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प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र हुए बीमार, कैसे बनेगा ‘न्यू इण्डिया’

Sach Kadva Hai
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डिजिटल इण्डिया, मेक इन इण्डिया, स्टार्ट अप इण्डिया के नारे के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से एक बार फिर ‘न्यू इण्डिया’ बनाने का सपना साकार करने का ऐलान किया। वहीं दूसरी तरफ आम आदमी आज भी स्वास्थ्य, चिकित्सा, पेयजल, शिक्षा, रोजगार जैसी मूलभूत समस्याओं से जूझता हुआ नजर आ रहा है। जिसमें उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में आॅक्सीजन के अभाव में मासूमों सहित 70 से अधिक मरीजों की मौत होती है और देश के प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री संवेदना व्यक्त कर अपना दुःख बयां कर पूरी घटना पर पर्दा डाल देते हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं विज्ञापनों और कागजों में सिमटकर रह जाती हैं।


PM medicine


इसी तरह केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा 1 जुलाई 2015 को आम जनता एवं गरीबों को 70-80 प्रतिशत तक सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिये प्रधानमंत्री जनऔषधि केन्द्र योजना शुरू की गई थी। भारत सरकार के फार्मास्युटिकल्स विभाग द्वारा इसके तहत बी-फार्मा एवं एम-फार्मा डिप्लोमा प्राप्त युवाओं को केन्द्र खोलने के लिये अधिकृत किया गया था। इसमें केन्द्र संचालक को सरकार द्वारा दवा बिक्री पर 16 प्रतिशत तक मुनाफा, 2 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता, 1 साल की बिक्री पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त इंसेंटिव (अधिकतम 10 हजार रुपये महीने) देने का प्रावधान किया गया था।


इस योजना में मरहम-पट्टी व सिरींज से लेकर कैंसर तक की 757 दवाओं को शामिल किया गया था। मथुरा में करीब 5 माह पूर्व ब्यूरो आॅफ फार्मा पीएसयूएस आॅफ इण्डिया (बीपीपीआई) के नोडल अफसर अवधेश कुमार, गुरुत्व ई-काॅमर्स सर्विसेज के डायरेक्टर वेदप्रकाश, तेज प्रकाश, यूपी उत्तराखण्ड के वाइस प्रेसीडेंट चौधरी विजय आर्य ने प्रमाणपत्र वितरित करते हुए दावा किया था कि इन मेडिकल स्टोर पर 60 से 70 प्रतिशत तक सस्ती दवाएं मिलेंगी तथा चिकित्सकों को भी इस बात के लिए बाध्य किया जाएगा कि वह सरकार के आदेश के तहत जेनरिक दवाएं ही लिखें।


जेनरिक दवाएं नहीं लिखने वाले चिकित्सकों की शिकायत मिलने पर कार्रवाई कराई जाएगी, लेकिन इसके विपरीत जन औषधि केन्द्रों की हालत बदतर है। केन्द्र सरकार का जनता को सस्ती दर पर दवाएं उपलब्ध कराने का दावा हवा-हवाई साबित हो रहा है। इस सम्बंध में मैंने जब मथुरा में बीएसए इंजीनियरिंग काॅलेज रोड स्थित प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र पर सम्पर्क किया तो वहां पूर्ण रूप से सन्नाटा पसरा हुआ था।


केन्द्र संचालक शशीकांत दीक्षित से जब केन्द्र के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा 757 दवाओं का दावा किया गया था, लेकिन इस योजना में मात्र 100 के करीब ही दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। इसमें सर्जिकल एवं महिलाओं की एक भी दवा उपलब्ध नहीं है। सरकार द्वारा 2 लाख रुपये देने का वादा किया गया था, लेकिन आज तक एक फूटी कौड़ी भी प्राप्त नहीं हुई है। किसी भी डाॅक्टर द्वारा जेनरिक दवाओं का पर्चा नहीं लिखा जा रहा है। पूरे दिन में एक हजार रुपये की बिक्री भी नहीं होती है, जिससे मात्र 100-200 रुपये प्रतिदिन की 20 प्रतिशत कमीशन की दर से आमदनी होती है। जबकि दुकान का खर्चा ही 10 हजार रुपये से अधिक प्रतिमाह का है। कम्प्यूटर, प्रिंटर, आॅपरेटर का खर्चा भी उन्हें अपनी जेब से करना पड़ रहा है।


