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सिस्टम के रंग : आइपीएस केसी सुरेंद्र बाबू और …

फंटूश
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केसी सुरेंद्र बाबू कौन थे? कितनों को याद हैं? कोई बताएगा? जो बताएगा, उसका जवाब कितना ईमानदार होगा? चलिए, मैं बता देता हूं।

केसी सुरेंद्र बाबू आइपीएस थे। मुंगेर के एसपी थे। आज से चार दिन पहले, यानी पांच जनवरी को भीमबांध में नक्सलियों ने उनको बारुदी सुरंग विस्फोट में उड़ा दिया था। उनके साथ ध्रुव कुमार, ओपी गुप्ता, के अंसारी, मो.इस्लाम और शिव कुमार भी शहीद हुए थे। यह 2005 की बात है। आठ साल बीत चुके हैं।

मैं नहीं जानता कि बाडी देख सलामी ठोकने, वीरता की प्रेरणा वाले भाषण देने या मुआवजा के रुपये गिनने की अपनी आदत बना चुके सिस्टम को पांच जनवरी को सुरेंद्र बाबू या बाकी शहीद जवान याद आए या नहीं? उनकी याद में कहीं कुछ हुआ भी या नहीं? शायद नहीं, बिल्कुल नहीं। बहुत जल्द बहुत कुछ भूल जाना सिस्टम का रंग है। और आठ साल तो बहुत होते हैं।

मैं, दूसरी बात कहना चाहता हूं। यह भी सिस्टम का ही रंग है। जानिए, देखिए। अपना सिस्टम, अपनी पुलिस चौदह साल में भी अपने एसपी को मारने वालों के लिए अंतिम सजा की स्थिति नहीं बना पाई है। जब एसपी को शहीद करने वाले इतने दिन में सजा नहीं पा सकें हों, तो आम आदमी व उसकी हैसियत का अंदाज किया जा सकता है। आम आदमी के लिए सिस्टम का अलग रंग होता है। ढेर सारी बातें हैं। तरह-तरह के रंग हैं।

बहरहाल, मैंने जब केसी सुरेंद्र बाबू के मामले को देखा, तो चौक गया। मेरी खातिर यह सिस्टम का एक और रंग था। त्वरित न्यायालय आठ में सत्रवाद संख्या 584-9 एवं अपर जिला एवं सत्र न्यायालय में सत्रवाद संख्या 614-12 में सुरेंद्र बाबू की हत्या से संबंधित मामले की सुनवाई चल रही है। ध्यान दीजिए, नाम त्वरित न्यायालय है। सत्रवाद संख्या 584-9 के दस आरोपियों में से सात जमानत पर बाहर आ चुके हैं। तीन आरोपियों में सुनील कुमार उर्फ बड़का उर्फ लंबू गिरिडीह जेल में है। वचनदेव यादव जमुई जेल में है। नरेश रविदास झाझा जेल में है। अब सिस्टम का यह रंग देखिए-इन तीनों आरोपियों को अभी तक अदालत के सामने पेश नहीं किया जा सका है। यह काम उस पुलिस को करना है, जिसके एसपी मारे गए, साथी-सहयोगी मारे गए; जिसने उनके पार्थिव शरीर के सामने पता नहीं कौन -कौन सी कसमें खाई होंगी; संकल्प लिए होंगे। (यह लाइन इसलिए कि कहा तो यही जाता है)। भीमबांध विस्फोट के बाद पुलिस भड़क गई थी। उसको शांत करने में बड़ी मशक्कत हुई थी। आज …? यह भी सिस्टम का रंग है।

हां, तो कोर्ट इन तीनों आरोपियों को पेश करने के बारे में कई बार कह चुका है। मगर अपना सिस्टम, अपनी पुलिस अभी तक इन तीनों हार्डकोर नक्सलियों को मुंगेर कोर्ट में हाजिर नहीं करवा सकी है। अपर लोक अभियोजक अरविंद कुमार सिन्हा कई बार कह चुके हैं कि इन तीनों के कोर्ट में उपस्थित नहीं होने के कारण आरोप गठित नहीं किया जा सका है। वाह क्या सिस्टम है? उसके कितने-कितने रंग हैं? और इस रंग में एक एसपी, उसकी शहादत …? पटना में बैठा सिस्टम, इसको चलाने वालों में से किसी ने कभी इस बारे में अपनी निचली कतार से पूछा भी है? बीच के दिनों में यह मामला उठा था। सिस्टम अचानक चार्ज हो गया था। अब वह ठंडा सा है। सिस्टम के गरमाने और ठंडा जाने के भरपूर रंग हैं।

मुझे याद है कि सरकार के निर्देश के बाद खडग़पुर के तत्कालीन डीएसपी को इस कांड की जांच की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। उन्होंने अदालत को तेरह आरोपियों की सूची सौंपी थी। इनके विरुद्ध अपर जिला एवं सत्र न्यायालय प्रथम में सुनवाई चल रही है। इनके नाम हैं-मंगल राय, भोला ठाकुर, बचनदेव यादव, शत्रुघ्न यादव, रासो दास, नरेश रविदास उर्फ पताल जी, प्रकाश यादव, मंटू यादव उर्फ भिखारी यादव, दीपक दास, राजकुमार दास, प्रताप राम …, बड़ी लम्बी दास्तान है। जी हां, अपना सिस्टम, अपनी पुलिस ऐसे ही काम करती है।

अभी दरभंगा के आइजी अरविंद पांडेय का एक आदेश पढ़ रहा था। यह वस्तुत: सिस्टम के एक और रंग का खुलासा है। पटना के लिए एक खबर पढऩे को मिली-ट्रैफिक जाम की जानकारी एसएमएस से मिलेगी। मैं समझता हूं, जिस दिन से यह व्यवस्था लागू हो जाएगी, एसएमएस देखकर शायद ही कोई अपने घर से अपनी गाड़ी में निकलेगा। इसलिए कि अगर ईमानदार एसएमएस आएगा, तो चौतरफा जाम की ही जानकारी आएगी। दूसरी खबर-पुलिस, पब्लिक के साथ क्रिकेट और फुटबॉल खेलेगी। इसमें कौन सी नई बात है? अरे, पुलिस, पब्लिक के साथ कौन सा खेल नहीं खेल चुकी है या खेलती है? ये सब भी सिस्टम के नायाब रंग हैं।

… और झाकरी राम

मेरी राय में झाकरी राम जी के बिना सिस्टम का रंग पूरा नहीं हो पाएगा। झाकरी साहब, अपने-आप में एक सिस्टम हैं, उसके रंग हैं। उन्होंने बहुत लोगों को फ्रस्ट्रेशन में डाला हुआ है। जनाब, चावल के ड्रम में नोट रखते थे। इसकी गिनती के लिए बैंक से नोट गिनने वाली बड़ी मशीन मंगानी पड़ी। उन्होंने सबको बालू से तेल निकालने का तरीका बताया है। मैं मानता हूं कि अब भी सिस्टम के ढेर सारे रंग बचे हुए हैं। इनकी चर्चा फिर कभी।

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