- 7 Posts
- 1 Comment
द्वितीय विश्व युदध के समय बि्रटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल को दो लोगों की मौत का बेसब्री से इंतजार था। इनमें पहला शख्स एक तानाशाह था, जिसके नाम का आतंक समूचे विश्व में था और जिसने अमेरिका, रूस और इंग्लैंड की संयुक्त सेना की चूलें हिलाकर रख दी थी। वह जर्मनी का चांसलर हिटलर था। जबकि दूसरा शख्स जिसके बारे में खींझकर चर्चिल ने कहा था आखिर वह बुडढा मरता क्यों नहीं, गांधी थे।
इतिहास में दोनों ही ने अपने लिए एक बड़ा स्थान सुरक्षित कर रखा है और वर्षों से लोग इनकी तुलना करते आ रहे हैं। कभी यह तुलना आज का आदर्श कौन तो कभी इस रूप में कि दोनों में से किसने इतिहास को सर्वाधिक प्रभावित किया, होती है। क्या वाकई गांधी और हिटलर के बीच कोई तुलना हो सकती है।
देखा जाए तो दोनों ही में कई समानताएं थीं। दोनों अपने सिद्धातों के पक्के थे। हिटलर उग्र राष्टवादी और नस्लवादी विचारधारा को मानता था तो गांधी सत्य, अहिंसा, त्याग और रामराज के सिद्धांत को। दोनों की ही सत्य के बारे में अपनी अलग अवधारणा थी। हिटलर झूठा सच की अवधारणा को मानते थे तो गांधी सत्य के सापेक्षिक सिद्धांत को। हिटलर अपने सलाहकार गोएबल्स के इस विचार से पूरी तरह सहमत थे कि अगर एक झूठ को सौ बार बोला जाए तो वह सत्य हो जाएगा और जर्मनी का चांसलर बनने के लिए उन्होंने इसका प्रयोग भी किया। वहीं भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के दोरान गांधी जी ने भी अपने सत्य के सिद्धांत का प्रयोग किया। इस सिद्धांत के अनुसार सत्य परिसिथतिजन्य है। इस कारण परिसिथतियों के बदलने के साथ ही सत्य भी रूपांतरित हो जाता है। असहयोग खिलाफत आंदोलन में सत्य कुछ था और सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन में कुछ और रहा। भारत छोड़ो आंदोलन में तो गांधी जी ने आंदोलनकारियों की हिंसा की निंदा तक करने से मना कर दी। जबकि चौरीचौरा में हुई र्हिंसा की एक घटना के बाद उन्होंने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था।
विश्व के ये दोनों नेता जिददी थे। हिटलर ने अपनी जिद के कारण जर्मनी को मिटने के लिए छोड़ दिया, जहां से वह देश विकास के दौर में दो सौ साल पीछे छूट गया। वहीं, गांधी जी के जिद के कारण ‘बा कस्तुरबा गांधी की जान चली गई। भारत छोड़ो आंदोलन के समय वे गांधी जी के साथ आगा खां पैलेस में कैद थीं और अनशन पर थीं। वह बुरी तरह बीमार पड़ चुकी थीं। डाक्टरों ने कहा कि इनकी जान पेनिसिलीन इंजेक्शन से बच सकती है। हवाई जहाज से दवाई मंगाई गई लेकिन गांधी जी ने मना कर दिया। वे प्राकृतिक चिकित्सा और शरीर के साथ हिंसा नहीं के सिद्धांत पर अटल रहे।
विश्व के दोनों नेताओं को अपनी मातृभूमि से बेहद प्यार था। हिटलर जर्मनी में रूसी सेना के अधिकार को बर्दाश्त नहीं कर सके तो गांधी भारत के विभाजन को। आखरी दम तक उनकी कोषिष भारत-पाक को मिलाने की रही। अगर उनकी हत्या नहीं हुई होती तो अगले चार-पांच दिनों में वह कराची जाने वाले थे।
दोनों अपनी जिंदगी में जो बनना चाहे, नहीं बन पाए। हिटलर चित्रकार बनना चाहते थे, पर वहां कुछ ज्यादा कर नहीं पाए। गांधी जी ने वकालत की पढ़ाई की थी। भारत आकर प्रैकिटस शुरू की, पर विफल रहे। फिर वकालत करने दक्षिण अफ्रीका गए और लौटे तो नेता बनकर।
गिनती की जाए तो दोनों में और भी कई समानताएं मिलेंगी, लेकिन अंतर इससे भी ज्यादा। गांधी जी जहां रचानात्मक उर्जा के स्रोत थे, हिटलर की उर्जा विध्वंसक दिशा की ओर बहती रही। हिटलर ने अपनी जिद और सिद्धांतों को हिंसा के बल पर पूरा करने का प्रयास किया। इसमें लाखों यहूदी और इससे भी कहीं ज्यादा आम लोग और सैनिकों की जानें गई। गांधी हमेशा सत्य, अहिंसा और त्याग के आदर्श पर चलते रहे। भारत विभाजन के समय जब पंजाब में सांप्रदायिक विद्वेष और खून की नदियां बह रही थी, उस वक्त गांधी भारत के सबसे संवेदनशील स्थान कोलकाता में थे। जहां लाखों की संख्या में हिंदू-मुसलमानों ने उनके साथ अहिंसा और सौहार्द के गीत गाए। कोलकाता, दिल्ली और पानीपत में वे लाखों लोगों की जान बचाने मे कामयाब रहे। उन्होंने विश्व को धैर्य, करुणा और अहिंसा का संदेश दिया। जबकि हिटलर ने उन्माद और हिंसा का। उसे शैतान का दूत माना गया। जबकि गांधी को भगवान।
हिटलर ने अपनी पार्टी का नाम राष्ट्रवादी-समाजवादी पार्टी रखा और इन दोनों के ही आदर्शों को मार डाला। सच तो यह है कि यह दोनों ही आदर्श गांधी जी के कार्यशैली में दिखी। उस युग जब जब यूरोप और अन्य देशों में उदारवाद पतनशील था और तानाशाह पुरुत्थानवादी प्रवृतितयों को अपने अनुसार गढ़ रहे थे, गांधी जी ने चरखा और खादी जैसे आंदोलनों से सर्वहारा को मुख्य धारा से जोड़ने में सपफल रहे।
गांधी जी ने आत्महत्या को कायरों का अस्त्र कहा था और हिटलर ने अंत में इसी अस्त्र का इस्तेमाल किया। उसके मरने के बाद देर रात रूसी कमांडर ने स्टालिन ko फोन किया तो usne पहला वाक्य पूछा था- क्या हिटलर मर गया?
गांधी के बारे में रोमां रोलां लिखते हैं वे दूसरे यीशु हैं। अच्छाई और पवित्रता के मामले में गांधी यीशु से कमतर नहीं हैं। और हृदयस्पर्शी विनम्रता के मामले में यीशु से भी श्रेष्ठ हैं। निराशा और दिशाहीनता के इस युग में गांधी उम्मीद के मसीहा हैं युद्ध पीपासा के उन्माद से ग्रस्त इस दुनिया के लिए वे विवेक की आवाज हैं।
संदर्भ—
फि्रडम स्ट्रगल आफ इंडिया- विपिन चंद्र
माडर्न इंडिया- सुमित सरकार
फ्रिडम एक मिड नाइट – डोमेनिक लापियर और लैरी कालिन्स
एज आफ इक्सट्रीम- एरिक हाब्सबाम
ए पीपुल्स हिस्ट्री आपफ द वल्र्ड- कि्रस हरमन
और
अन्य
Read Comments