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अमेरिका-रूस के बीच डगमगाती भारतीय कूटनीति

Desh-Videsh
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‘हम कई मौकों पर पाकिस्तान में मौजूद आतंकवाद से गंभीर खतरे के मुद्दे पर चर्चा कर चुके हैं। पाकिस्तानी लोग इन आतंकी गतिविधियों का बहुत दफा शिकार हो चुके हैं। अमेरिका और पाकिस्तान का अहम संबंध है। यह क्षेत्र में हमारी सुरक्षा चिंताओं और आतंकी समूहों को खत्म करने से जुड़ा हुआ है। भारत और अमेरिका के बीच भी काफी अहम संबंध है। साथ ही प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच भी दोस्ताना संबंध हैं।Ó गोवा में ब्रिक्स-बिम्सटेक देशों का सम्मेलन संपन्न होने के तुरंत बाद ह्वाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट का उक्त बयान अमेरिका के रुख को समझने-जानने के लिए काफी है। यह कहा जाता रहा है कि अमेरिका कभी भी भारत का खुलकर साथ नहीं दे सकता। वह तब तक के लिए ही भारत के साथ है, जब तक उसका ऐसा करने से व्यावसायिक हित सध रहा हो। ह्वाइट हाउस से जारी बयान ने इसकी पुष्टि कर दी। गोवा में भारत-रूस के बीच हुए द्विपक्षीय बैठक के दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि एक पुराना दोस्त दो नये दोस्तों से अच्छा होता है। मोदी का इशारा अमेरिका की ओर था या रूस की ओर, कहा नहीं जा सकता लेकिन शायद अमेरिका ने इस कहावत को अपने लिए समझा। भारत की रूस से दोस्ती समय की कसौटी पर खरी रही है जबकि अमेरिका नया दोस्त बना है। रूस के सदंर्भ में प्रधानमंत्री की बातों का अर्थ होगा कि वह भारत जैसे अपने पुराने मित्र की जगह पाकिस्तान या चीन को तरजीह न दे। अमेरिका पाकिस्तान पर नरेंद्र मोदी के बयान से दूरी बनाने में लगा है। नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद की जननी करार दिया था। वहीं रूस ने भी चीन से अपने संबंध सशक्त बनाने शुरू कर दिये हैं। रूस की चिंता सीरिया है। गोवा में वह चाहता था कि सीरिया पर भारत उसके पक्ष का खुलकर समर्थन करे। जब भारत ने ऐसा नहीं किया तो उसने भी उड़ी या पठानकोट पर पाकिस्तान का विरोध नहीं किया। चीन दक्षिणी चीन सागर पर झुकने को तैयार नहीं है। रूस साथ दे रहा है। स्वाभाविक है, रूस और चीन साझेदार बनने की ओर हैं। वियतनाम के साथ संबंधों को नई दिशा देने से भी भारत के खिलाफ चीन की त्योरियां चढ़ी हुई हैं। भारत में चीनी उत्पादों के बहिष्कार से चीन बौखला गया है। ऐसे में भारत के समक्ष बड़ी दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो गई है। न अमेरिका साथ, न रूस और चीन। तीनों महाशक्तियां हैं। संतोष की बात इतनी है कि बिम्सटेक के बहाने भारत ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कामयाब कोशिश की। बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार, नेपाल और भूटान भारत के साथ दिखे।

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