Menu
blogid : 53 postid : 596305

वोट के लिए …

फंटूश
फंटूश
  • 248 Posts
  • 399 Comments

नेता, वोट के लिए क्या-क्या करता है? मुझे, इस बारे में कुछ नया ज्ञान हुआ है। नया इसलिए कि मेरे जैसा पब्लिक टाइप आदमी ऐसा सोच भी नहीं सकता है। खैर, इस ज्ञान को आपसे शेयर करता हूं।

मैं, राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को सुन रहा था। वे कह रहे हैं-भाजपा और आरएसएस कुर्सी (वोट) के लिए दंगा करा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जिम्मेदार हैं। उन्होंने बिहार में भाजपा को आगे बढ़ाया है, ताकतवर बनाया है।

सुशील कुमार मोदी कह चुके हैं-नीतीश सरकार ने अल्पसंख्यकों को खुश रखने के लिए कुख्यात आतंकी यासीन भटकल से नरमी बरती। वोट के लिए आतंकियों को संरक्षण दिया गया है।

अब जरा इनसे मुखातिब हों। ये राजीव रंजन प्रसाद हैं। जदयू के प्रवक्ता हैं। कह रहे हैं- आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी रणनीति की सफलता इस बात पर निर्भर है कि अपनी राजनीतिक हितों की पूर्ति के नाम पर राजनेता अपने बेलगाम वक्तव्यों से इसकी गोपनीयता पर प्रहार न करें। सुशील कुमार मोदी लोगों (वोट) के ध्रुवीकरण के लिए गाली-गलौज पर उतर आए हैं।

मैं देख रहा हूं नेता, चाहे जिस पार्टी का हो, भले दूसरे को आरोपित कर रहा हो, लेकिन उनकी एक बात कामन है। वे अपनी जुबान से दूसरों के लिए कह रहे हैं-यह सबकुछ वोट के लिए हो रहा है। यासीन भटकल की गिरफ्तारी पर सियासी बवाल इसकी हालिया गवाही है। जदयू और भाजपा लड़ती जा रही है। राजद और कांग्रेस चुप है। इसके कारण छुपे हैं? क्या यह सही नहीं है कि दोनों दल, भटकल प्रकरण को वोटों के धुव्रीकरण का आधार नहीं बनने देना चाहते हैं? इससे भाजपा व जदयू को फायदा होगा? हां, उस दिन राजद के विधान पार्षद गुलाम गौस भटकल पर बोल गए-एक खास वर्ग से संबंध रहने का मतलब यह नहीं है कि वह आतंकी है। जब तक उस पर दोष सिद्ध नहीं हो जाता, उसे आतंकी नहीं कहा जा सकता है। हद है। जदयू और भाजपा की लड़ाई में अभी तक बेटी, बेटा, दामाद, फेंकू, भांजू, भांट, चीं- चीं, चें-चें …, नए-नए शब्द सामने आ चुके हैं। शिवानंद तिवारी ने सुशील कुमार मोदी के सूक्ष्म रूप का बखान किया है, तो जवाब में भाजपा तिवारी जी को भांट बता चुकी है। यह सब अभी और आगे जाएगा। लोकसभा चुनाव सामने दिख रहा है न!

मुझे कुछ पुरानी बातें याद आ रहीं हैं। ये गवाही हैं कि कैसे नेता हर मसले या मौके को अपने फायदे में इस्तेमाल करता है? पहले वह अपनी सुविधा से माहौल तैयार करता है और फिर नियोजित तरीके से इसका लाभ उठाता है। तीन मई 1994 को भागलपुर में नौ लोग पकड़े गए थे। इनमें कई पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के एजेंट बताए गए। यह बिहार में सीमा पार आतंकी सक्रियता का पहला आधिकारिक खुलासा था। सरकार, चाहे दिल्ली की हो या पटना की, क्या की? इन उन्नीस वर्षों में ऐसा कहां कुछ हुआ, जो बिहार को देश की कमोबेश सभी प्रमुख आतंकी वारदातों में बदनाम नहीं होने देता; कुख्यात आतंकी यासीन भटकल को यहां अड्डा बनाने से रोक देता। क्यों नहीं हुआ? कौन जिम्मेदार है? और सबसे बड़ा सवाल है कि इस गंभीर मोर्चे पर आखिर हुआ क्या?

वही हुआ, जो अभी हो रहा है। इस घिनौनी पृष्ठभूमि में कुख्यात आतंकी यासीन भटकल पर राजनीतिक घमासान आश्चर्य नहीं है। यह होना ही था। इस गारंटी की कई वजहें हैं। यह अभी की राजनीति का चरित्र है। नेताओं ने ऐसे मसलों को भी अपने फायदे में इस्तेमाल की आदत बना ली है। ऐसा माहौल बनाया जाता है कि जाने-अनजाने, क्रिया- प्रतिक्रिया के अंदाज में ध्रुवीकरण हो जाए। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के शासनकाल के भी ऐसे ढेर सारे प्रसंग हैं। मेरी समझ से राजनीति के इस सतही अंदाज की छांव ने आतंकियों को फैलने में बड़ी मदद की है। यह स्थिति इस तल्ख सवाल का भी धारक है कि राजनीति की खेत में आतंकी फसल लहलहाती है?

मेरी राय में बिहार में इस मोर्चे पर उत्कट राजनीतिक एकजुटता की दरकार थी। प्रदेश का बड़ा हिस्सा नेपाल की खुली सीमा से ऐसे जुड़ा है कि बहुत हिस्सों में दरवाजा नेपाल में, तो खिड़की भारत में खुलती है। बांग्लादेश की लम्बी सीमा जुड़ती है। जब- तब बिहार, देश के आतंकियों के प्रवेश द्वार के रूप में भी बदनाम हुआ है। लेकिन बिहारी होने का दंभ भरने वाले नेताओं को इसकी फिक्र न रही। समस्या की जड़ पर तगड़ी चोट न हुई। नेक्सट टू की हैसियत रखने वाली राष्ट्रीय पार्टी के बिहारी नेता बताएंगे कि उन्होंने सात साल राज्य की सत्ता में रहने के दौरान कितनी दफा बांग्लादेशी घुसपैठ को याद किया? यह मुद्दा उनकी सियासी कामयाबी की सीढ़ी रही है। यह क्या है? आतंकवाद का मसला ऐसे निपटेगा? भटकल तो जिंदा रहेगा, फैलेगा? यह नेता की चालाकी है। पब्लिक समझती है?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh