और जिंदगी
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ग़ज़ल(मन करता है)
लल्लू पंजू पप्पू फेंकू राबड़ी को अब देख देख कर
अब मेरा भी राजनीती में मन आने को करता है
सच्ची बातें खरी खरी अब किसको अच्छी लगती हैं
चिकनी चिपुडी बातों से मन बहलाने को करता है
रुखा सूखा गन्दा पानी पीकर कैसे रह लेते थे
इफ्तार में मुर्गा ,बिरयानी मन खाने को करता है
हिन्दू जाता मंदिर में और मुस्लिम जाता मस्जिद में
मुझको बोट जहाँ पर मिल जाए, मन जाने को करता है
मेरी मर्जी मेरी इच्छा जैसा चाहूँ बैसा कर दूँ
जो बिरोध में आये उसको, मन निपटाने को करता है
ग़ज़ल प्रस्तुति
मदन मोहन सक्सेना
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