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बापू का चश्मा

फंटूश
फंटूश
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जहां तक मैं देख रहा हूं, आंख के मामले में नजरें बहुत बदल गईं हैं। झील सी गहरी आंखों का जमाना गया। अब आंखों में समंदर या दुनिया समाने, बसाने की ताकत नहीं बची है। आंख, नजर, आंसू …, सबकुछ फास्ट फूड टाइप चल रहा है। आंखों की छोडिय़े, नल तक में पानी नहीं है। आंखें बड़ी कमजोर हो गईं हैं। बचपन में ही चश्मा चढ़ जाता है।

आंख या नजरों का धंधा बड़ी मौज में है। ढेर सारे डाक्टर हैं। चश्मों की बहुत सारी दुकानें हैं। तरह-तरह के चश्मे हैं। तरह-तरह की नजर है। नजर ओरीजनल नहीं है। डुप्लीकेट है। नजदीक वाली, दूर वाली …, हर तरह की नजर के चश्मे हैं। ये सब कुछ बखूबी दिखाते हैं। कुछ चश्मा पहनने वाले दूरबीन भी यूज में लाते हैं। उन्हें बड़ी दूर की देखनी होती है। यह नजर का पब्लिक फ्रंट है; नार्मल सिचुएशन है। जनता की नजर कमजोर होने के ढेर सारे कारण हैं। बड़ी लंबी दस्तान है।

लेकिन पालिटिक्स में …!

मेरी राय में राजनीति में चश्मों की बड़ी लम्बी सीरीज है। नेता, दूसरी प्रजाति का होता है न! नेताओं की नजरें कुछ ज्यादा तल्ख हैं। आजकल ये खूब टकरा रहीं हैं। एक-दूसरे को मजे में काट रहीं हैं। एकाध दिन हुए। जदयू प्रवक्ता संजय सिंह का बयान पढ़ रहा था। उन्होंने राजद के नेताओं को चश्मा का नम्बर बदलने की सलाह दी है। उनका तर्क मुनासिब है। सुनिये-अरे, जब पूरी दुनिया को बिहार में विकास दिख रहा है, तब राजद के नेताओं को यह कैसे नहीं सूझ रहा है? भई, मैं राजद नेताओं की आंख, उनकी नजर से वाकिफ नहीं हूं। यह भी नहीं जानता कि वे अपनी आंखों का रेगुलर चेक-अप कराते हैं या नहीं; आंख में कोई आई ड्राप डालते हैं या नहीं? हां, उनका जवाब जरूर सुना- बेहतर होगा कि जदयू के लोग अपनी आंखों का आपरेशन करा लें। उनको चश्मा बदलने से काम नहीं चलेगा। उनकी आंख चौपट हो चुकी है।

भई, अब मैं आंखों के बीच की इस लड़ाई में नहीं पडऩे वाला हूं। सबकी अपनी-अपनी आंख है; अपनी-अपनी नजर है। ऐसे में किसी आई स्पेशलिस्ट के सिवा कोई कर भी क्या सकता है? वैसे भी सबके चश्मों के नम्बर एक नहीं होते हैं। अभी एक बैठकी में बापू (महात्मा गांधी) के चश्मे के नम्बर पर बात हो रही थी। इसी हफ्ते वर्धा आश्रम से बापू का चश्मा चोरी हुआ है।

मैं आंख और नजर की इस अद्भुत पृष्ठभूमि में बापू के चश्मे को लेकर चिंतित हूं। मेरी चिंता बापू के चश्मे की चोरी की नहीं है, बल्कि उसका इस्तेमाल करने वालों की है। बैठकी का विषय भी यही था कि आखिर किसकी और कौन सी आंख बापू के चश्मे का लोड ले पायेगी? हर पल बदलती नजरों के इस दौर में बापू का चश्मा प्रासंगिक है?

जहां तक मैं समझता हूं बापू का चश्मा आजाद भारत के लिए कंफरटेबल नहीं है। यह शायद ही किसी को सूट करेगा। इसमें बहुत पावर है। यह कलर्ड नहीं है। इसका ग्लास फोटोक्रोमेटिक नहीं है। यह बाई-फोकल नहीं है। बस, ब्लैक एंड ह्वाईट दिखाता है। इससे बापू को पूरी दुनिया सीधी और बिल्कुल साफ- साफ दिखती थी। इसके जरिये भारत और यहां के लोगों की सूरत दिल तक में उतरती थी। मेरी इस राय पर बैठकी ने हामी भरी। बैठकी कुछ इस लाइन पर आगे बढ़ी-बापू का चश्मा बहुत कुछ दिखा सकता है। बापू का चश्मा देख रहा है कि कैसे उनको (बापू) याद करने के लिए बस तारीखें तय कर दी गईं हैं? यह पंद्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, दो अक्टूबर तथा तीस जनवरी है। … बापू के चश्मे का सब पर डिफरेंट असर हो सकता है। कुछ पर तो री-एक्शन सा। कांग्रेस, राजद, जदयू, भाजपा, वामपंथी (नेता), अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता, नौकरशाह …, बाप रे बाप; आखिर कौन पहनकर घूमेगा यह चश्मा, किसकी आंखों में इतनी हिम्मत है कि …!

मेरे एक साथी जोर-जोर से बोलने लगे-माना कि अन्ना हजारे की आंख पर यह खप गया। मगर बाबा रामदेव तो परेशान हो जायेंगे। साफ दिखेगा कि उनकी आंखें इसका लोड नहीं ले रही हैं। वे इसको सेट करने के लिए कई-कई आसन करके थक चुके हैं। उनका चेला सलाह दे सकता है-अन्ना जैसा गांधी टोपी पहनिये। सेट कर जायेगा। फिर इसी तर्ज पर बात लालू प्रसाद, दिग्विजय सिंह, रामविलास पासवान, अमर सिंह, सुशील कुमार मोदी …, की आंखों तक पहुंचीं। उनकी बदली नजरों और उसका उनकी जुबान पर पड़े असर तक की बात हुई। भाई लोगों ने तो शशि नायडू को भी चश्मा पहना दिया। आप लोग शशि को तो जानते हैं न! वल्र्ड फेम की यह लेडी बापू से प्रभावित है। बहरहाल, अब मेरा मन बापू के चश्मे के शर्तिया वर्धा आश्रम लौटने की गारंटी करने लगा है। वाकई, यह देश-यहां की आंखें बापू, उनके चश्मे का लोड लेने की ताकत नहीं रखता है। इस देश की आंख का नम्बर बदलने से काम नहीं चलने वाला है। आपरेशन की दरकार है।

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