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नेता की पढ़ाई

फंटूश
फंटूश
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यह बिहार की राजनीति का लेटेस्ट सीन है। नेता लोग खूब पढ़ रहे हैं। पढऩे की ढेर सारी सामग्री है। तरह- तरह की पढ़ाई है। कुछ वैसे नेता भी पढ़ रहे हैं, जिनका लिखा-पढ़ी से शायद ही कभी वास्ता था। कुछ नये पढ़ाकू दिखे हैं। होमवर्क का बेजोड़ दौर है। बड़ी अच्छी बात है। बिहार के लिए बड़े अच्छे संकेत हैं। अरे, जब सब कुछ बदलाव के रास्ते पर है तो नेता की लिखा-पढ़ी का मोर्चा क्यों अछूता रहेगा? उस दिन पशुपति कुमार पारस को देख रहा था। वह पढ़-पढ़ कर सबको सुना रहे थे। वे कैग (नियंत्रक महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट पढ़ रहे थे। पढ़ते-पढ़ते बोलने लगे कि बिहार में वित्तीय आपातकाल लगना चाहिये। लोजपा ने अभी-अभी एक पुस्तिका छापी है। यह पार्टी के लिखने-पढऩे वाले चरित्र का परिचायक है। नेता प्रतिपक्ष अब्दुल बारी सिद्दीकी लिखा-पढ़ी के साथ तगड़ा होमवर्क कर रहे हैं। बियाडा, उसके कानून का पन्ना-पन्ना पढ़ गये हैं। लिखा- पढ़ी उनकी आदत है। विरोधी दल का नेता बनने के बाद यह अचानक बढ़ गयी है। कुछ नेता कोसी आयोग को पढऩे में लगे हैं। पीके सिन्हा जैसे कुछ नेता आटीआइ एक्टिविस्ट हो रहे हैं। उन्हें सबसे ज्यादा पढऩा पड़ रहा है। नेताओं की पढ़ाई-लिखाई के ढेर सारे नमूने हैं। पहले ऐसा नहीं था। पुरानी बात है। गौर फरमायें। राजनीतिक गलियारे में लिखा-पढ़ी से जुड़ी एक कहावत खूब प्रचलित थी-खाता न बही, केसरी जे कही सही। केसरी जी, यानी धाकड़ कांग्रेसी नेता। उनका जमाना था। सीताराम केसरी दिग्गज कांग्रेसी थे। बिहार के थे। उनसे जुड़ी यह लाइन बहुत दिन तक इस बात का भी प्रतीक रही कि नेताओं को पढऩे-लिखने से बहुत वास्ता नहीं होता है। इस समझ को लालू प्रसाद ने सबसे अधिक आगे बढ़ाया। उनके जमाने में मुखे कानून जैसी नौबत रही। जहां, जो मन में आया बोल दिया, वही कानून हो गया। चलते-फिरते जिला, अनुमंडल बना दिया। लालू जी बस बोलते रहे, पढ़े नहीं। हां, रेल का बजट भाषण पढ़ते हुए उनका चेहरा देखने लायक होता था। कई-कई बार पानी पीते थे। वे विधानसभा में बस आर्डर पेपर दिखा मुख्यमंत्रियों को चुप कराते रहे हैं। यह उनकी पुरानी अदा है। वे आर्डर पेपर दिखाकर बोलते थे-सारा पेपर है। खोल दें पोल। सामने वाला शांत पड़ जाता था। खैर, लालू प्रसाद को चि_ी तक लिखने की आदत नहीं रही है। चि_ी पढऩा वे पहाड़ समझते हैं। चि_ी लिखने-पढऩे के बारे में उनकी स्थापित धारणा है-यह फ्रस्टेटेड आदमी का काम है। उन्होंने कभी नरेंद्र सिंह या शिवानंद तिवारी की चि_ियों का जवाब चि_ी लिखकर नहीं दिया। हां, उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चि_ी जरूर लिखी हुई है। कहते हैं आजकल लालू जी भी पढ़ रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों