Menu
blogid : 24449 postid : 1300141

मोदी जी! नोटबंदी घोटाले के लिये जिम्मेदार कौन ?

Sach Kadva Hai
Sach Kadva Hai
  • 14 Posts
  • 7 Comments

2000 Note scam

कालाधन पर अंकुश के लिये लागू की गई नोटबंदी योजना आम जनता, मजदूर, साधारण व्यापरी, किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रही है, वहीं भ्रष्ट व्यवस्था के चलते बैंक अफसरों, दलालों, माफियाओं के लिये यह योजना भी सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी साबित हुई है। जहां आम जनता को कई-कई दिनों तक लाइनों में लगने के बाद भी बैंक और एटीएम से हजार रूपये भी नसीब नहीं हो रहे हैं वहीं दलाल-माफियाओं तक करोड़ों की नई करेंसी भण्डार के रूप में जमा हो गई है जो छापेमारी के दौरान जगह-जगह से बरामद हो रही है। जिससे मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगना शुरू हो गया है।

करोड़ों की नई करेंसी के बरामद होने के बाद जहां बैंक अफसरों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वहीं मोदी सरकार का बचाव किया जा रहा है। लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारी-भरकर रकम बैंको से बदली गई या फिर बैंक पहुंचने से पहले ही हेरा-फेरी का खेल-खेला गया। क्योंकि सैकड़ों-करोड़ की अदला-बदली के खेल में अकेले बैंक अधिकारी एवं कर्मचारियों को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। बल्कि केन्द्र सरकार की नीति और नीयत भी कम जिम्मेदार नहीं है जिसने विपक्षी नेताओं को पटखनी देने के नाम पर बगैर किसी पारदर्शिता, स्वच्छता-तैयारी के आनन-फानन में नोटबंदी की योजना को लागू कर पूरे देश की जनता को आर्थिक आपातकाल की आग में झोंक दिया। मोदी सरकार ने ना तो यह देखा कि देश में कितने एटीएम लगे हुए हैं और उनमें से कितने प्रतिशत एटीएम चालू हालत में है। आप को जानकार हैरानी होगी कि दो लाख से अधिक एटीएम में करीब 70 प्रतिशत एटीएम खराब/बंद पड़े हुए थे। जिसमें 95 प्रतिशत ग्रामीण अंचल के एटीएम मात्र शोपीस के रूप में लगे हुए हैं। रही-सही कसर दो हजार के नोट का पैनल एटीएम में न लगने से पूरी हो गई।
केन्द्र सरकार एवं आरबीआई की नीति एवं नीयत पर इसी से प्रश्न चिन्ह लगता है कि जब नये दो हजार के नोट छपने का कार्य तीन माह से चल रहा था तो उसी समय से एटीएम में पैनल क्यों नहीं लगवाये गये और खराब एटीएमों को क्यों नहीं सही कराया गया। एक ओर एटीएम बगैर राशि के सुनसान नजर आ रहे थे या फिर मामूली रकम डालकर संचालन दिखाया जा रहा था वहीं दूसरी तरफ बैंक अफसर-माफिया मिलकर सैकड़ों करोड़ की रकम (जो लाखों करोड़ भी हो सकती है) को पर्दे के पीछे से अदला-बदली करने में लगे हुए थे। जबकि केन्द्र सरकार एवं बैंक अफसर अव्यवस्था के लिये जनधन खातों, मजदूरों, छोटे व्यापारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए उन पर नये-नये नियम-कानून बनाकर थोपे जा रहे हैं। जिसमें जनधन खातों में जमा की राशि में कोई निकासी न होने से हजारों करोड़ की नई करेंसी माफियाओं तक पहुंच गई। इसमें दो हजार के सभी नोट अलग-अलग लगातार सीरीज में बताये जा रहे हैं।
