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डर्टी, डर्टी, डर्टी …

फंटूश
फंटूश
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अहा, कितना मनोरम दृश्य है। देखिए-सुनिए। मेरी गारंटी है आप लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली वाले अपने महान भारत के रग-रग को जान जाएंगे।
हां, तो सीन देखिए। राज्यपाल देबानंद कुंवर बिहार विधानमंडल के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित कर रहे हैं। कांग्रेसी विधान पार्षद ज्योति उनको कह रहीं हैं-यू आर डर्टी, डर्टी, डर्टी …! ज्योति, राज्यपाल से कुलपतियों की नियुक्ति का रेट पूछ रहीं हैं-एक करोड़ कि दो करोड़? राज्यपाल खीझ रहे हैं-यू आर द ओनली डिस्टरबिंग एलिमेंट इन द हाउस। ज्योति बोलती जा रहीं हैं। सत्ता पक्ष बिल्कुल चुप है। कुछ लोग मजे में हंस रहे हैं। नेता प्रतिपक्ष अब्दुल बारी सिद्दिकी राज्यपाल से कह रहे हैं- विदाई भाषण में कम बोलना चाहिए। राज्यपाल सबको शांत कराने की कोशिश कर रहे हैं-हल्ला से नहीं, काम करने से चलेगा। हल्ला जारी है। सदन चल रहा है।
मैं अब तक नहीं समझ पाया हूं कि आखिर इन सबमें कौन, कितना गलत है? ज्योति का गुस्सा गलत है, विपक्ष की नारेबाजी, सत्ता पक्ष की चुप्पी या राज्यपाल की बातें, शांति की कोशिशें? आखिर इस सीन का जिम्मेदार कौन है? कुलपतियों की नियुक्ति के बारे में सबकुछ सामने है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक सबकुछ कह चुके हैं। राज्यपाल पर अंगुलियां उठती रहीं हैं। मगर ऐसा आरोप, यह तरीका … सही है? इस पर बहस में एक बड़े नेता फरमाते हैं- फिर, किया क्या जाए? नेता जी गलत हैं? सबकुछ, कुछ-कुछ सही है। खैर, सदन चल रहा है। देखिए। 
सूर्य नमस्कार पर भाजपा और राजद के सदस्य मारपीट पर उतारू हैं। चंद्रमोहन राय व डा.भीम सिंह (मंत्री), स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे को इसलिए कसकर पकड़े हुए हैं कि वे कूदकर वेल में नहीं चले जाएं और वाकई राजद सदस्यों के साथ उनकी हाथापाई न हो जाए। गिरिराज सिंह (मंत्री) और भाजपा विधायक विक्रम कुंवर भी उग्र हैं। सदन में वंदे मातरम्, हर-हर महादेव और भारत माता के जयकारे गूंज रहे हैं। भाजपा के जवाहर प्रसाद व राजद के राघवेंद्र प्रताप सिंह बीच-बचाव कर रहे हैं। यह सब दूसरे दिन भी तय है। लेकिन मुख्यमंत्री का आग्रह सुनिए-सूर्य नमस्कार पर विवाद नहीं होना चाहिए। यह एक व्यायाम है, जिसे मैं भी हर रोज करता हूं। हालांकि यह किसी पर थोपा नहीं जा सकता है। जिसे अच्छा लगे, करे और जिसे अच्छा न लगे नहीं करे। भाई लोग नहीं मानते हैं। तीसरे दिन सूर्य नमस्कार फिर हंगामे का खास एजेंडा है। इसका जिक्र आते बवाल हो जाता है। सदन चल रहा है।
मैं देख रहा हूं-सदन में मानसिक रोग व मानसिक आरोग्यशाला से जुड़ा एक बेहद गंभीर एवं संवेदनशील मसला आया हुआ है। लेकिन थोड़ी ही देर में यह ठहाके का मसला बन जाता है। स्वास्थ्य मंत्री हंसते हुए कह रहे हैं-आप कोईलवर मानसिक आरोग्यशाला में जाएंगे, तो आपका मन प्रसन्न हो जाएगा। कुछ सदस्य उनको टोकते हैं। मंत्री जी-अभी इनको वहां जाने की जरूरत नहीं है अध्यक्ष महोदय। ठहाके में यह गंभीर बात गोल है।
मैं नहीं जानता कि भाई दिनेश शराब पीते हैं कि नहीं लेकिन वे विधानसभा में शराब की बोतल लेकर पहुंचे हुए हैं। उनके जैसे कई लोग शराब की बिक्री पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। हंगामा हो रहा है। सदन चल रहा है।
मुख्यमंत्री, बड़ी ईमानदारी से पत्थर-बालू-शराब की तिकड़ी और इसके सालाना अवैध कारोबार (तीन हजार करोड़) को बता रहे हैं। इसे तोडऩे की हिम्मत दिखा रहे हैं। विपक्ष, प्रेस काउंसिल आफ इंडिया और इसके चेयरमैन जस्टिस मार्कंडेय काटजू को सदन में ले आया हुआ है। काउंसिल की मीडिया की आजादी वाली रिपोर्ट हंगामे की वजह है। हंगामा हो रहा है। अब मुख्यमंत्री को सुनिए-जस्टिस काटजू ने रांग नम्बर डायल किया है। उन्होंने मेरी तुलना नंद वंश के शासक घनानंद से की है। क्या देश में राजतंत्र है? यह देश का पहला मामला है जहां आरोप लगाने वाला व्यक्ति ही जांच आयोग का गठन करता है और जांच रिपोर्ट अनुमोदन के पूर्व सार्वजनिक हो जाती है। मुख्यमंत्री गलत बोल रहे हैं या विपक्ष सही है?
श्याम रजक खाद्य व उपभोक्ता संरक्षण मंत्री हैं। वे सदन को बता रहे हैं-बिहार राज्य खाद्य निगम को चावल वापस नहीं करने वाले 28 चावल मिलों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई है। 51 के विरुद्ध सर्टिफिकेट केस हुआ है। यह नई बात है? मिल वाले सुधरते क्यों नहीं हैं? उनको कहां से ताकत मिलती है?
मैं, ग्रामीण विकास मंत्री नीतीश मिश्रा को सुन रहा हूं-काम के बदले अनाज योजना में 706 डीलरों पर प्राथमिकी हुई है। इन डीलरों की ताकत और इनके संरक्षक से कौन वाकिफ नहीं है? यह गठजोड़ हमेशा के लिए टूटता क्यों नहंी है? विधानसभा में एक आवाज गूंजती है-17 बोरा बालू में एक बोरा सीमेंट मिला रहा है महोदय। महोदय (अध्यक्ष जी) कहते हैं-मंत्री जी, देखवा लीजिए। मंत्री जी -जी, देखवा लेंगे। इसके पहले, बीच में या फिर बाद में कुछ नहीं है, सिवाय इसके कि सावधान सदन चल रहा है।

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