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दोनों बाहुबली हैं, एक निर्दल अनंत सिंह, दूसरा राजद का अहम चेहरा मो. शहाबुद्दीन। कभी अनंत सिंह जदयू के चहेते थे, अब हाशिए पर धकेल दिए गए हैं। शहाबुद्दीन राजद के ‘ब्लू आइडÓ(पसंदीदा) ब्वॉय बने हुए हैं। क्या इसपर ही जदयू व राजद के चाल, चरित्र, चेहरे को जाना-समझा जा सकता है? शहाबुद्दीन पर हत्या से लेकर रंगदारी तक के 63 केस चल रहे हैं, फिर भी राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद पूरे दमखम से शहाबु के साथ हैं। भागलपुर जेल से निकलते ही शहाबुद्दीन ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सियासी गोले दागे तो अपने आका की तारीफ में पुल बांध दिए। यहां तक कहा, नरक जाएंगे तो भी साथ जाऊंगा। लालू ने समर्थन किया। कहा कोई भी नेता अपने राजनीतिक दल के मुखिया की तारीफ करता है। इसपर मीडिया क्यों व्याकुल हुआ जा रहा है? दूसरी ओर अनंत सिंह हैं। बीते विधानसभा चुनाव से पूर्व जैसे ही नीतीश कुमार पर आरोप लगने लगे कि उन्हें भी अन्य दलों की तरह राजनीति के अपराधीकरण से परहेज नहीं है, वह अपने दामन को पाकसाफ करने में जुट गए। राजद से महागठबंधन था। अनंत के धुर विरोधी लालू यादव ने भी नीतीश पर दबाव बनाया कि वह मोकामा के अपने विधायक से पल्ला झाड़ लें। अनंत जदयू के टिकट पर मोकामा से दो बार विधायक रह चुके थे। 10 साल से नीतीश के खासमखास थे। 2015 में विस चुनाव के समय छेड़खानी के आरोप में मोकामा के एक युवक की हत्या हो गई। युवक यादव जाति का था। आरोप अनंत सिंह पर लगा। लालू ने फिर नीतीश का घेरा। कहा, जल्दी अनंत को चलता करो, नहीं तो यादव वोटबैंक बिदक जाएगा। अब इसे राजनीति सरोकार कहें, मौकापरस्ती या अवसरवाद, नीतीश ने एक झटके में अनंत को किनारे लगा दिया, सारे पुराने केस खोल दिए और अपने ही विधायक को सलाखों के पीछे डाल दिया। इसी अनंत सिंह की जब नीतीश कुमार को जरूरत थी तो वह वह हाथ जोड़ खड़े रहते थे। लगभग दंडवत। साल भर के करीब होने को है, अनंत को एक-एक कर सारे मामलों में जमानत मिलने लगी तो राजद मुखिया ने फिर दबाव बनाया। नीतीश शासन ने अनंत सिंह को जेल से निकलने को रोकने के लिए आनन-फानन में क्राइम कंट्रोल एक्ट लगा दिया। अनंत किसी मामले में सजायाफ्ता नहीं हैं। वहीं शहाबुद्दीन जिन्हें निचली अदालत से उम्रकैद की सजा मिली है, जिनके बाहर निकलने से कहा जा रहा है, सिवान दहशतजदा है, पर सीसीए लगाने का नीतीश कुमार का कथित सुशासन जुर्रत नहीं कर सका। मतलबपरस्त कौन है, लालू या नीतीश?। अनंत सिंह व नीतीश का रिश्ता पुराना है, तब का जब नीतीश सांसद हुआ करते थे। तब नीतीश को अनंत की जरूरत थी। ऐसा नहीं कि उस समय अनंत साधु-संत थे। खुलेआम एके-47 लेकर मंच पर नर्तकियों के साथ ठुमके लगाते थे। पटना से लेकर मोकामा तक थर्राता था। फिर भी नीतीश की पसंद थे। शहाबुद्दीन-लालू के रिश्ते भी 26 साल पुराने हैं लेकिन इस जोड़ में कभी खरोंच तक नहीं आयी। लालू खुलेआम सिवान जेल तक में जाकर शहाबुद्दीन से मिलते रहे। शायद यही लालू व नीतीश में फर्क है। अंत में एक घटना की संदर्भित याद। राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री रहते अनंत सिंह के मोकामा स्थित पुश्तैनी आवास को घेरकर पुलिस ने गोलियां बरसाई थी। पांच जिलों के पुलिस ने रात भर फायङ्क्षरग की थी। इसमें अनंत के कई लोग मारे गये थे। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में ही पहली बार जदयू के टिकट पर अनंत सिंह विधानसभा पहुंचे थे।
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