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ईमानदारी बची है जी! उस दिन का सीन देखकर मैं क्या, कोई भी नेता के बारे में यह नई धारणा बना लेता। मैं तो अभी तक इस सुखद एहसास से उबर नहीं पाया हूं।
यह सीन कुछ इस प्रकार है। भाजपा कार्यालय में गिरिराज सिंह बैठे हैं। कुछ और बड़े नेता हैं। इलेक्ट्रानिक चैनल वाले पहुंचते हैं। वे कैग (भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक) की रिपोर्ट पर भाजपा की राय जानने आए हैं। दोनों तरफ ढेर सारे अरमान अचानक फुदकने लगे हैं। बोलने-सुनने, दोनों की बेताबी है। नया एंगल आकार पाने वाला है। खैर, गिरिराज स्टार्ट होने ही वाले हैं कि पीछे से एक वरीय भाजपाई की आवाज आती है-अरे, ई रिपोर्ट 31 मार्च 2012 तक की है। तब हमलोग भी सरकार में थे। सीन, यू-टर्न मोड में आ गया है। गिरिराज चुप हैं। सन्न हैं। हां, दूसरे मसले पर वे सरकार के खिलाफ लम्बा बोलते हैं। भाजपा के सभी लोग बोल रहे हैं। डेढ़ महीने से बोल रहे हैं।
मैं देख रहा हूं-कैग रिपोर्ट पर कोई भाजपाई नहीं बोल रहा है। उनकी बकार बंद है, जो डेढ़ महीने में क्या कुछ नहीं बोल गए हैं या जिस बोली की क्रिया-प्रतिक्रिया में बोलने को शायद ही कुछ बचा है? नारको टेस्ट, डीएनए टेस्ट, बीमारी, डाक्टरी …, सबकुछ सामने आ चुकी है। जो रोज सुबह बोलने को कुछ न कुछ निकाल लेते हैं। कैग रिपोर्ट पर बस राजद और कांग्रेस नेताओं की रायल्टी है।
मेरे एक सहयोगी इसे नेता की ईमानदारी के रूप में विश्लेषित किए हुए थे। वे बता रहे थे कि नेता अपने बारे में, अपनी गलतियों के मोर्चे पर चुप रहने की ईमानदारी जरूर दिखाता है; एक इकलौता मौका होता है, जब उसके बारे में पब्लिक की धारणा बदली हुई दिखती है। यह गलत है? कोई बताएगा?
मैं, उस दिन विधानपरिषद में सुशील कुमार मोदी को सुन रहा था-जब बिल गेट्स से ईनाम लेना होता है, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगे हो जाते हैं और मशरक मिड डे मील कांड होता है, तो पीके शाही (शिक्षा मंत्री) जैसे लोगों को बलि का बकरा बना दिया जाता है। और अभी, जब कैग रिपोर्ट पर सरकार, राजद और कांग्रेस का हमला झेल रही है, जब पब्लिक इस शासनिक दावे पर संदेह कर रही है कि सबकुछ बिल्कुल दुरुस्त हो चुका है, कैग के कसूरवारों की कोई जिम्मेदारी बनती है या नहीं? क्या यह बस चुप्पी की जिम्मेदारी है? मेरे एक मित्र, दूसरे को समझाने में लगे थे कि बेशक यह ईमानदारी ही है। वरना …? कैग ने उन विभागों पर भी अंगुलियां उठाईं हैं, जो भाजपा कोटे के मंत्रियों के पास थीं।
मुझे लगता है-यहां भाजपा इस लाइन पर काम रही है कि सरकार या मंत्रिपरिषद की सामूहिक जिम्मेदारी होती है और इसका व्यवहारिक रूप इस प्रकार है-एक की जिम्मेदारी दूसरा झेलता है। इसका एक मतलब यह भी है कि अपनी गलती को दूसरे को झेलते हुए मजे में देखते रहो। यही सच्चाई है।
मुझे, हालांकि यह सच्चाई भी पूरी नहीं लगती है। मैं मानसून सत्र के आखिरी दिन विधानसभा में विशेष बहस के दौरान नेता प्रतिपक्ष नंदकिशोर यादव को सुन रहा था- विभागीय मंत्री (मुख्यमंत्री नीतीश कुमार) नहीं हैं क्या? अब्दुल बारी सिद्दीकी का भी सवाल था-मुख्यमंत्री बीमार हैं क्या हैं? बहस के बाद गृह विभाग के प्रभारी मंत्री के रूप में विजय कुमार चौधरी जवाब दे रहे थे। उन्होंने नंदकिशोर यादव से कई बार कहा-सरकार, सामूहिक जिम्मेदारी होती है। … जब आप मेरे बगल में बैठते थे और मैं किसी विभाग के प्रभारी मंत्री के रूप में बोलता था, तो आप मेरी तारीफ करते थे और आज आप मुख्यमंत्री को खोज रहे हैं? आपका चश्मा क्यों बदल गया है? (ध्यान रहे कि अभी मुख्यमंत्री के पास गृह विभाग है)।
मैं समझता हूं कि इन मसलों की बड़ी दास्तान है। असल में इधर राजनीति में ढेर सारी नई टर्मलाजी आई है। ये सब अभी के सिचुएशन का हिस्सा हैं। एक सिचुएशन है-चीफ गेस्ट। अगर उस दिन गिरिराज सिंह कैग रिपोर्ट पर बोल देते, तो चीफ गेस्ट हो जाते। प्रो.रामकिशोर सिंह चीफ गेस्ट बन चुके हैं। भाई लोग रोज दिन चीफ गेस्ट तलाशते रहते हैं। अभी एक पुराने पत्रकार ने राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद से पूछा-आज चीफ गेस्ट बनिएगा। लालू ने मुस्कुरा कर मना कर दिया। वैसे कुछ दिन पहले उनको चीफ गेस्ट बना दिया गया था। उनके हवाले यह खबर फ्लैश हुई थी कि देश में नरेंद्र मोदी की लहर चल रही है। उन्होंने यह बात दूसरे रूप में कही थी, जो नरेंद्र मोदी के खिलाफ थी। शिवानंद तिवारी भी चीफ गेस्ट बन चुके हैं।
मैं समझता हूं यह सब एक नए सिचुएशन का नतीजा है। यह है-कट एंड पेस्ट। अंग्रेजी के इन दोनों शब्दों का बड़ा सीधा अर्थ है-काटो, जोड़ो। यह राजनीति को बड़ा टेढ़ा बनाए हुए है।
एक और नया सिचुएशन है-हिट एंड रन। अभी तक यह सलमान खान पर चल रहे मुकदमे को लेकर चर्चा में था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे राजनीति में प्रवेश कराया है। उन्होंने खासकर भाजपा को हिट एंड रन विपक्ष कहा है। यानी, मारो और भागो। सुशील कुमार मोदी ने जवाब दिया है-भाजपा, हिट एंड रन अहेड पार्टी है। विजय कुमार चौधरी ने इसे यूं आगे बढ़ाया-हिट, सीट एंड कंपीट। अब मुख्यमंत्री सीट एंड डिबेट की बात कह रहे हैं। कोई मानेगा? क्यों मानेगा?
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