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मैं जमुना राम जी का फैन हो गया हूं। उनके गुणों को जान कोई भी हो जायेगा। उन्होंने ईमानदारी की नई परिभाषा गढ़ी है। यह भ्रष्टाचार में ईमानदारी की परिभाषा है। उन्होंने ईमानदारी को नया आयाम दिया है। चलिये, घोर कलियुग में कहीं तो ईमानदारी है। यह दिख भी रही है। बहुत बड़ी बात है। जमुना जी, बिहार होमियोपैथिक मेडिसीन बोर्ड में क्लर्क पद को सुशोभित करते रहे हैं। छोटा सा पद है। जमुना जी की ईमानदारी, उन्हें इस पद से बहुत बड़ा बनाती है। उन्होंने अपनी ईमानदारी को आदत बनाई हुई है। इसे खून में समा लिया है। वे तीन महीना पहले घूस लेते पकड़े गये थे। जेल में रहे। लौटकर आये, ड्यूटी ज्वाइन की और पूरी ईमानदारी से फिर काम करने लगे। बेचारे को फिर पकड़ लिया गया है। उनके पास से और 17 हजार रुपये मिले हैं। मेरी गारंटी है कि इसका एक-एक रुपया उनकी ईमानदारी की दास्तान है। उस रोज बहस कुछ ज्यादा ईमानदार हो गई थी। जमुना जी का प्रसंग छिड़ा, तो कुछ भाई लोगों ने जोरदार तरफदारी की। बात समाज द्वारा गढ़ी गई ईमानदारी की सहूलियत वाली परिभाषा तक पहुंच गयी-ईमानदार वही है, जिन्हें बेईमानी का मौका नहीं मिला है। बेशक, माहौल तो यही है। और इसमें जमुना राम …! खैर, कुछ दिन पहले नालको (राष्ट्रीय अल्युमीनियम कंपनी लिमिटेड) के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक एके श्रीवास्तव ने भी जमुना राम वाली ईमानदारी दिखायी थी। थोड़ा डिफरेंट वे में नया रास्ता सुझाया था। श्रीवास्तव जी, घूस में सोने की ईंट लेते थे और इसे दूसरे के लाकर में रखते थे। सोना, बड़े फायदे की होती है। इसका दाम बढ़ता रहता है। श्रीवास्तव जी, श्रीवास्तव जी हैं। जमुना जी, जमुना जी हैं। किंतु दोनों में एक समानता जरूर है। दोनों बेहद ईमानदार हैं। बिहार में ढेर सारे ईमानदार लोग हैं। लघु सिंचाई सचिव रहे एसएस वर्मा के लाकर में सवा नौ किलो सोना मिला था। उनका एक लाकर सोना से भरा हुआ था। सोने की एक ईंट थी। चारा घोटालेबाजों के पास तो अब भी सोना है। कुछ ईमानदार को नकदी का शौक होता है। डीएन चौधरी (राजभाषा निदेशक) के बेटे के लाकर से एक करोड़ 54 लाख रुपये नकद मिला था। नंदकिशोर वर्मा (सीओ, भगवानपुर बेगूसराय) भले सोना न रखें हों मगर वृद्धावस्था पेंशन व इंदिरा आवास के घूस के रुपये से लाखों का शेयर बनाने, खरीदने की फंड मैनेजरी बताने लायक ईमानदार जरूर हैं। मजेदार तो यह कि ऐसी ईमानदारी का रास्ता जांच एजेंसियां भी सुझाती रहीं हैं। देखिये, सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रसाद (इंजीनियर) के खिलाफ रिश्वतखोरी का मामला इसलिए समाप्त कर दिया, चूंकि 26 वर्ष बाद भी ट्रायल शुरू न हो सका था। वकील प्रसाद पर 1981 में रिश्वतखोरी का मुकदमा दर्ज हुआ। पर 28 फरवरी 07 तक ट्रायल प्रारंभ नहीं हुआ था। कुछ दिन पहले एक ईमानदार (श्रीकांत सिंह, सहायक अभियंता, विशेष कार्य प्रमंडल 2, ग्रामीण कार्य विभाग) डाईरेक्ट नोट निगल गया। ये पांच-पांच सौ के 13 नोट थे। अब मुझे श्रीकांत के लीवर की जानकारी नहीं है। मैं यह भी नहीं जानता हूं कि आदमी का लीवर नोट भी पचा सकता है? अभी तक तो आदमी बांध, सड़क, पुल, इंदिरा आवास साबुत निगलता रहा है। बहरहाल, यह बात पूरी तरह सामने आ चुकी है कि एक लोकसेवक खुद को बेचकर कितना कमा सकता है? घूस का रेट गड़बड़ाया है। पद बहुत मायने नहीं रखता है। डीजी रैंक का अफसर जमीन का दो-तीन प्लाट से ज्यादा नहीं खरीद पाता है मगर डीएफओ, शहरी इलाके में 47 क_ïा जमीन का मालिक बन जाता है। हेडक्लर्क पांच हजार से कम पर बिकना शान के खिलाफ मानता है किंतु सीओ की कीमत बस 500 रुपए है। जमुना जी, उनकी ईमानदारी को एक बार फिर प्रणाम। (जमुना जी बस प्रतीक हैं। वह मिजाज हैं, जो हर स्तर पर इस देश को बड़ी ईमानदारी से खा-पचा रहा है। राष्ट्रमंडल खेल में भी जमुना राम हैं और स्विस बैंक में भी)।
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