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अरेऽ, रेऽऽ, रेऽऽऽ! चुप क्यों हो गए रविशंकर जी? प्लीज, बता दीजिए न! क्यों, भाजपाइ संस्कार के हवाले जुबान को कष्ट दे रहे हैं। पेट में दर्द होने लगेगा। बोल दीजिए। पब्लिक लालायित है। वह आपसे पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी की गोपनीय जानकारी जानना चाहती है। आपने कहा है कि यह आपके पास है। मगर आप इसे बताएंगे नहीं। क्योंकि भाजपा का संस्कार इसकी इजाजत नहीं देता है। अभी के दौर में, जब सबने सबका, लगभग सबकुछ बेपर्द कर दिया है, इस संस्कार की उम्र कितनी है रविशंकर जी?
मैं देख रहा हूं कि नरेंद्र मोदी की पत्नी जशोदा बेन के हवाले भारतीय राजनीति, घर तक पहुंचा दी गई है। मुद्दों से जुड़ी कंगाल नैतिकता ने घर-गृहस्थी, पारिवारिक जीवन से लेकर पति-पत्नी के रिश्ते तक को चुनावी मुद्दा बना दिया। मेरी राय में इसके ठीक बाद का चरण-संस्करण या वर्जन बेडरूम में ही पहुंचता है। रविशंकर प्रसाद बेडरूम के दरवाजे पर खड़े होकर संस्कार की बात कह रहे हैं। वे दरअसल, कांग्रेस को सावधान कर रहे हैं-जशोदा बेन के मामले को अब और बढ़ाया तो …?
मैं, अभी तक बस राजनीति के ड्राइंग रूम वर्जन को जानता था। यह बड़बोलों या हवाबाजों के लिए इस्तेमाल होता है। बेडरूम वर्जन, जो जनता के बीच आने को सुगबुगाने लगा है, लेटेस्ट वर्जन है। इसमें खुले मंच से क्या-क्या बोला जाएगा, किनका-किनका, किससे-किससे जुड़कर या जोड़कर अपने महान भारत को उछाल देने का एजेंडा बनेगा, मैं यह तो नहीं जानता हूं लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि सबकुछ बड़ा लजीज और रसीला होगा। अहा, क्या सीन होगा, क्या शब्द होंगे, क्या वर्णन होगा, फिर इसकी सीडी, थ्री डी वर्जन …, कोई भी मस्त हो जाएगा जी।
रविशंकर प्रसाद बढिय़ा वक्ता हैं। वकील हैं। तार्किक हैं। जो भी बोलते हैं, उसमें अपने हिसाब से तथ्यों का ऐसा पुट देते हैं, जो उसे पूरी तरह सच दिखाता है। उनके इन्हीं गुणों को देखते हुए भाजपा ने उनको बोलने का काम दिया हुआ है। वे इसे खूब निभा रहे हैं। लेकिन संस्कार के हवाले उनकी चुप्पी? मैं समझता हूं कि यह तो जनता को सूचना के अधिकार से वंचित रखने तरह का अपराध है। क्यों, इस अपराध का भागी बन रहे हैं भाई? अरे, बच ही क्या गया है, जो छुपा रहे हैं? इसी बार के चुनाव में हमने क्या-क्या नहीं दिखा-सिखा दिया अपने बच्चों या अगली पीढ़ी को? राजनीति कभी इतनी नंगी या बदजुबान थी? उसमें जाति-धर्म का इतना अधिक सम्मिश्रण था?
नक्सली, तरह-तरह के बम दिखा, सिखा रहे हैं, तो नेताओं की जुबान इससे भी धमाकेदार है। इस बात की होड़ मची है कि कौन, किसको, कितना और क्या-क्या सिखा पा रहा है, बरगला दे रहा है? रोज नया-नया ज्ञान नए-नए वर्जन में सामने आ रहा है।
मुलायम सिंह यादव के ज्ञान का नवीनतम वर्जन है कि दुष्कर्मियों को फांसी की सजा नहीं मिलनी चाहिए। उनकी सरकार आई, तो वे इसके बारे में कानून बनाएंगे। मेरे एक साथी मुझे समझा रहे थे कि मुलायम जी ने युवा दुष्कर्मियों के बारे में यह बात कही है। और बुजुर्ग दुष्कर्मियों के बारे में …? मुलायम जी के कानून में शायद यह बुनियादी व्यवस्था या धारणा होगी कि बुजुर्ग दुष्कर्म कर ही नहीं सकते हैं। अबु आजमी कह रहे हैं कि शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाने पर युवती को भी दंड मिलना चाहिए।
जरा, इस ज्ञान और इसके वर्जन को देखिए। नेता, नेता को कुत्ता और गुंडा कह रहा है। टुकड़ों में काट देने की बात आ चुकी है। एक नेता ने पब्लिक को बताया है कि कारगिल विजय में मुस्लिम सैनिकों का सबसे अधिक योगदान रहा। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अहंकार की परिभाषा बताई है, जिसके हर खाने में नरेंद्र मोदी फिट बैठते हैं। उनका एक और नया ज्ञान है-अभी तक पूंजीपति चुनाव में नेताओं की मदद करते थे। इस चुनाव में पूंजीपति बाकायदा निवेश कर रहे हैं। वे चुनावी सर्वे के बारे में लगातार नया-नया ज्ञान दे रहे हैं। सुशील कुमार मोदी ने नीतीश कुमार से पूछा है कि आजकल आपको नया-नया ज्ञान क्यों और कैसे हो रहा है? सत्रह साल के साथ के दौरान ऐसा क्यों नहीं हुआ?
कांग्रेस को पहले चरण के चुनाव के बाद ज्ञान हुआ है कि जदयू वोटकटवा है। उसके प्रदेश प्रवक्ता प्रेमचंद्र मिश्र का ज्ञान सुनिए-जदयू को चुनाव से अलग हो जाना चाहिए। यह धर्मनिरपेक्षता के लिए जरूरी है। सम्राट चौधरी को राजद से अलग होकर उसका संविधान पढऩे का ज्ञान हुआ, उन्होंने इसे पढ़ा, ज्ञानवान हुए और अपना ज्ञान पेश किया -राजद उम्मीदवारों की उम्मीदवारी रद हो। आखिर सजायाफ्ता लालू प्रसाद ने सिंबल कैसे बांटा?
यह दलबदल के रिकॉर्ड का ज्ञान है। सतीश कुमार, भाजपा से जदयू में चले गए। सतीश, फरवरी में कहीं से भाजपा में आए थे। यह साल भर में उनका चौथा दलबदल है। मैं समझता हूं इस सीजन का अब तक का यह रिकॉर्ड है। नागमणि दूसरे नम्बर पर हो सकते हैं। मुझे नेताओं की अदा के बारे में भी इक_े कई-कई ज्ञान हुए हैं। नेता, अभिनेता से बड़ा होता है। नेता, स्पोट्र्समैन से बहुत आगे बढ़ा हुआ है। नेता, तब तक हार नहीं मानता है, जब तक उसकी हार खुलेआम नहीं होती है। पहले चरण के चुनाव के बाद सबने सभी छह सीटों को जीतने की बात कही है। उनके चेहरों को देखकर कोई कुछ समझ सकता है? बहरहाल, रविशंकर जी अब तो बता दीजिए।
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