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प्रतिभा: गांव के छोरे का कमाल, किसान से बन गया दो कम्पनियों का मालिक

Sach Kadva Hai
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कृष्ण कुमार पाठक

कहते हैं कि ऊँची उड़ान पंखों से नहीं हौंसलों से होती है अगर हौसलों को जुनून की हवा का साथ मिल जाये तो फिर बात ही क्या। कुछ ऐसे ही जज्बे और जूनून की पूंजी के साथ कृष्ण कुमार पाठक ने सभी नाकामियों को पीछे धकेलते हुए सफलता की एक मिसाल पेश की है। जिन्होंने पहले तो पढ़ाई की लेकिन पढ़ाई में मन ना लगने पर खेती-खलिहान का 6-7 वर्षों तक कार्य किया लेकिन खेती से मोह-भंग हुआ तो एमबीए की पढ़ाई की और फिर ऐसा इतिहास लिखा कि परिवार तो परिवार पूरा समाज ही दातों तले अंगुली दबाने पर मजबूर हो गया। एक कम्पनी में कर्मचारी से सफर तय करने वाला गांव का यह युवा डिजिटल मीडिया में जाना पहचाना नाम बन गया है। बल्कि दो प्राइवेट लि. कम्पनियों के एमडी की मंजिल तक का सफर तय कर लिया है। कृष्ण पाठक का जन्म मथुरा जनपद के छोटे से कस्बा नौहझील में शिक्षक छेदालाल पाठक जो कि एक किसान परिवार के रूप में भी जाने जाते हैं के यहां हुआ जहां प्रारम्भिक शिक्षा एक छोटे से प्राइवेट स्कूल इन्दिरा बाल निकेतन में की। इसके बाद इण्टर बीए करने के बाद पढ़ाई में मन ना लगने पर शिक्षाध्यन छोड़कर परिवार के साथ खेत-खलिहान में कार्य करना शुरू कर दिया। लेकिन 6-7 साल तक खेती-बाड़ी का कार्य करने के बाद पुनः बड़े भाई ने बीएड में दाखिला कराया लेकिन वहां भी पढ़ाई में मन नहीं लगा तो उन्हें राजीव एकेडमी मथुरा के काॅलेज में एमबीए में दाखिला दिला दिया। जहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद कई माह तक नौकरी तलाश करने के बाद 2007 में यू.के. की एक कम्पनी डिजीटिल मीडिया में नौकरी हासिल की। जहां दो साल नौकरी करने के बाद 2009 में भारतीय डिजीटल मीडिया एजेंसी ज्वाइन कर जुलाई 2015 तक नौकरी की।
नौकरी के दौरान जहां देश-विदेश की नामी-गिरामी कम्पनियों के साथ तमाम खट्टे-मीठे अनुभव प्राप्त हुए बल्कि अपनी कम्पनी बनाने का जुनून सवार हुआ। जिसका परिजनों ने विरोध किया। लेकिन कहते हैं कि जोश और जुनून के आगे बाधाऐं कोई मायने नहीं रखती हैं। यही कृष्ण पाठक के जीवन में घटित हुआ। उन्हें इसमें उनकी पत्नी शीतल पाठक ने हौसला अफजाई की और देखते ही देखते एडवर्ड मीडिया प्रा.लि. के नाम से बनाकर दिल्ली से अपना कारोबार शुरू कर दिया। जिसने पहले महीने में ही 6 लाख का कारोबार हासिल किया। इसके बाद कम्पनी ने ऊँची उड़ान भरना शुरू किया तो कृष्ण पाठक ने दूसरी कम्पनी के.पी. मीडिया प्रा.लि. बनाकर उसे भी मजबूती प्रदान कर दी। इसमें तीन माह में उनकी पत्नी शीतल ने जमकर मेहनत कर कम्पनी को नई पहचान दी। श्री पाठक कहते हैं कि पत्नी और परिवार के सहयोग से उनकी कम्पनी का कारोबार 15 करोड़ वार्षिक पर पहुंच गया है। बल्कि उनके कारोबार दिल्ली, मुम्बई, बंगलोर तक फैल गया है।
श्री पाठक कहते हैं कि इस समय उनकी कम्पनी के साथ देश-विदेश की 100 से अधिक कम्पिनियां जुड़ी हुई हैं। जिसमें स्नैपडील, एचपी, मिंत्रा, फ्लिपकार्ट, मारूति, फोर्ड, ह्युण्डई, मेकमाईट्रिप, हार्लिक्स जैसी प्रमुख कम्पनियां शामिल हैं। बचपन में दोस्तों की हंसी का पात्र बनने वाले श्री पाठक कहते हैं कि बचपन में उनके दोस्त पढ़ाई के नाम पर आलसी-बुद्धू कहते थे जिसकी उन्हें काफी वेदना थी। लेकिन उनके अन्दर कुछ अलग कार्य करने का जुनून सवार था। जिसके कारण वह इस मंजिल तक पहुंचने में सफल रहे। वह बताते हैं कि वैसे तो उनके कार्यालय में मात्र 7 लोगों का स्टाफ है। लेकिन सभी व्यवस्थाएं आॅनलाइन एवं इण्टरनेट जुड़ने के कारण कार्य की प्रगति बहुत तेज है। जिसके कारण असुविधा होते हुए भी वह सहयोगियों के साथ अपना कार्य समय पर निपटाने के प्रति संकल्पवद्ध रहते हैं।
श्री पाठक कहते हैं कि उनके उद्देश्य कम्पनी का नेटवर्क सात समुन्दर पार पहुंचाना है। जिसमें वह एक दिन अवश्य सफल होंगे। चार भाई एक बहिन में सबसे छोटे कृष्ण पाठक ने एक सामान्य कर्मचारी से नौकरी शुरू करते हुए अपने हुनर से मैनेजर, वाइस प्रेसीडेण्ट का सफर करते हुए व अपनी दो कम्पनियों के एमडी होने तक की मंजिल मात्र 8 वर्ष में हासिल कर साबित कर दिया है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती और वह अपना रास्ता खुद बना लेती है।

मफतलाल अग्रवाल
(लेखक विषबाण मीडिया ग्रुप के संपादक एवं स्वतंत्र पत्रकार तथा सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

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