नोटबंदी योजना में राहुल गांधी, केजरीवाल, मायावती, ममता बनर्जी आदि विपक्षी नेता मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ घोटाले के आरोप लगाते रहे हैं। लेकिन वह इसके खिलाफ कोई सबूत नहीं दे पाये हैं। नोटबंदी योजना की अव्यवस्था के लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, वित्तमंत्री अरूण जेटली और आरबीआई अधिकारी बैंक अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही उसी तरह कर रहे हैं जिस तरह यूपीए सरकार के दौरान 2जी स्पैक्ट्रम से लेकर अन्य घोटाले में शामिल मंत्रियों-अफसरों के खिलाफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सख्त कार्यवाही कर ईमानदार नेता होने का परिचय दिया था। इसी तरह उत्तरप्रदेश में स्वास्थ्य विभाग (एन.आर.एच.एम.) में हुए हजारों करोड़ के घोटाले में मायावती ने भी दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही कर ईमानदार मुख्यमंत्री होने का परिचय दिया था। मध्य प्रदेश में हुऐ व्यापमं घोटाले के दोषियों को जेल भेजकर शिवराज सरकार ने भी ईमानदार होने का प्रमाणपत्र जनता को दिया था। इसी तरह के तमाम घोटाले हैं जहां बड़े नेताओं ने अपने छोटे नेताओं और अफसरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही कर ईमानदार होने का परिचय दिया है। जिस तरह तमाम घोटालों और हत्याओं के बावजूद भी मनमोहन, सोनिया, राहुल गांधी, माया-शिवराज बेदाग साबित हुए उसी तरह नोटबंदी में हुए घोटाले के बावजूद मोदी और जेटली की ईमानदारी पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता है?
कालाधन अंकुश के नाम पर जिस तरह देश की सवा सौ करोड़ से अधिक की जनता को आर्थिक आपातकाल की आग में झौंका गया, क्या भ्रष्ट नेताओं, अफसरों, माफियाओं के खिलाफ कोई सख्त कदम उठाये गये। मजदूरों के जनधन खातों में जमा रकम की निकासी पर रोक, लाइन में लगी जनता की अंगुलियों पर स्याही के इंतजाम तो किये गये लेकिन राजनैतिक पार्टियों के चंदे में पारदर्शिता, उनके खातों को डिजिटलाइज करने, राजनैतिक पार्टियों को चन्दा चैक से लेने, पार्टियों को सूचना अधिकार (आरटीआई) के दायरे में लाने, राजनैतिक नेताओं, आयकार विभाग प्रशासनिक अफसरों द्वारा जुटाई गई अवैध सम्पत्ति की जांच कराने एवं चुनाव सुधार के लिये काई सख्त कदम नहीं उठाये गये।
एक तरफ मोदी सरकार ई-पेमंेट (कैशलेस) योजना को लागू करने पर जोर दे रही है वहीं दूसरी तरफ आजादी के 70 वर्ष बाद भी देश के लाखों गांव ऐसे हैं जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, विद्युत, सड़क, पेयजल जैसी मूलभूत आवश्यकता भी पूरी नहीं हो पा रहीं हैं। वहां ई-पेमंेट योजना कैसे लागू होगी इसका सरकार को भी पता नही है। उ.प्र. के सरकारी स्कूल-थानों में सरकार द्वारा कम्प्यूटर उपलब्ध कराये गये। जिसमें ग्रामीण अंचल के कम्प्यूटर इसलिए शोपीस बन गये क्योंकि या तो वहां विद्युत पहुंची ही नही थी और जहां पहुंची भी तो पढ़ाई के समय विद्युत आती नही है। इसी तरह ग्रामीण अंचल की बैंकों में कहीं विद्युत-जनरेटर तो कभी इंटरनेट अव्यवस्था के चलते कई-कई दिन तक बैंकिंग सेवाऐं ठप रहती हैं। जिससे ग्रामीण जनता दैनिक लेन-देन के मामले में बैंक से दूरी बनाये रखती है।
