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कौन, किसको भरमा रहा है

फंटूश
फंटूश
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दो बातें मार्के की हैं। इस बार के चुनाव या मतदान से किसी को खास शिकायत नहीं है। दूसरी, सब सभी सीटों को जीत रहे हैं। सूबे की आधी से अधिक सीटों के लिए वोट गिर चुके हैं। यहां लोकसभा की कुल चालीस सीटें हैं।

यह, दरअसल नेताओं की नई अदा है। अब वे कांफीडेंस के मोर्चे पर भी खूब लड़ रहे हैं। इसके बूते वे अपने साथ अपने वोटर और कार्यकर्ताओं का मनोबल टाइट रखना चाहते हैं, ताकि बाकी तीन चरणों में उनका चुनाव गड़बड़ाए नहीं। कहीं कुछ गड़बड़ी है भी, तो दुरुस्त हो जाए। यह जुबान से अपने लिए लहर बनाने की कवायद है। इसमें सभी लगे हैं। सभी अपने-अपने हिसाब से कामयाब भी हैं। नेताओं के हिसाब से देखें, तो बिहार में लोकसभा की कम से कम 125 सीटें हैं। इसलिए कि राजग, जदयू-भाकपा और राजद- कांग्रेस गठबंधन यहां की 40-40 सीटों को जीत रहा है। ऐसे में छोटी पार्टियों को पांच सीट भी नहीं देना बड़ी नाइंसाफी होगी।

जिस अंदाज में बातें हो रहीं हैं, यह तय करना मुश्किल है कि कौन, किसको भरमा रहा है? या पार्टियां, उसके नेता खुद भ्रम में हैं? नेताओं ने बड़ी चालाकी से चरणों के हिसाब से अपनी जुबान बदली है। तीन चरणों के बाद यह उस स्वरूप में है, मानों उनकी सरकार बन चुकी है। बात से बात को जोड़कर बातों को उतनी दूर तक ले जाया जा रहा है, जहां किसी भी सूरत में वोट देने वालों को सच्चाई नहीं दिखे।

लोकसभा चुनाव से स्वाभाविक तौर पर देश की सरकार बननी है। मगर दो दिन से बिहार की नीतीश सरकार के भविष्य पर बहस हो रही है। भाजपा नेता खुलेआम कहने लगे हैं कि सोलह मई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस्तीफा देने के लिए तैयार रहना चाहिए। इस दिन नरेंद्र मोदी की सरकार बन जाएगी। तो क्या नरेंद्र मोदी की सरकार कुर्सी संभालते ही नीतीश सरकार को बर्खास्त कर देगी? नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव इस सवाल से तो सरोकार नहीं जताते हैं लेकिन यह बात जरूर कहते हैं कि नीतीश सरकार अल्पमत में है। खुद गिर जाएगी। हमलोगों को विश्वास मत का प्रस्ताव लाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। भाजपा की हालिया दोस्त, लोजपा के सुप्रीमो रामविलास पासवान कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार बनते ही जदयू में भगदड़ मच जाएगी। नीतीश जी की सरकार गिर जाएगी। अब, जब लोकतांत्रिक तरीके से कोई सरकार गिर रही हो, तो उसको बचाने का जिम्मा लोकतंत्र का सबसे बड़ा रक्षक कांग्रेस निभाएगी ही। कांग्रेस के बिहारी प्रभारी सत्यव्रत चतुर्वेदी को अपना यह कांग्रेसी कर्तव्य याद आ गया। उन्होंने नीतीश सरकार के बचाव का अपना मूड दर्शाया है। कहा है-कांग्रेस, राज्यों में संवैधानिक संकट की पक्षधर नहीं रही है। कांग्रेस के बिहार अध्यक्ष डा.अशोक कुमार चौधरी के मुताबिक हमने नीतीश सरकार को समर्थन दिया हुआ है। जरा, वरीय भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को सुनिए-नहीं-नहीं, हम लोग ऐसा कुछ नहीं करेंगे कि नीतीश कुमार की सरकार गिर जाए। यह अपने कारणों से और अपने-आप जाएगी। हम इसका पाप क्यों लेंगे?

