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अब क्या होगा? मुजफ्फरपुर तथा आसपास के बच्चे मरते ही रहेंगे? उनको मरने से बचाने के लिए आदमी के विज्ञान और चिकित्सीय विकास पर भरोसा छोड़ भगवान से जोरदार बारिश कराने का आग्रह किया जाए? पिछले कई साल का अनुभव यही कहता है कि बारिश, इस बीमारी से बच्चों को मरने से रोकता है। वाह रे 21 सदी, आदमी और उसका विकास।
असल में अटलांटा भी इस बीमारी को पहचान नहीं पाया है। उसके अनुसार बच्चों के लिए जानलेवा बनी बीमारी एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) किसी वायरस से नहीं हो रहा है। सीडीसी अटलांटा की टीम की पहली रिपोर्ट यहां पहुंची है। बच्चों के खून-पेशाब व रीढ़ के पानी के नमूने की जांच में किसी भी वायरस का पता नहीं चला है। ये नमूने अमेरिका से आए न्यूरोसर्जन डॉ.जिम्स सेवियर्स की निगरानी में इक_ा किए गए थे। फिर इनकी जांच हुई।
अटलांटा ने साफ कर दिया है कि बच्चे जेई (जापानी इंसेफेलाइटिस), इंसेफेलाइटिस, मस्तिष्क ज्वर, चिकेनगुनिया, मलेरिया, कालाजार सहित अन्य जो बीमारियां वायरस से हो सकती हैं, से नहीं मर रहे हैं। तो फिर क्यों मर रहे हैं? कोई बताएगा?
बच्चों की मौत का कारण खोजने में पुणे की टीम भी विफल हो गई है। वह चार साल से इस बीमारी पर शोध कर रही थी। एनआइवी पुणे की रिपोर्ट भी कहा गया है कि नमूने की जांच में वायरस नहीं मिला है।
बहुत अचंभा की बात है, इस बात की जानकारी नहीं हो पाना कि बच्चा जब रात में सोता है तो उसके बाद वह कौन से कारण हैं, जिससे उसके शरीर में अचानक डब्लूवीसी व न्यूट्रोफिल की मात्रा अधिक हो जाती है। साथ ही ग्लूकोज, सोडियम व पोटैशियम की मात्रा भी अचानक घट-बढ़ जाती है। इसी के कारण बच्चे बीमार होकर मर रहे हैं। एईएस के हर मरीज की खून की जांच में यही बात सामने आई है।
अब अमेरिका में विशेष शोध की बात कही जा रही है। करते रहिए शोध पर शोध …, इधर, बच्चे तो रोज मर रहे हैं। इस साल अभी तक करीब 190 बच्चों की मौत हो चुकी है। सबसे खतरनाक है कि यह अज्ञात बीमारी नए इलाकों में फैली है।
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