Menu
blogid : 53 postid : 398

एक घूसखोर की केमेस्ट्री

फंटूश
फंटूश
  • 248 Posts
  • 399 Comments

एक धांसू आइडिया क्लिक किया है। घूसखोर की केमेस्ट्री पर शोध होना चाहिए। मेरी गारंटी है यह विषय शोध की दुनिया में तहलका मचा देगा। इसका परिणाम बड़ा मजेदार होगा। मैं तो समझता हूं कि यह बहुत रसीला भी होगा। मेरे मुंह में तो अभी से पानी आने लगा है। इससे चिकित्सा विज्ञान को नया आयाम मिलेगा। वह नई दिशा को प्राप्त होगा।

सबसे बड़ी बात है कि इसी हफ्ते अपने महान बिहार ने इस क्रांतिकारी विषय को लांच किया है, इसका पुरजोर संदर्भ बनाया है। चार घूसखोर अफसरों के यहां से हुई चौंकाने वाली बरामदगी वस्तुत: इस शोध का तगादा है। देर करना मुनासिब नहीं होगा। हम तुरंत इस विषय को टेब लें। काम शुरू कर दें। पेटेंट करा लें। हम एक और मोर्चे पर दुनिया को रास्ता दिखाने के काबिल हो जाएंगे।

इस शोध को मुकाम देने के ढेर सारे टिप्स हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार भी हो सकते हैं। जहां तक मैं जानता या समझता हूं आदमी और धातु का बड़ा पुराना वास्ता है। जनम-जनम का साथ है। प्रेम है। आदमी ने धातु को नाम दिया है। आजकल धातु, आदमी को आदमी बना रहा है। आदमी के शरीर में तरह -तरह के धातु हैं। इनका एक्शन-रिएक्शन चलता रहता है। शरीर की रासायनिक क्रियाएं यौगिक व अकेले, दोनों रूपों में खूब परिभाषित हैं। मैं देख रहा हूं कि अफसरों ने इसे नई लाईन दी है। उनका लीवर-कीडनी, हार्ट, धमनी-शीरा …, नए किस्म व अंदाज में है। यह क्या है, क्यों है, कैसे है …, यह शोध का केंद्रबिंदु हो सकता है।

मेरी राय में इस शोध की प्रेरणा या दरकार की लाईन कुछ इस प्रकार बनती है। आजकल हर चीज की केमेस्ट्री तलाशी जाती है। केमेस्ट्री, यानी रसायनशास्त्र। धातु विज्ञान इसी का पार्ट है। आयुर्वेद में आदमी के लिए धातु की उपयोगिता की बड़ी व्याख्या है। लौह भस्म से लेकर स्वर्ण भस्म तक की चर्चा है। इसके फायदे बताए गए हैं। आदमी की बीमारी  औकात के अनुसार होती है। आदमी इसी के अनुसार धातु भी खाता है। प्यार की केमेस्ट्री पर बहुत बात हो चुकी है। अब घूस की भी केमेस्ट्री जान ली जाए।

दरअसल, अपने अवधेश कुमार मंडल जी ने नई जानकारी दी है। उन्होंने बताया है कि चांदी के बर्तन के इस्तेमाल से हाजमा दुरुस्त रहता है। मंडल जी भवन निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता हैं। जनाब को ईंट, गिटï्टी, बालू, सिमेंट से वास्ता रहा है। बेशक, इन ठोस चीजों को पचाना हंसी-खेल नहीं है।  इसके लिए ताकतवर हाजमे की दरकार है। और शायद चांदी, इतनी ताकत देती है। उनके यहां से चांदी का पिकदान भी मिलने की बात है। चांदी के पिकदान में थूक फेंकने का भी निश्चित रूप से कोई न कोई फायदा होता होगा? अफसर बिना फायदे का कोई काम नहीं करता है। इसे भी शोध के एक अध्याय में शामिल किया जा सकता है। मंडल जी की केमेस्ट्री, उनके हीरा, प्लेटिनम व सोना प्रेम से भी जुड़ती है। यह शोध का अलग-अलग एंगिल हो सकता है।

आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने बताया है कि मंडल जी के यहां हीरे की 15 अंगुठियां मिलीं हैं। वे हीरे की सत्रह और अंगुठियां खरीदे हुए हैं। उनकी बाडी या घर की केमिस्ट्री या धातु विज्ञान को शायद हीरा खूब शूट करता है। हां, जनाब ने प्लैटिनम को भी परखना शुरू किया था। शोध के दौरान देखा जा सकता है कि विभाग व पद के हिसाब से अफसरों का धातु प्रेम कितना और कैसे बदलता है? गिरीश कुमार ने अपने पद के अनुरूप अपनी दुकान चलाया हुआ है। लगता है उनको लोहा और जमीन धारता है। भवन निर्माण विभाग के दूसरे इंजीनियर रामचंद्र शर्मा के घर से पौने तरह लाख के गहने मिले हैं। रिटायर मोबाइल रमेश पाठक के पास से चौदह लाख रुपये के गहने मिले हैं। बढ़ रही है न रसीले नतीजे की तरफ बात? मैं भी तो यही कह रहा हूं। लोकसेवकों के मामले में धातु, आजकल सीधे उनके हाजमे से सरोकार रखता है। इस क्रम में उन घरों में प्रयोग होने वाले धातुओं की पहचान की जा सकती है, जो पुल-सड़क-बांध पचाते रहे हैं। शोध विस्तारित हो रहा है न? तय मानिए, धातु के हवाले अफसरों के हाजमा ज्ञान से जुड़े एंगिल की कमी नहीं है।

एक आदमी के रूप में धातुओं के बारे में अपन को अभी तक इतनी ही भर जानकारी रही है कि ताम्बा के जग या ग्लास में पानी पीने से पेट ठीक रहता है। मैंने एकाध बार वह च्यवनप्राश भी खाया है, जिसके बारे में कंपनी दावा करती है कि इसमें सोना और चांदी दोनों है। चांदी दिमाग तेज करता है, और सोना तो खैर सोना ही है। यह बाडी के एक-एक पार्ट को सुरक्षित रखता है। ऐसा कुछ लगा नहीं। अपन कुछ वैसे धातुओं के बारे में भी सुनता रहा है जो तकदीर बदलती है। इसमें घोड़े की नाल की अंगुठी से लेकर पुखराज तक शामिल है। अब भला घोड़े की नाल क्या तकदीर संवारेगी? और पुखराज कितने पहनते हैं? इसे शोध से जोड़ा जा सकता है। आदमी और अफसर के फर्क की बात खुले में आएगी।

मुझे याद आ रहा है कि नोट लेकर ही काम करने वाले एक भाई जी ने पकड़े जाने के वक्त पांच-पांच सौ के कई नोट गटक लिए थे। बेचारे विजिलेंस ब्यूरो वाले ने बड़े परेशान रहे। उन्होंने निशान लगाकर अपने नोट दिये थे। बरामद नोट साक्ष्य के रूप में कोर्ट में पेश करने पड़ते हैं। प्रदर्श के रूप में रखने पड़ते हैं। आखिरकार ये नोट नहीं मिले। तब यह ज्ञान बहुत जोर-शोर से प्रसारित हुआ था कि लीवर को अब कड़कड़ाते नोट पचाना भी आ गया है। अभी तक वह इसका बाई प्रोडक्ट पचाया करता था। और केमेस्ट्री वाला यह शोध तो …?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh