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कारिंदे करते क्या हैं?

फंटूश
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ये बस इसी हफ्ते की कुछ खास बातें हैं। संदर्भ हैं। देखिए। सबकुछ जान जाएंगे …

* शर्म की बात है कि 12 साल पहले (28 जून 2002) मुख्य सचिव ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कोईलवर मानसिक आरोग्यशाला को दुरुस्त करने व रोगियों के लिए बेड बढ़ाने की बात कही थी। यह काम तो दूर, अब इस मामले की सुनवाई में वरिष्ठ अधिकारी आ भी नहीं रहे हैं। (पटना हाईकोर्ट की टिप्पणी).

* योजना एवं विकास विभाग 114 करोड़ रुपये का हिसाब नहीं दे रहा है। यह एसी बिल (एडवांस कंटिजेंट) के विरुद्ध डीसी बिल (डिटेल कंटिजेंट) के समायोजन का मामला है।

(ऐसा तब है, जबकि यह विपक्ष का बड़ा मुद्दा रहा है। कोर्ट से सीबीआइ जांच का आग्रह किया गया था। मुख्य सचिव लगातार मॉनीटिरिंग कर रहे हैं। योजना एवं विकास विभाग ने जिलाधिकारियों को समायोजन के लिए सात जुलाई तक का समय दिया है।).

* नए राशन कार्ड को लेकर राज्य भर में घमासान की नौबत है।

(केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान- कार्ड बनाने में भारी गड़बड़ी हुई है।)

* शिक्षा विभाग अगले महीने माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों के 942 शिक्षकों को प्रधानाध्यापक बनाएगा। इनमें 50 शिक्षक ऐसे हैं, जिनको इस प्रोन्नति का लाभ नहीं मिलेगा। ये रिटायर कर जाएंगे।

* कैमूर (भभुआ) के डीएम अरविन्द कुमार सिंह एक दिन की न्यायिक हिरासत में रहे। 2007 में एक फौजी (सुरेश कुमार सिंह) ने कैमूर जिला प्रशासन से 83 डिसमिल जमीन लेने के लिए पटना हाईकोर्ट में मुकदमा किया था। कोर्ट ने सुरेश को उसका यह हक देने को कहा। नहीं मिला। डीएम साहब सजा पा गए।

* छोटी मछलियों (अधिकारियों) पर कार्रवाई हो जाती है लेकिन बड़ी मछलियों पर बड़ों की कृपा हो जाती है। ऐसे में कैसे होगा राज्य भ्रष्टाचार से मुक्त?

(पटना हाईकोर्ट की ठाकुरगंज आंगनबाड़ी केन्द्रों के निर्माण में हुई धांधली के बारे में टिप्पणी। विजिलेंस ब्यूरो ने इस मामले में बीडीओ, ब्लाक प्रमुख, जिला कलेक्ट्रेट के अफसरों को छोड़ दिया।).

* ग्रामीण विकास विभाग जिलों से रिक्त पदों की सूचनाएं मांग रहा है। अभी फिर रिमाइंडर भेजा। यह पिछले एक साल का छठा रिमाइंडर रहा। देखें, सूचनाएं कब तक आती हैं?

* ग्रामीण विकास से संबंधित योजनाओं के लिए प्राप्त हो रहीं जनशिकायतों की अनदेखी हो रही है। शिकायतों का निष्पादन सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। लेकिन इसकी गति, सरकार की इच्छा के अनुरूप नहीं है। सब तरह का प्रयास किया मगर अपेक्षित परिणाम नहीं आया है।

(अमृत लाल मीणा, विभागीय प्रधान सचिव).

* जब सोलर लाइट खरीद में हुई गड़बड़ी के दायरे में संपूर्ण बिहार है, तो सिर्फ 13 पंचायतों में ही प्राथमिकी क्यों दर्ज हुई है?

(पटना हाईकोर्ट का राज्य सरकार से सवाल).