दीक्षित बताते हैं कि सरकार द्वारा कैंसर की दवा पैसीटाक्सल के 100 एम.जी. का इंजेक्शन जो बाजार में 3450 रुपये का है, वह औषधि केन्द्र पर 540 रूपये में जनता को उपलब्ध कराने का दावा किया गया था , लेकिन वह आज तक उपलब्ध नहीं हो सका है। सरकार द्वारा केन्द्र संचालक को एक माह की उधारी पर दवा देना बताया गया था, लेकिन अब एडवांस में लखनऊ की कंपनी को भुगतान करने के बाद दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। इसी तरह एजिथोमाइसिन 500 एम.जी. एंटी बायोटिक टेबलेट जिसका बाजार मूल्य 178 रुपये है, वह 86 रुपये में उपलब्ध कराने का दावा किया गया था, लेकिन उसका प्रिंट रेट 135 रुपये है, जबकि 250 एमजी का बिक्री रेट 70 रुपये है।


दीक्षित के मुताबिक, जनवरी 2017 में शुरू किये गये जनऔषधि केन्द्र से उन्हें अब तक 20 हजार रुपये का मुनाफा भी हासिल नहीं हुआ है। जबकि उनके लाइसेंस की सालाना फीस ही 90 हजार रुपये प्राप्त हो सकती है. वहीं, किसी कंपनी में एमआर की नौकरी करने पर 15000 से 30000 तक का वेतन फार्मासिस्ट को मिल जाता है। जन औषधि केन्द्र से रोजगार मिलना तो दूर, भारी-भरकम घाटे का सौदा साबित हो रहा है। वह बताते हैं कि सरकार की लापरवाही से आगरा में दो जन औषधि केन्द्र बंद हो चुके हैं। अगर सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया, तो वह तथा उनके अन्य साथी भी केन्द्रों को बंद कर कहीं नौकरी करने पर मजबूर होंगे।


इसी तरह मेरठ के किला परीक्षित गढ़ पर संचालित जन औषधि केन्द्र के संचालक विजय पाल सिंह से दूरभाष पर सम्पर्क स्थापित किया गया, तो उन्होंने बताया कि योजना के नाम पर सरकार ने जनता के साथ-साथ उनके साथ भी भद्दा मजाक किया है। ना तो सरकर के पास दवाएं उपलब्ध हैं और न ही शिक्षित बेरोजगारों के लिये रोजगार उपलब्ध है। वह कहते हैं कि जनता केन्द्रों पर दवा लेने के लिए आती है, लेकिन उसे निराश होकर लौटने पर मजबूर होना पड़ता है। केन्द्रों पर चर्म रोग की कोई दवा उपलब्ध नहीं कराई गई है, जबकि वर्षा के मौसम में जनता के लिये यह दवाएं महत्वपूर्ण हैं। जो दवा एक बार उपलब्ध करा दी जाती है, वह फिर कभी दोबारा नहीं मिलती है।


कानपुर के किदवई नगर में केन्द्र संचालक सुजीत कुमार मिश्रा की पत्नी गायत्री मिश्रा ने दूरभाष पर कहा कि केन्द्र सरकार की यह योजना भाषणों और कागजों तक सिमट कर रह गई है। जन औषधि केन्द्र उनके लिये जी का जंजाल साबित हो रहा है। जनता दवा न मिलने पर अभद्रता करने पर उतारू हो जाती है और आरोप लगाती है कि जान-बूझकर दवाएं नहीं दी जा रही हैं, उन्हें ब्लैक में बेचा जा रहा है।


