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बाप रे बाप …

फंटूश
फंटूश
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उस दिन प्रो.अरुण कुमार को सुन रहा था। वे बीएन मंडल विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। कुलपति का पद बहुत बड़ा और जिम्मेदारी का होता है। प्रोफेसर साहब अपने सहयोगियों (खासकर शिक्षकों) से बहुत परेशान हैं। उनको पटरी पर लाने के लिए अनशन करने वाले हैं। ऐसा होता नहीं है। उल्टा हो रहा है। शैक्षणिक माहौल के लिए कुलपति अनशन पर नहीं बैठते हैं। उनको टारगेटेड करना शिक्षक, कर्मचारी, छात्र व अभिभावक का विशेषाधिकार है। कुलपति जी निर्धारित विशेषाधिकार प्रक्षेत्र का अतिक्रमण कर रहे हैं। मेरी राय में सत्याग्रह की महान परंपरा वाले इस महान लोकतांत्रिक देश में प्रोफेसर साहब क्या, कोई भी कुछ भी करने का विशेषाधिकार रखता है। बेशक वे अनशन का विशेषाधिकार अपनायें, शिक्षक नहीं पढ़ाने का अपना विशेषाधिकार देखेंगे। यही होता रहा है। मैं बचपन से सुनता, पढ़ता आ रहा हूं- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अधिकार से जुड़ा बस एक ही नारा था-स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। यही हमारा सबसे बड़ा विशेषाधिकार था। मगर आजादी के बाद …! हम आजाद हैं, मुकम्मल आजाद। अब बस अपना अधिकार याद रखना हमारा विशेषाधिकारहै। तरह-तरह के विशेषाधिकार हैं। यह मुफ्तखोरी से लेकर घूसखोरी के रूप तक में परिलक्षित है। बिजली चोरी, बेटिकट यात्रा …, कितना गिनायें? मरीजों का इलाज पूरी तरह डाक्टरों का विशेषाधिकार है। डाक्टरों की हड़ताल के दौरान यह विशेषाधिकार कुछ ज्यादा जोरदार ढंग से दिखता है। हड़ताल उनका विशेषाधिकार है। मरीज मरते रहें, यह उनके पार्ट का विशेषाधिकार है। गंगा को पूजकर उसे गंदा करना महान भक्तों का विशेषाधिकार है। वादाखिलाफी नेताओं का विशेषाधिकार है। राशन का सामान बाजार में बेच देना जनवितरण प्रणाली के दुकानदारों का विशेषाधिकार है। बिहार विधान मंडल के दोनों सदनों में विशेषाधिकार समिति है। यह माननीयों के विशेषाधिकार की संरक्षित करने वाली कमेटी है। माननीय, विशेषाधिकार हनन की नोटिस देते हैं। कार्रवाई होती है। यह विशेषाधिकार का दूसरा पहलू है। बिहार विधानमंडल राज्य को चलाने के लिए दर्जनों कानून बना चुका है। लेकिन अपने यहां निचले पदों पर नियुक्तियों के लिए उसने कोई नियम नहीं बनाया है। इन पर नियुक्ति अध्यक्ष जी का विशेषाधिकार है। उनकी गड़बड़ी पर कार्रवाई विजिलेंस ब्यूरो का विशेषधिकार है। प्रो.लक्ष्मी राय बिहार लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष थे। मेधा घोटाला (इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा) के आरोपी थे। उनसे इस्तीफा मांगा जाने लगा। उन्होंने अपने बचाव में अपने विशेषाधिकार का भरपूर हवाला दिया। उनके जमाने में संवैधानिक संस्थाएं बुरी तरह टकरा गईं थीं। यह वस्तुत: विशेषाधिकार की टकराहट थी। अदालत का अपना विशेषाधिकार है। महालेखाकार और विधानमंडल का भी विशेषाधिकार है। कई मर्तबा इस पर बहस होती है कि विधानमंडल में अदालत, महालेखाकार, राज्यपाल पर बहस हो सकती है कि नहीं? राजभवन का विशेषाधिकार देखिये। वहां ढेर सारे विधेयक लंबित हैं। इसकी मंजूरी, राज्यपाल का विशेषाधिकार है। राज्य सरकार का अपना विशेषाधिकार है। केंद्र सरकार का अपना है। यह आम आदमी का विशेषाधिकार है। देखिये -भीड़ का कानून, जनता का विशेषाधिकार है। परीक्षा में चोरी छात्र का विशेषाधिकार है। आंगनबाड़ी में हिस्सा सीडीपीओ का विशेषाधिकार है। मंत्री जी का विशेषाधिकार है। उनके सचिव महोदय का विशेषाधिकार है। उनका टेलीफोन उठाने वाले का विशेषाधिकार है। सरकारी चपरासी से खाना बनवाना, प्रति कुलपति का विशेषाधिकार है। नहीं बनाने पर चपरासी को पीट देना उनका विशेषाधिकार है। मैंने विशेषाधिकार के मोर्चे पर कई दफा देखा है कि यह सिर्फ मैं की भावना से जुड़ी अधिकारों और रोब-दाब की लड़ाई है। संवैधानिक संस्थाओं से लेकर आईएएस- चपरासी या फिर आम आदमी तक इसमें शरीक है, जूझता रहा है। अक्सर अधिकार क्षेत्रों के अतिक्रमण का दौर दिखता है। असल में जागरूकता ने सबको उनके अधिकार तो याद करा दिये हैं, पर कत्र्तव्य इसी अनुपात में भुलाये जा रहे हैं। एक के स्तर से हो रही गड़बड़ी दूसरे को पहलकदमी का मौका देती है। पहले इस प्रदेश में अफसरों की खूब पिटाई हो जाती थी। यह मारने वाले का विशेषाधिकार था। इधर लोकसेवकों ने अपने इस विशेषाधिकार में थोड़ी रियायत बरती है। अब वे बारह बजे लेट नहीं, चार बजे भेंट नहीं की कहावत से शायद ही वास्ता रखते हैं। सेवा का अधिकार कानून के बाद इस विशेषाधिकार में जीरो टालरेंस की स्थिति आने की संभावना है। भई, अब मुझे पता नहीं कि विशेषाधिकार की इस पृष्ठभूमि में तंत्र पर लोक कैसे हावी होगा? यहां तो लोक और तंत्र, दोनों …, बाप रे बाप!

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