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ये क्‍या हो रहा है भाई —

फंटूश
फंटूश
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इन खबरों को ध्यान से पढि़ए और इसके किरदार बने लोगों या इन पंक्तियों को जुबान देने वालों के मिजाज को आंकिए। जानिए कि अपने महान भारत में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किस मात्रा में है? और किन हैसियत वाले लोग इसका किस- किस तरह से इस्तेमाल करते हैं?

मगर एक जो सबसे बड़ी बात है, वह यह कि कैसे जमाने के चलन या तथाकथित प्रगतिशीलता के नाम पर हम तमाम तरह की विसंगतियों को चुपचाप कबूलते जा रहे हैं? हम ऐसे मसलों को आपसी बातचीत में तो खूब कोसते हैं लेकिन जब खुले तौर पर बोलने की बारी आती, तो दुनिया का मुंह ताकने लगते हैं; उसके घोषित चलन या धारणा के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। और जब कोई ऐसा करता है, तो उसकी ईमानदार जुबान को ताकत देने की बजाए सजावटी दुनिया, उसकी घोर चालाकी और उत्कट दोहरापन का साथ देते हैं।

मेरी राय में यह बस खबर नहीं है। आजकल का सर्वाधिक बड़ा एजेंडा है। यह मसला असमंजसता की उपरोक्त नौबत पैदा किए हुए है। इसका कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा।

बहरहाल, खबर के कुछ खास हिस्से इस प्रकार हैं-

* शकुंतला शेट्टी (अध्यक्ष, महिला व बाल विकास समिति, कर्नाटक विधानसभा) द्वारा चलाया गया हालिया मोबाइल वायरस सोमवार को बिहार विधानसभा भी पहुंच गया। बिहार के कला संस्कृति एवं युवा मामलों के मंत्री विनय बिहारी से इससे गंभीर सरोकार जताया और यहां तक कह दिया कि मोबाइल, रेप (बलात्कार) या ऐसे अन्य घोर अनैतिक कार्यकलापों की जड़ में है। दरअसल, स्मार्ट फोन पर बच्चे ब्लू फिल्म देखते हैं। इसका असर उनके दिमाग पर पड़ता है। गार्जियन जिम्मेदार हैं। वे बच्चों को 40-50 हजार का फोन दे देते हैं और इंटरनेट का कनेक्शन भी।

कई विधायकों ने विनय बिहारी की इस बात का समर्थन किया। विक्रम कुंवर बोले-विनय बिहारी ठीक कह रहे हैं। सरफराज आलम ने भी कमोबेश यही बात दोहराई। मगर जदयू की नीता चौधरी का कहना था कि जमाना बदल गया है लेकिन कुछ लोगों की सोच कुंठित ही रह गई। उनका दिमाग नहीं बदला। वे अपनी अजीब मानसिकता से तकनीक पर रोक लगाना चाहते हैं। यह मुनासिब है? संभव है? उन्होंने सवालिया लहजे में कहा-बताइए, यह कोई समझ है? मोबाइल या इंटरनेट का बस यही इस्तेमाल है? बेशक, दुरुपयोग भी होता होगा लेकिन यहां तो …?

मंत्री जी, संवाददाताओं से बातचीत में अपनी मोबाइल भी दिखाने लगे थे। कहा-देखिए, हमलोग अभी तक हजार-डेढ़ हजार रुपये के मोबाइल से काम चला रहे हैं। लेकिन गार्जियन लोग तो अपने बच्चों को कीमती मोबाइल देना स्टेट्स सिम्बल बना लिए हैं।

सदन में लड़कियां भी कार्यवाही देखने पहुंची थीं। लड़कियों को लेकर आने वाली प्रज्ञा से जब इस बारे में पूछा गया तो उसने कहा-ये लोग हमें क्या सिखाएंगे? क्या तरीका बताएंगे? इन लोगों को तो यह भी मालूम नहीं है कि सदन में मोबाइल लेकर नहीं आना चाहिए। वर्तिका ने कहा-जो नेता कह रहे हैं, वैसी कोई बात नहीं है। मोबाइल तो हमारे लिए सेफ्टी का उपाय है।

ध्यान रहे कि शकुंतला शेट्टी ने अपनी समिति की रिपोर्ट में मोबाइल को रेप की वजह बताई बताई थी। खासकर नई उम्र के लड़के-लड़कियों के बीच इस पर पाबंदी की बात कही थी। हालांकि यह प्रस्ताव खारिज हो गया।

और इसी दिन विधानसभा में …

एक विधायक जी चलते सदन में मोबाइल से बात कर रहे थे। विधानसभा अध्यक्ष की नजर पड़ गई। उन्होंने कहा-… तारकिशोर बाबू, बगल में। यह मोबाइल से बात करने की जगह नहीं है। सभी सदस्य अपना मोबाइल बंद कर दें। भाई वीरेंद्र खड़े हुए कहा बीएसएनएल का नेटवर्क काम करता है। जैमर लगवा दीजिए।

मंगलवार को विनय बिहारी की सफाई आयी-यह मेरा व्यक्तिगत बयान है। निजी राय है। मेरा मकसद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है। अगर ऐसा कुछ हुआ है, तो मैं खेद प्रकट करता हूं।

* अब मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की सुनिए- मोबाइल फोन का सर्वथा गलत उपयोग नहीं होता है। इसका बढिय़ा उपयोग किया जाए तो लाभ होता है, वहीं दुरुपयोग होने से हानि हो सकती है। यह मोबाइल फोन के उपयोग करने वाले के विवेक पर निर्भर करता है। कला, संस्कृति एवं युवा कार्य मंत्री विनय बिहारी का यह बयान कि मोबाइल फोन एवं तामसी भोजन से लोग सेक्स की तरफ आकर्षित होते हैं, उनका व्यक्तिगत बयान है। मांसाहार के उपयोग के संबंध में लोगों की अपनी मर्जी है कि इसका इस्तेमाल करें या नहीं। इसमें रोक की बात कहां है। उन्होंने कहा कि प्वाइजन (जहर) से दवा भी बनती है और इससे लोग मर भी जाते हैं। यह इसके उपयोग पर निर्भर करता है।

बताइए, कौन कितना सही है?

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