चलिए, जुबानी तौर पर सही, फिलहाल नीतीश कुमार की सरकार बच गई सी लगती है। कल का पता नहीं। अरे, जब सबकुछ जुबान से ही होना है, तो कोई भी सरकार सेकेंड या मिनट में बन-गिर सकती है। कुल मिलाकर सबने मिलकर अपनी सुविधा से नीतीश कुमार, उनकी सरकार को बेचारा बना दिया, बता दिया। इसके कई मेसेज हैं, जिसके हर स्तर पर पब्लिक को बस यही समझाना है कि हमारी ही सरकार बन रही है, इसलिए हमको ही वोट दीजिए।

नीतीश कुमार भाजपाइयों को करारा जवाब दे रहे हैं। कह रहे हैं कि लहर बताने वालों को लू लग गई है। उनकी तुकबंदी सुनिए-सर्वे वाले नेता सब चुनाव हार के भागे, मिला काम को वोट, जदयू निकला आगे। नीतीश का पुरजोर दावा है कि केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बन रही है। और इसमें बिहार की खासी हिस्सेदारी होगी। अपने फेसबुक पर वे लगातार इसके तथ्य-तर्क परोस रहे हैं। वे हर चरण में जदयू की जीत के लिए बिहार के लोगों को बधाई व धन्यवाद देते रहे हैं। जदयू नेताओं की जुबान पर ये लाइनें खूब तैर रहीं हैं कि भीषण गर्मी में भाजपाई मुरझाया कमल लेकर घूम रहे हैं। वे लोगों को लाख धोखा दे लें, नमो-नमो का जाप करते रहें, श्रीराम, भगवान महादेव, गंगा मईया को ठगते रहें, नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने वाले नहीं हैं।

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भी बमबम हैं। कांग्रेसी, दावेदारी में किसी से पीछे नहीं हैं। लालू शुरू से अपनी लड़ाई भाजपा के साथ बताते रहे हैं। उन्होंने केंद्र में यूपीए की सरकार बना ली है और यह भी बता दिया है कि सोलह मई के बाद हमलोग क्या-क्या करेंगे? उनके अनुसार आरएसएस को प्रतिबंधित किया जाएगा। गुजरात दंगा की दोबारा जांच होगी। प्रवीण तोगडिय़ा जैसे लोगों को हमेशा के लिए जेल भेज दिया जाएगा। पब्लिक हतप्रभ है। किसकी सुनें, किसको माने? कौन सही है?

यह सभी पार्टियों की खुशफहमी भी नहीं कही जा सकती है। इन स्थितियों के वाजिब कारण हैं। असल में चार चरणों के मतदान में भारी उछाल ने सबको परेशान किया हुआ है। वो वास्तव में तय नहीं कर पा रहे हैं कि वोट का बढ़ा प्रतिशत आखिर किसके पाले में गया है? वोट का प्रतिशत बढ़ाने में महिलाओं व नए वोटरों का बड़ा योगदान माना गया है। इसको सभी अपनी-अपनी सुविधा व फायदे के हिसाब से विश्लेषित कर रहे हैं।

लेकिन मैदान में नेताओं की मशक्कत गवाह है कि वे निश्चिंत नहीं हैं। उनकी परेशानी बहुत कुछ बयां कर रही है। कम से कम यह तो जरूर कि वे अब अगले चरणों में अधिकाधिक सीटों को पाने की गलाकाट आपाधापी में हैं। और इसके लिए मनोबल की मजबूती बेहद जरूरी है।

कमोबेश इन्हीं कारणों से ये नई-नई लाइनें भी आने लगी हैं। भाजपा अब कहने लगी है कि जदयू का राजद व कांग्रेस से भितरिया सांठगांठ है। तो जदयू, राजद या कांग्रेस के पास भी भाजपा के लिए जवाबी शब्दों या संदर्भों की कमी नहीं है।

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