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अपना-अपना अन्ना

फंटूश
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उस दिन नीतीश जी (मुख्यमंत्री) को सुन रहा था-नेशनल एडवाइजरी काउंसिल की अध्यक्षता कौन करता है? उसके द्वारा तय मसलों पर तो राज्यों से सुझाव मांगे जाते हैं। इस काउंसिल की अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं। बेशक, यह बैठक लेबोरेट्री कंडीशन में होती है, जबकि अन्ना हजारे की मांग है कि लोकपाल विधेयक के निर्माण में नैसर्गिक तरीके को अपनाया जाये। अन्ना, फील्ड कंडीशन की बात कर रहे हैं। अन्ना यह भी नहीं कह रहे हैं कि गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि को खुद विधेयक का प्रारूप ड्राफ्ट तैयार करने का मौका मिले, बल्कि उनके द्वारा नामित व्यक्ति यह दायित्व निभाये; यह काम सिविल सोसायटी करे, फिर इसमें गलत क्या है? शुक्र है कि कांग्रेस नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को सद्बुद्धि आयी, उसने अन्ना की बात मान ली। देश में जीत का जश्न है। क्रिकेट वल्र्ड कप सेलिब्रेशन की निरंतरता में होली-दीवाली मनी है। अब, जरा तारिक अनवर की सुनिये। उन्हें अन्ना के तरीके पर ऐतराज है। जनाब फरमाते हैं-अन्ना अपनी पार्टी बनायें। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारें। अगर वाकई उनको भरपूर समर्थन है, तो उनकी सरकार बनेगी। … फिर वे अपने हिसाब से सब कुछ कर सकेंगे। ये बारगेन वाला तरीका नहीं चलेगा। लोजपा, अन्ना पर इस बात से भड़की हुई है कि उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ की है। रामविलास पासवान जी की पार्टी अन्ना को कन्फ्यूज्ड बता रही है। अन्नागिरी में टारगेटेड हुई कांग्रेस ने अन्ना को सोनिया गांधी की तारीफ के हवाले अपना लिया है। प्रभात कुमार सिंह (प्रभारी प्रवक्ता) की सुनिये-अन्ना की सही मांगों को मानने के लिए सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार को जिस तरह से निर्देशित किया, वह उनके भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़क नीति का परिचायक है। … नीतीश कुमार में हिम्मत है तो कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) रिपोर्ट को आधार बना सीबीआई जांच करायें। अपने पप्पू यादव जी ने भी अन्ना की तरफदारी में भूख हड़ताल की। आजकल गलियारे में बेजोड़ मजाक चला हुआ है-राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद अन्ना के समर्थन में अनशन करने वाले थे। अपना-अपना अन्ना का यह सिलसिला बहुत लंबा है। सबका अपना-अपना अन्ना है। 121 करोड़ कम होता है? नाम से नाम जोड़कर नाम कमाने की तकनीक की अलग दास्तान है। खैर, मुद्दे की बात यह है कि क्या जन-लोकपाल के बाद सबकुछ ठीक-ठाक हो जायेगा? देश में कानून की कमी है? हमने तो दुनिया भर के तमाम अच्छी बातों को इक_ा कर अपना संविधान बनाया हुआ है। सही में अब भ्रष्टाचार के मामलों को टालने या उसकी लीपापोती का वक्त नहीं है। क्या जनता इसके लिए तैयार है? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस पब्लिक का क्या किया जाये? तंत्र पर लोक को हावी कराने में उसकी कोई भागीदारी है कि नहीं? क्या वह अपनी भूमिका ईमानदारी से निभा रही है? घूस लेना और देना, दोनों अपराध है। क्या कभी किसी घूस देने वालों को सजा मिली है? दरअसल, हम भारतीय अपनी जिंदगी को बड़े दिलचस्प अंदाज में जीते हैं। कमोबेश हर क्षेत्र में हारे लोग, अपने जीवन और उसकी जीत को क्रिकेट की जीत में तलाशते हैं। प्रिंस टाइप कोई बच्चा गढ़े में गिरता है, तब हमारी संवेदना की गहराई पता चलती है। मालूम होता है कि यह तो जमीन के अस्सी फीट नीचे है। हम क्रिकेट में उतने ही उन्मादी होते हैं, जितने मुंबई पर हमले के वक्त नेताओं को खारिज करने में। समझ नहीं आता कि इस इंडियन पब्लिक का क्या करें? और इससे भी बड़ी बात यह है कि वाकई आदमी, आदमी है? मेरी राय में इधर आदमी और उसका कैरेक्टर बहुत गड़बड़ाया है। आदमी के ढेर सारे प्रकार हैं। अन्ना हजारे के अनशन के दौरान भी कई नये किस्म के आदमी दिखे हैं। बहरहाल, आदमी, गलती किसी की और सजा किसी को और को देता है। क्यों? इस आदमी को देखिये। इसे परीक्षा में चोरी का मौका नहीं मिला है। यह अपना गुस्सा ट्रेन पर उतार रहा है। आदमियों की ये वाली टोली सड़क से गुजरते सभी बेकसूर आदमियों को हत्यारा मान सलूक कर रही है। टोली बखूबी जानती है कि हत्या किसने की है? हम भारतीयों को बहुत कुछ सजावटी करने, दिखाने की आदत है। हम बहुत कुछ बहुत आधा-अधूरा करते हैं। जेल में रहने वाला चुनाव लड़ सकता है मगर कैदी को वोट नहीं दे सकता है। नगर पंचायत का जनप्रतिनिधि (वार्ड पार्षद), दो से अधिक बच्चों का बाप होने पर अपनी सदस्यता गवां सकता है लेकिन मुखिया, सरपंच आदि इसके दायरे में नहीं हैं। हमने राइट टू रिकॉल का भी दायरा सिमटाया हुआ है। हां तो मैं आम भारतीय आदमी की बात कर रहा था। देखिये, सड़क पर धक्का मारने वाला भाग गया। मुहल्ले की पब्लिक का गुस्सा बाकी लोग झेल रहे हैं। ये नेता टाइप आदमी है। अपनों जैसों के साथ सड़क पर महंगाई व भ्रष्टाचार का विरोध करने निकला है। चलते-फिरते लोगों को केंद्र सरकार मान चुका है। आदमी, अपनी जाति के अपराधी को छुड़ाने के लिए थाना पर हमला बोलता है। एक आदमी में कई-कई आदमी, कई-कई कैरेक्टर हैं। आदमी गंगा को पूज कर उसे प्रदूषित करता है। आदमी, सरकार को खूब कोसता है। आदमी और उनकी स्वतंत्रता तरह-तरह की है। मेरी राय में जो स्थिति है, उसके अनुसार तो आज हर घर-मुहल्ला में अन्ना चाहिये। इतना अन्ना कहां से आयेगा? आदमी में अन्ना बनने की ताकत है? आदमी, अन्ना नहीं बन सकता है? क्यों? फिर वह आदमी कैसे है?

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