में सबसे अधिक लिखा-पढ़ी वाले लोग भाजपा में हैं, ऐसा माना जाता है। भाजपाइयों ने लालू-राबड़ी के जमाने में चारा चोर-खजाना चोर नाम से एक पुस्तिका छापी थी। अव्वल तो यह घोटाला लिखा-पढ़ी के कारण ही फूटा। तब सुशील कुमार मोदी, राजीव रंजन सिंह (ललन सिंह), प्रेमचंद मिश्रा …, खूब लिखा-पढ़ी करते थे। ललन सिंह, लिखा-पढ़ी को कानूनी आधार देते हैं। यानी, मुकदमेबाजी। आजकल राजद का लिखने-पढऩे वाला प्रभाग गड़बड़ाया हुआ है। लिखने-पढऩे वाले लोग पार्टी को प्रणाम कर रहे हैं। डा.रामवचन राय के बाद शकील अहमद खान ने पार्टी से विदाई ले ली। जगदानंद, रघुवंश प्रसाद सिंह, रामचंद्र पूर्वे हैं। ये लोग खूब पढ़ते-लिखते हैं। वैसे इनका कोटा आजकल अब्दुल बारी सिद्दीकी पूरा कर रहे हैं। सत्तर के दशक में कई ऐसे नेता थे, जो खूब लिखा-पढ़ी करते थे। सुशील कुमार मोदी, सरयू राय, वशिष्ठ नारायण सिंह, शिवानंद तिवारी, विजयकृष्ण, रघुनाथ गुप्ता …, ढेर सारे नाम हैं। कुछ की आदत अब भी मेनटेन है। कुछ समय और मौके के हिसाब से अपने पढऩे-लिखने की आदत को मोड़ते हैं। शिवानंद तिवारी को पढऩे और चि_ियां लिखने का शौक है। उनका चि_ी प्रकरण बड़ा चर्चित रहा है। हालांकि इसका भी मोड रहा है, जो सीधे मौके के हिसाब से जुड़ा है। आजकल वे बीच-बीच में बस प्रेस कांफ्रेंस करते हैं। इसके लिए भी पढऩा पड़ता है। उनकी लालू प्रसाद को लिखी चि_ियों की बाकायदा सीरीज है। लालू प्रसाद बनाम नरेंद्र सिंह चि_ी प्रकरण में नेता प्रजाति के लिए बंदर और छूछुंदर जैसे विशेषण सामने आये। बीच के दिनों में पार्टियों में बौद्धिक मोर्चा का धंधा बड़ा मंदा चल रहा है। इनकी जगह गाली प्रकोष्ठ ने ले ली थी। अब पढऩे-लिखने का मौसम फिर आया है। कुछ नेता आइडिया की तलाश में पढ़ते रहते हैं। सुशील कुमार मोदी सुबह-सुबह आई-पॉड पर देश भी के प्रमुख अखबारों को पढ़ लेते हैं। डा.जगन्नाथ मिश्र आजकल बस पढ़ ही रहे हैं। उनके पास दूसरा कोई काम नहीं है। उनका शोध संस्थान है। उन्होंने बिहार की पीड़ा से जुडिय़े सीरीज चलायी हुई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खूब पढ़ते हैं। हर विषय व स्तर पर अपडेट रहते हैं। देश-दुनिया की हर पहल में बिहार की बेहतरी की गुंजाइश की तलाश को उन्होंने अपना शगल बनाया हुआ है। दिल्ली को चि_ियां लिखने का उनका रिकार्ड सा है। तब राबड़ी देवी को भाषण पढ़ते देख बड़ा अजीब लगता था। उनके पढऩे की रफ्तार से दुनिया वाकिफ रही है। इधर सरकार ने नेताओं को पढऩे-लिखने की बाकायदा व्यवस्था कर दी है। लैपटाप, डेस्कटाप, आई-पॉड …, सामान खरीदने के लिए रुपये उपलब्ध हैं। नेता जी के लैपटाप की अपनी दास्तान है। अभी राज्यपाल महोदय को सबसे अधिक पढ़ाई करनी पड़ रही है। उनको ज्ञापन सौंपने का दौर है। उनके पास थोक भाव में विधेयक भी पहुंचा हुआ है। एक-एक लाइन पढऩी पड़ती है।

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