मिश्रा का कहना है कि सरकार द्वारा जारी सूची में 757 दवाओं का विवरण दिया गया है, लेकिन 600 से अधिक दवाएं उपलब्ध नहीं करा पा रही है। सरकार को उन दवाओं को राष्ट्रीय सूची से हटा देना चाहिए, जिससे जनता से विवाद का सामना न करना पड़े। वह बताती हैं कि केन्द्रों को प्राजोसिन लोप्रामाइड, मेटोक्लोप्रामाइड टेम्सुलोसिन, मल्टी विटामिन्स, फेब्युक्सोस्टेट, एएसपी, आइरन सीरप, कीटोकोनाजोल, विटामिन बी काॅम्पलैक्स, पीरसेटम जैसी दवाएं एक बार उपलब्ध कराने के बाद दूसरी बार उपलब्ध नहीं कराई गई हैं, जिन्हें लेकर आये दिन केन्द्रों पर जनता हंगामा करती है। इससे जन औषधि केन्द्रों का संचालन बहुत मुश्किल होता जा रहा है।


उनका कहना है कि कोई भी डाॅक्टर पर्चों पर साल्ट का नाम नहीं लिख रहा है, जिसकी शिकायत उन्होंने लोकवाणी पोर्टल पर नवम्बर 2016 में की। इसका निस्तारण पोर्टल पर तो कर दिया गया, लेकिन जमीनी हकीकत में शिकायत की कोई जांच ही नहीं की गई है। वह कहती हैं कि स्वयं उन्होंने कानपुर के ‘बड़ा चैराहा’ स्थिति उर्सला हाॅस्पिटल में पर्चा बनवाकर डाॅ. गौतम जैन को दवा का साल्ट लिखने के लिये कहा था, लेकिन उन्होंने भी इसे नजरअंदाज कर दिया था। यही वजह है कि जनऔषधि केन्द्रों पर डाॅक्टरों का कोई भी पर्चा मरीज लेकर नहीं आते हैं। एक तरफ केन्द्र सरकार योजना के प्रचार-प्रसार पर अरबों की राशि खर्च कर रही है, वहीं दूसरी तरफ औषधि केन्द्र स्वयं बीमार होते नजर आ रहे हैं।


जन औषधि केन्द्र की वेबसाइट के मुताबिक पूरे देश में 2149 जनऔषधि केन्द्र खोले गये हैं। इसमें उत्तरप्रदेश में 301, गुजरात में 188, कर्नाटक में 127, राजस्थान में 75, महाराष्ट्र में 162, दिल्ली में 27, पंजाब में 58, हरियाणा में 46, उत्तराखण्ड में 62, मध्यप्रदेश में 63, त्रिपुरा में 20, मिजोरम में 6, आंध्रप्रदेश में 102, उड़ीसा में 44, चंडीगढ़ में 5, जम्मू कश्मीर में 23, हिमाचल प्रदेश में 23, झारखण्ड में 40, बिहार में 39, केरल में 261, छत्तीसगढ़ में 171, अरूणाचल प्रदेश में 21, तेलंगना में 46, तमिलनाडु में 137, असम में 42, पश्चिम बंगाल में 9, नागालैण्ड में 11, मणिपुर में 30, दादर और नागर हवेली में 5, दमन एवं दीव में 1 तथा पांडिचेरी में 3 जनऔषधि केन्द्रों को लाइसेंस जारी किये गये हैं।


इसमें सबसे बदतर हालत यूपी के जनऔषधि केन्द्रों की है, जहां न दवा है और न ही मरहम पट्टी है। कागजों और विज्ञापनों में यह योजना तेजी से हवा में दौड़ रही है, जो आम जनता के साथ बेहूदा मजाक साबित हो रही है। जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लालकिले से ‘न्यू इण्डिया’ का सपना साकार करने का ऐलान कर रहे हैं। अगर नई योजनाओं की बजाय पुरानी योजनाओं को ही वह साकार रूप दे दें, तो शायद यह भारत देश पूरे विश्व में नया ही नजर आने लगेगा।

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