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अपने नेताओं ने पालिटिक्स में नया वर्जन लांच किया है। आपसे शेयर करता हूं। देखिये।
अब पालिटिक्स की परिभाषा आगे बढ़ी है। यह थोड़ी फैली है। चौड़ी भी हुई है। पालिटिक्स के नये वर्जन का बेसिक मर्दांनगी है। यह पब्लिक के जिम्मे छोड़ दिया गया है कि वह इसके किस रूप को ग्रहण करती है- पालिटिक्स में मर्दांनगी या मर्दांनगी की पालिटिक्स। मेरी राय में दोनों एक तरह के स्टेज हैं, सिचुएशन हैं।
नेता लोग मर्दांनगी के सपोर्ट में बहुत कुछ कर रहे हैं। वे शेर और बिल्ली की कहानी सुना रहे हैं। लालू प्रसाद कहानी कह रहे हैं, सुनिये- नीतीश कुमार (मुख्यमंत्री) कायर हैं। डरपोक हैं। राज ठाकरे से डर गये। उसके सामने सरेंडर कर गये। बिहार को शर्मसार कर दिया है। बिहारियों की गरिमा गिरा दी। राज ठाकरे ने नीतीश को कुछ शर्तों के साथ मुंबई में घुसने की अनुमति दी। नीतीश मान गये। राज के हर आर्डर को फालो किया।
रामविलास पासवान भी कहानी सुना रहे हैं-नीतीश कुमार ने राज ठाकरे को शेर बना दिया है। इसके लिए नीतीश ने खुद भीगी बिल्ली बना लिया है। … बिहारियों का मनोबल गिर गया। पहले यह बहुत टाइट था। अब बिहारी वही करेंगे, जो राज ठाकरे चाहेंगे। नीतीश कुमार को बिहार की जनता से माफी मांगनी चाहिये। मर्दांनगी की लाईन पर यह कहानी बहुत आगे बढ़ती है। इसमें तरह -तरह के मोड़ हैं। कई तरह की सीन है। ड्रामा है। रोमांस है। रोमांच है। थ्रिल है। ट्रेजडी है। सस्पेंस है। पालिटिक्स का यह लेटेस्ट वर्जन फुल पैकेज्ड है। जो इसमें फिट बैठा वो मर्द, वरना …! नेता, अपनी मर्दांनगी के लिए नई कसौटी बनाये हैं? पब्लिक भी मस्त है।
यह सब मुनासिब है? क्या मुंबई में बिहार शताब्दी समारोह का शांतिपूर्ण गुजर जाना बिहार का अपमान है? क्या नीतीश कुमार, वाकई राज ठाकरे के सामने सरेंडर कर गये? क्या जय महाराष्ट्र बोलना, बिहारियों को शर्मसार करना है? क्या इस बात से बिहार का मनोबल गिर गया कि यहां का मुख्यमंत्री मराठी में कुछ लाइनें बोल गया? मराठा दिग्गजों को नमन, उनकी तारीफ से बिहार की गरिमा गिरती है? ऐसे ढेर सारे सवाल हैं।
पालिटिक्स के इस नये वर्जन में आखिर नीतीश कुमार को क्या करना चाहिये था? उनको आक्रामक अंदाज में मुंबई जाना चाहिये था? कुछ ऐसा करना चाहिये था, जो अशांति व हिंसा का कारण बनता? पूर्वांचल के लोगों पर हमले होते; पुलिस को लाठी-गोली चलाने का मौका मिलता; देश में तनाव फैलता-मर्दांनगी की पालिटिक्स तो यही कहती है? यही इसकी जरूरी शर्त है। यानी, अगर आप राजनीति करते हुए मर्द कहलाना चाहते हैं, तो यह सब कीजिये। वाह! क्या वर्जन है? मर्दांनगी की कैसी शर्तें हैं?
यही लालू प्रसाद और रामविलास पासवान राज ठाकरे के कार्यकलापों और आग उगलती जुबान के खिलाफ मोर्चा खोले रहते हैं। वे राज की मर्दांनगी को अपने अनुसार सैल्यूट भी करते हैं और उनको देशद्रोही भी कहते हैं। वे कहते हैं कि राज की जगह तो जेल में है। उन्हें संविधान से कोई मतलब नहीं है। उनके कारनामे, उनकी बातें देश की एकता- अखंडता के लिए बड़ा खतरा है। यह आदमी सिर्फ सुर्खियां पाने के लिए ऐसा करता है। और ठीक ऐसी ही बातों की अपेक्षा नीतीश कुमार से भी करते हैं। इस दोहरापन का क्या मतलब है?
खैर, पालिटिक्स के इस वर्जन में ढेर सारी गुंजाइश है। इसमें कई और बातों को भी जोडऩे की छूट रहती है। लालू प्रसाद और रामविलास पासवान की कहानी को सुनते हुए इसका पूर्ण ज्ञान होता है। पब्लिक सेंटीमेंट का बड़ा धांसू समर्थन मिलता है। मगर देश …! किसी को फिक्र है?
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