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महाकुंभ में हेराइल बिहार

फंटूश
फंटूश
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महाकुंभ में अभी तक (रविवार दोपहर) एक लाख सैंतालीस हजार छह सौ चालीस लोग अपनों से बिछड़े। इनमें अड़तालीस फीसद बिहार के हैं।
मैं हतप्रभ हूं। महाकुंभ का पोर-पोर जीने के दौरान मैंने सबसे अधिक गूंज बिहार की सुनी है। यह सबकुछ बड़ा दिलचस्प है। लाउडस्पीकर दिन-रात बोल रहा है-सोनबरसा (सहरसा) की परवतिया देवी आप भुले- भटके केंद्र पर आ जाएं। यहां आपके परिवार के लोग आपका इंतजार कर रहे हैं। आरा के रामप्रसाद सिंह को सुनिए -ए, साकेत के माई कहां बारू? हम केतना देर से खाली फुलपैंट लेके खड़ा बानी। तहरा भिजुन जे बैग बा उ में हमार कुर्ता बा। जल्दी आव भाई। आरती अपने पति पर बिफरी हुई है। उसकी कांपती आवाज लाउडस्पीकर पर सभी सुन रहे हैं। मैं भी सुन रहा हूं। एक आज्ञाकारी पति होने के नाते मैं तो यही मनौती मना रहा था कि आरती के पति तुरंत न मिलें। वह तो उनका खून पी जाने वाली मुद्रा में थी। असल में बेचारी बड़ी घबराई हुई थी। कुछ देर बाद दोनों का आमना-सामना देखने लायक था। मैं तो भाव -विभोर हो गया जी।
हां, कुछ लोग मजाक कर रहे थे-बिहार जहां-तहां भुला जाता है। इसमें व्यंग्य का भाव था। मगर मैं इस स्थिति को यहीं तक सीमित नहीं रखता हूं। इसकी चर्चा बाद में। पहले एक भुले-भटके केंद्र का सीन देखिए। यह रूला देने वाला तो है किंतु इसमें भोली- भाली बिहारी जिंदगी के कई रंग भी हैं। अधिकतर बुजुर्ग महिलाएं अपनों से अलग हुईं हैं। हालांकि इनमें कुछ इतनी भरोसे में थीं कि उनके घर वाले उनको लेकर ही जाएंगे। इस भरोसे से उनको निश्चिंतता है और कई तो आराम से सो भी गईं हैं। कुछ की आपस में बड़ी दोस्ती हो गई है और वे खूब बतिया रहीं हैं। अंतत: उनका भरोसा जीता। इनमें से अधिकांश अपने घर पहुंच गईं हैं। 
मेरी राय में बिहार के भुला जाने के कई कारण हैं। अशिक्षा पहले नम्बर है। कई तो लाउडस्पीकर पर अपनों की आवाज सुनने के बावजूद उन तक बड़ी मुश्किल से पहुंचीं। उनको लोगों से पता पूछने तक में दिक्कत हो रही थी। वे समझ भी नहीं पा रहीं थीं। पुरुषों पर पूरी निर्भरता और घर से शायद ही कभी निकलने वाली स्थिति …, नारी सशक्तीकरण अभी और उछाल की दरकार रखता है।
मैंने महाकुंभ में बिहार की धार्मिकता, उसकी आस्था और बुजुर्गों के प्रति भरपूर आग्रह, प्यार व इज्जत भी देखी। मौनी अमावस्या के हादसे के बाद इलाहाबाद में बड़ी संख्या में बिहार के गांवों से लोग अपनों की तलाश में पहुंचे थे। वे कई-कई दिन तक अखबार के दफ्तर से लेकर उन तमाम स्थानों पर घूमते रहे, जहां उनके बुजुर्गों के मिल जाने की उम्मीद थी। इनमें सर्वाधिक सफल भी हुए।
मैंने महाकुंभ में बिहार कई और रुप में भी देखा है। इस्कान के कैम्प में गज-ग्राह के युद्ध को दर्शाया गया है। हाथी, घडिय़ाल और भगवान विष्णु की बड़ी-बड़ी आकृतियां हैं। ये बिजली की मदद से चलती-फिरती हैं। यहां दुनिया भर से जुटे लोगों को बताया जा रहा है कि गज-ग्राह का यह युद्ध हरिहरक्षेत्र (सोनपुर) नारायणी नदी में हुआ था।
मेला परिसर में कई स्थान पर श्रीमहावीर मंदिर न्यास ट्रस्ट द्वारा बनवाए जा रहे विश्व के सभी बड़े मंदिर के बड़े-बड़े होर्डिंग हैं। लोग इसे बड़ी गंभीरता से ठहर कर देखते हैं। बाम्बे बाजार है। मीना बाजार है। इनमें कई दुकानें बिहार की हैं। भागलपुर का सिल्क हाउस है।
संगम पर गंगा माई के ठेठ बिहारी गीत हैं। मैं तो छठ पूजा को जीने लगा था। वसंत पंचमी के शाही स्नान के दिन घाट को ताबड़तोड़ साफ किया जा रहा था। कई चक्रों में सफाई हो रही थी। कुछ पुलिस वाले एक जमात पर तल्ख थे। दरअसल इन लोगों ने गंगा किनारे से कुछ दूर हटकर गंगा जी की पूजा-अर्चना शुरू कर दी थी। दिए जला दिए थे। ये बिहार के लोग थे।
सड़कों पर बिहार गीतों में गूंज रहा है। इलाहाबाद फोर्ट (किला) की गेट पर वीरेंद्र झा मिलते हैं। जनाब, सेना के आर्डिनेंस डीपो में काम करते हैं। बोले-यहां चालीस फीसद बिहारी हैं।
यहां अमरनाथ झा रोड है। 1954 के कुंभ में राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद भी आए थे। काली रोड से गुजर रही बिहारियों की एक टोली एलसीडी टीवी के इस प्रसारण को देख तुरंत ठहर जाती है। एक बुजुर्ग अपने साथ की महिलाओं व बच्चों को बता रहे हैं-इ देख, राजेंद्र बाबू बारन। इ बिहारे के रहन।

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