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ये आदमी की जात है!

फंटूश
फंटूश
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एक छोटी मगर बेहद गंभीर खबर आयी है। तिरूमला तिरूपति देवस्थानम (टीटीडी) तय कर रहा है कि कर्नाटक के पूर्व मंत्री जनार्दन रेड्डी द्वारा भगवान को अर्पित हीरा का मुकुट स्वीकार किया जाये या नहीं? यह 45 करोड़ का है। रेड्डी ने दो साल पहले इसे भगवान को समर्पित किया था। तब उनकी भक्ति का बड़ा शोर मचा था। मेरे जैसे भक्त लजा गये थे।

आजकल रेड्डी साब जेल में हैं। अवैध खनन के आरोपी हैं। उनके घर छापा में तीस किलो सोना, साढ़े चार करोड़ नकद और बहुत बड़ा आर्थिक साम्राज्य पकड़ाया है। एक बार फिर मेरे जैसे भक्त लजाये हुए हैं। मेरी राय में गोलमाल के आरोपी किसी शख्स के कारनामों के दायरे में पहली बार भगवान भी आये हैं। टीटीडी प्रबंधन कह रहा है कि अगर रेड्डी साब ने इस मुकुट के बारे में आयकर विभाग को जानकारी दी होगी, तब तो ठीक है वरना …!

यह बड़ी हिम्मत की बात है। ऐसा होता नहीं है। यह भ्रष्टाचारियों के सामाजिक बहिष्कार की शुरूआत मानी जा सकती है। यह बहुत जरूरी है। रोकथाम के कानून बेकार से हैं। अपने यहां भ्रष्टाचार को बहुत पहले से घरेलू व सामाजिक स्वीकृति मिली हुई है। किसी तरह बस पैसा आना चाहिये; पैसा आ रहा है। बेटा फुटानी में मगन है। बीबी शापिंग कर रही है। नाते-रिश्तेदार खूब खुश हैं। जब- तब पड़ोसी, समाज भी पैसों की चमक- दमक के मौकों में शरीक होता है। भोज- भात, पार्टियां चलती रहती हैं। बेईमानों ने ईमानदारी की सहूलियत वाली परिभाषा सर्वानुमति से तय की हुई है-ईमानदार वही है, जिसे बेईमानी का मौका नहीं मिला है। इस खांचे में जो फिट नहीं है, वह महामूर्ख है-यह बेईमान जमात की सुस्पष्ट राय है।

आदमी की जात अपने पाप में भगवान तक को शरीक किया हुआ है। इनकी लगातार कामयाबी, भगवान के बारे में गलत धारणा को मजबूत करती है। भई, मुझे तो अक्सर यही लगता है कि भगवान इन्हीं से खुश हैं। भगवान को खुश करने के कमोबेश तमाम तरीके-महामृत्युंजय जाप, रूद्राभिषेक, दुग्धाभिषेक, जलाभिषेक, होम, हवन …, सबकुछ इन्हीं के जिम्मे है। ज्योतिषशास्त्र, ग्रह-रत्न, नजर रक्षा यंत्र, वास्तुशास्त्र …, सबकुछ इन्हीं की सपोर्ट में है। इन भक्तों के भगवान प्रेम में ‘तेरा तुझको अर्पण …Ó वाला भाव नहीं है। रेड्डी साब की संपत्ति सिर्फ 45 करोड़ की थी?

ये भक्त, भगवान को अपनी कमाई का एक पार्ट अर्पित करते हैं। मैं देख रहा हूं-मठ-मंदिरों में कुत्ता, बिल्ली के नाम पर जमीन है। भगवान, कायदे की भोग को तरस रहे हैं और महंत मौज में हैं। महंतों के कारनामे छुपे हैं? यहां तो भक्तों ने संत विनोबा भावे को भी ठग लिया था। भू-दान के नाम पर नदी-पहाड़ दान कर दिये। भक्तों की भक्ति की बड़ी लम्बी दास्तान है। इस पृष्ठभूमि में मंदिरों से भगवान की मूर्तियों की चोरी आश्चर्य पैदा नहीं करती हैं।

लोग अपने भ्रष्ट आचरण को छुपाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। अभी एक बैंक मैनेजर अपनी पत्नी के माध्यम से घूस ले रहा था। पटना में एक मंदिर स्थापित करने वाले कुछ दिन पहले आयकर विभाग की लपेट में आये हैं।भक्तों की यही जमात दान भी करती है। मैंने कोसी कहर के दौरान कई तरह के दानी देखे थे। अन्ना के आंदोलन के दौरान ऐसे बहुत सारे भक्त खूब सक्रिय रहे। मानों खुद को शुद्ध कर रहे हों; पुराने पाप धो रहे हों। उनका बेटा घूस से खरीदी गई मोटरसाइकिल पर तिरंगा लेकर भारत मां का जयकारा किये घूम रहा था। असल में आदमी की जात हर मसले पर औपचारिकता की पराकाष्ठा पार कर चुका है। आदमी के बाद भगवान को भी नहीं छोड़ा है। तरह-तरह के भ्रष्टाचारी हैं। तरह-तरह के भक्त हैं। हे राम, ए राम …!

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