ग्रामीण अंचल के विकास की हालत का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि प्राइवेट मोबाइल कम्पनी से लेकर सरकारी टेलीकाॅम कम्पनियों के टावर कर्मचारी डीजल बचाने के लिये जनरेटरों को ही कई-कई घण्टे तक बंद कर देते हैं जिससे पूरे-पूरे दिन मोबाइल सेवा ही ठप हो जाती है। ग्रामीण अंचल में ई-पेमेंट की व्यवस्था लागू करना जनता को मुसीबतों के दल-दल में धकेलना जैसा है। प्रधानमंत्री के कालाधन पर अंकुश के कदम की हर जगह प्रशंसा हो रही है। जनता भी झेलने को तैयार है। लेकिन क्या ये मुसीबतें नेताओं, अफसरों, माफियाओं, उद्योगपतियों के हितों के लिये बनाई गई हैं। प्रधानमंत्री मोदी जी अगर आपकी नीति और नीयत ईमानदार है तो सबसे पहले अपनी पार्टी के सबसे भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ सख्त कार्यवाही कर उनकी सम्पत्ति जब्त करायें, आयकर विभाग के उन भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करें जो करोड़ों की रिश्वत देकर मनचाही तैनाती पाकर करोड़ों-अरबों की सम्पत्ति के मालिक बन बैठे हैं। इसके अलावा राजनैतिक पार्टियों के चन्दों पर सख्त पहरा लगायें, उन्हें आरटीआई के दायरे में लायें, भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून पारित करें जिससे देश की त्रस्त जनता को वास्तविक रूप से राहत मिल सके। ना कि नोटबंदी के नाम पर उसका शोषण हो। अगर मोदी जी और उनके अंधभक्त शासन-प्रशासन में पूर्ण ईमानदारी के समर्थक हैं तो वह गाली देने के स्थान पर इस कहानी पर अवश्य विचार कर आत्म मंथन करें।
बहुत दिन पहले की बात है एक राजा था बहुत ही ईमानदार, किन्तु उसके राज्य में हर तरफ अशांति थी। राजा बहुत परेशान।
उसने घोषणा करवाई कि जो मेरे राज्य को सही कर देगा उसे पांच लाख का इनाम दूंगा।
सभी मंत्रियों ने कहा कि यह राशी बहुत कम है।
राजा ने फिर घोषणा करवादी कि वह अपना आधा राज्य दे देगा। लेकिन कोई भी उसके राज्य को ठीक करने के लिए आगे नही आया।
कुछ दिनों बाद एक सन्यासी आया और बोला- महाराज मै आपका राज्य ठीक कर दूंगा और मुझे पैसा भी नही चाहिए और आपका राज्य भी नही चाहिए। पर आपको मेरी एक शर्त माननी होगी कि किसी भी शिकायत पर मै जो फैसला करूंगा आपको वो मानना होगा।
राजा ने शर्त मान ली।
अब सन्यासी ने राजा से कहलवाकर राज्य भर से शिकायत मंगवाई।
राजा के पास टोकरे के टोकरे भर भर कर शिकायत आने लगी। जब शिकायत आनी बंद हो गयी तो सन्यासी ने राजा को किसी एक पर्ची को उठाने को कहा।
जब राजा ने एक पर्ची उठा कर उसकी शिकायत पढ़ी तो वह सन्न रह गया।
उसमे लिखा था – मै एक गरीब किसान हूँ और राजा का लड़का मेरी लडकी को छेड़ता है, अब मै किसके पास शिकायत लेकर जाऊ।
यह सुनकर उस सन्यासी ने कहा- राजा तू अपने लडके को कल जेल में डाल दो |
राजा के यह सुनकर आशू आ गये क्योकि वह उसका इकलोता लड़का था और ऐसा करने से मना किया।
सन्यासी ने राजा को कहा कि तुमने मुझे कहा था कि तुम मेरी शर्त मानोगे।
फिर राजा ने वैसा ही किया और दूसरे दिन अपने बेटे को जेल में डाल दिया |
इसके बाद राजा ने सन्यासी से कहा कि क्या दूसरी पर्ची उठाऊ?
सन्यासी ने कहा- राजन अब किसी पर्ची को उठाने की जरूरत नही । इन सब में अब तुम आग लगा दो।
जिस देश का राजा एक शिकायत मिलने पर अपने बेटे को जेल में डाल सकता है , उस देश में कोई भी अब अपराध करने का साहस नही कर सकता।
और सच में उस राजा का राज्य बिलकुल सही हो गया।
किसी ने सच ही कहा है जिस देश का राजा जैसा होता है, उस देश की प्रजा भी वैसी ही हो जाती है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh