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नेता की जवानी

फंटूश
फंटूश
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जनाब से मुखातिब होइए। ये राम लषण राम रमण हैं। अभी राजद के विधायक हैं। मंत्री भी थे। कवि हृदय हैं। मुझे लगता है वे सत्तर साल के जरूर होंगे। उस दिन विधानसभा में सबके सामने अपनी बुढ़ौती सीधे नकार दी। अपने को बूढ़ा कहने पर बाकायदा एतराज किया। जवाब में अदद कविता पढ़ दी-कोई मुझको बूढ़ा नहीं कहना, मैं हूं जवान …।

मैं सदन में लगे जोरदार ठहाके को सुन रहा था। यह इन लाइनों पर आगे बढ़ता चला गया कि नेपाल की सीमा से जुड़े बिहारी इलाके के लोगों को उम्र छिपाने की आदत होती है। यह लाईन भी आई कि जनाब अभी होली से लौटे हैं। जवानी की खुमारी में हैं। रमण जी नेपाल सीमा से जुड़े क्षेत्र से आते हैं। मजे की बात तो यह कि ऐसी कई लाईनें उन लोगों ने बनाई, बढ़ाई थीं, जो रमण जी के हमउम्र हैं। यानी कि रमण जी की तरह वे भी बूढ़े नहीं हैं।

मैं देख रहा था-रमण जी मानने को तैयार नहीं थे। बूढ़ा शब्द को खुद पर आरोप मान लिए थे। लगातार सफाई दे रहे थे। ठहाका बढ़ता ही गया। सदन में अक्सर ठहाके लगते हैं। गंभीर मसले किनारे हो जाते हैं। यह रूटीन टाइप बात है। नेताओं की लीला है। यह एक से बढ़कर एक है।

मुझको नया ज्ञान हुआ है। आप भी जान लीजिए। वाकई, नेता बूढ़ा नहीं होता है। नेतागिरी की उम्र नहीं होती है। उम्र के हिसाब से नेता परिपक्व होती है। जितनी अधिक उम्र, उतना ही अधिक अनुभव और उतना ही अधिक देश को फायदा। अपना महान भारत इसका गवाह है। आजादी के बाद से नेता और उसकी जवानी की गवाही दे रहा है। अहा, कहां से कहां पहुंच गया है अपना देश!

मैं समझता हूं कि राजनीति की अपनी वर्णाश्रम व्यवस्था है। इसमें 45-50 वर्ष का आदमी युवा माना जाता है। ऐसा इसलिए कि वानप्रस्थ आश्रम को जीने वाला नेता, बस अभी-अभी गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया हुआ माना जाता है। जस्ट लांच करने वाला सिचुएशन। नेतागिरी में वानप्रस्थ आश्रम नहीं होता है। बहुत सारे नेता कुर्सी के साथ ही इस दुनिया से विदा हुए हैं। हां, अपनी कांग्रेस पार्टी ने इसमें थोड़ा सुधार किया है। उसने युवा की अपनी राजनीतिक परिभाषा बदली है।

अब जरा यह सीन देखिए! अपने चौबे जी (अश्विनी चौबे, स्वास्थ्य मंत्री) दस का दम दिखा रहे हैं। स्टार्ट हैं। सुशील कुमार मोदी (उपमुख्यमंत्री) अकबका गए हैं। वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को देख रहे हैं और मुख्यमंत्री, मोदी जी को देख हैं। चौबे जी जब स्टार्ट होते हैं, तो उनको कोई नहीं रोक सकता है। खुद वे भी अपने आप को नहीं रोक नहीं पाते हैं। जो चाहेंगे, बोलकर ही दम लेंगे। दम, जवानी का एक स्टेज है। मेरी राय में तो यही जवानी का बेस (आधार) है। दम से जवानी साफ-साफ झलकती है। चौबे जी का दम देखिए, सुनिए-प्रकृति ने हमको बहुत कुछ दिया है। सूरज की रोशनी से हमें विटामिन डी मिलता है और …। शुक्र है कि उनका दम सूर्य नमस्कार तक नहीं पहुंचा। सभी राहत की सांस ले रहे हैं। चौबे जी ने अपने हवाले पब्लिक को दम का राज समझाया है-आसन, व्यायाम कीजिए। सब दुरुस्त रहेगा।

चलिए, उस सीन को थोड़ा याद कीजिए। यह इतनी पुरानी बात नहीं है कि लोग भूल जाएं। सुरेश कलमाडी जी जेल जाने के बाद कम से कम वो सारी चीजें भूल गए थे, जो राष्ट्रमंडल खेल में गोलमाल से सरोकार रखती थीं। उनकी भुलक्कड़ी के मामले में उम्र का फार्मूला लागू होता है? मेरे एक सहयोगी मुझको समझा रहे थे-भूलना तो नेता का बिल्कुल नार्मल टाइप गुण है। इसमें उम्र कहां से आती है? नेता रिटायर नहीं करता है? उसके तमाम अंग ताउम्र ठीकठाक रहता है। अपने एनडी तिवारी जी को बहुत कुछ याद नहीं है। हाईकोर्ट ने उनको उनके निजी जीवन के बारे में बहुत कुछ याद कराया है।

मैंने देखा है कि नेता, जेल जाते ही बीमार पड़ जाता है। यह उसका नया प्राब्लम है। क्या, यह समस्या उम्र से जुड़ती है? जेल जाकर बीमार पडऩे वाला नेता अपने को बूढ़ा मानता है? नहीं, बिल्कुल नहीं। नेता, नेता होता है। आदमी की तरह उम्र से उसका वास्ता नहीं होता है।

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