* नवनियोजित प्रारंभिक शिक्षकों को मार्च 2014 से मानदेय भुगतान नहीं होने के कारण प्राथमिक शिक्षा निदेशक तथा विभाग के अन्य कर्मियों का वेतन रोक दिया गया।

* सरकार ने पिछले साल खर्च का हिसाब नहीं देने के लिए राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद, जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनैतिक शोध संस्थान, केपी जायसवाल शोध संस्थान, पुस्तकालय अधीक्षक और बिहार राष्ट्रभाषा परिषद समेत सभी भाषाई अकादमियों को फटकार लगायी है। सरकार कह रही है-समय पर हिसाब नहीं देने से कई शंकाएं हो रहीं हैं।

* करीब चार साल पहले (24 अप्रैल 2010) मृत जानवरों को दफन करने की जगह मुहैया कराने का आदेश दिया गया था। नहीं पूरा हुआ। पटना हाईकोर्ट ने नगर आयुक्त को तलब किया है। उनको सात जुलाई को कोर्ट में पेश होना है।

* … सरकार की सोच हमेशा संवेदनशील व्यवस्था की रही है, वहीं इसके बिल्कुल विपरीत कुछ अफसरों की मंडली हमेशा समावेश के मुद्दे का प्रभाव शून्य कर देने का प्रयास करती रही।

(शैवाल गुप्ता, सदस्य सचिव आद्री).

ऐसे मसलों या संदर्भों की फेहरिस्त बड़ी लम्बी है। कुछ कहने की जरूरत है? मुझको तो नहीं लगता है। सबकुछ तो सामने है। ये बातें खुद सबकुछ कह देती हैं।

कभी इसी बिहार के बारे में जंगल राज्य की बेहद कड़वी अदालती टिप्पणी हुई थी। बहरहाल, पटना हाईकोर्ट ने कई मामलों की सुनवाई बंद कर दिया है। असल में वह चाहकर भी इन मामलों में कुछ करा नहीं पाया। हद है। लोग आखिरी आसरा के रूप में कोर्ट आते हैं? कोर्ट आदेश के सिवा कर भी क्या सकता है? पूर्णता में उसकी बात मानी जा रही है? तो क्या फरियाद के संकट की नौबत लाई जा रही है?

सरकार, मुकदमे झेल रही है। हार भी रही है। हर विभाग में लीगल सेल है। मुकदमे, मामूली कारणों से हो रहे हैं। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की आदर्श स्थिति को हासिल करने के क्रम में जब समीक्षा हुई, तो बाधक के रूप में वही चेहरे सामने आ गए, जिन पर इसको मुकाम देने की जिम्मेदारी थी।

मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने जनता दरबार की शुरुआत की। हर महीने के सोमवार को वे जनता के दरबार में हाजिर होते रहे। जिलों में मैराथन यात्राओं के दौरान पब्लिक से मुखातिब हुए। बेहतरीन पहल। शासन के बारे में फीडबैक जनता से बेहतर कौन दे सकता है? मिला भी। कार्रवाई भी हुई। आजकल मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी रोज दिन मिनी जनता दरबार कर रहे हैं। भीड़ जुट जाती है। अधिकांश फरियादें बहुत मामूली समस्याओं से जुड़ी होती हैं। जनता को खुले तौर पर व सीधा सुनना बड़ी बात है। लेकिन इसका यह पक्ष भी है। वाकई, जब कोई इंदिरा आवास, राशन कार्ड या वृद्धावस्था पेंशन मांगने मुख्यमंत्री के पास आ जाए, तो क्या माना जाएगा; क्या कहा जाएगा? यही न कि आखिर अफसर करते क्या हैं? सरकारी कारिंदे अपनी जवाबदेही के प्रति कितने ईमानदार हैं? सुशासन के इस बुनियादी संकट पर सबको गंभीर होना होगा। खासकर उन नौकरशाहों को, जिनके पास आदर्श व्यवस्था और इसको अंजाम देने वाले सुशासन की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी है।

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