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साइबर हमले और चुनौतियाँ

mahendra51
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जैसा कि हम सभी जानते है कि आज भारत विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत अपने सेवा सेक्टर मे बहुत ही तेज़ी से ग्रोथ कर रहा है तथा सकल समवर्धन मूल्य और इसमें इसकी भागीदारी 55 प्रतिशत है। भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतरवाह में दो-तिहाई और कुल निर्यात में 38 प्रतिशत है। सेवा क्षेत्र में भी सबसे अहम् भूमिका सूचना प्रौद्योगिकी की है। इसकी हिस्सेदारी अकेले ही 51.2 प्रतिशत लगभग़ है। (स्रोत:आर्थिकसमीक्षा २०१९-२०)

 

 

 ज़ाहिर सी बात है जब आई टी सेक्टर की भूमिका हर क्षेत्र में बढ़ रही है तो दुनियाभर के साइबर अपराधियों की नज़र भी अब भारत पर भी होगी। आज भारत जिस तेज़ी के साथ आगे बढ़ रहा, उसपर साइबर हमलों का ख़तरा भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ रहा है। अपने डिजिटल संसाधनों के डेटा चोरी और उसके दुरूप्रयोग होने का डर भी अब सताने लगा है। हालाँकि भारत सरकार द्वारा समय-समय पर लोगों को सचेत किया जाता रहता है। बावजूद भी हम आए दिन ये सुनते रहते है कि आज फला व्यक्ति ऑनलाइन ठगी का शिकार हुआ।यहाँ तक ये हैकर पुलिस के बड़े अधिकारियों को भी नही छोड़ रहे है। हाल ही में एक पुलिस अधीक्षक के खाते से पैसे बिना उसकी जानकारी के निकाल लिए गया। उसे जब मोबाइल में संदेश आया तब पता चला।

 

 

इस समय समस्त विश्व इन साइबर हैकरों से परेशान है। ऐसे में भारत भी अछूता नही रह सकता है। जैसा कि हम सभी को ज्ञात है कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा 1 जुलाई, 2015 को डिजिटल इंडिया योजना भारत को डिजिटल तौर पर सशक्त बनाने के लिए शुरू किया गया था। जिसका मुख्य उद्देश्य देश एवं प्रदेश के सभी सरकारी दफ़्तरों और सेवाओं को गाँवों से डिजिटल रूप में जोड़ना है। जब इतना कुछ डिजिटल हो रहा है तो देश के नागरिकों की प्रत्येक जानकारी भी डिजिटल रूप में ही स्टोर की जायेगी। इसी स्टोर डेटा के चोरी होने का सबसे बड़ा ख़तरा हमेशा बना रहता है।

 

 

अब बात करते है दुनियाँ के पहले साइबर हमले की, जिसका नाम “ द अरिजिनल लॉजिक बम” था। इसे किसी हैकर द्वारा नही किया गया था और न ही यह व्यक्तिगत हमला था। ऐसा कहा जाता है कि इस हमले को सीआईए द्वारा वर्ष 1982 में शीतयुद्ध के दौरान रुस की सायबेरियन गैस पाइप लाइन को कम्प्यूटर प्रोग्राम के द्वारा ब्लास्ट कराया गया था। वर्ष 1983 में दक्षिण कैलफ़ोर्निया विश्वविद्यालय के स्नातक के छात्र “फ़्रेड कोयन” कम्प्यूटर वैज्ञानिक द्वारा पहली बार वायरस का प्रयोग किया गया था। दुनिया का प्रथम वायरस जिसे “ब्रेन” नाम से जाना जाता है। इसे वर्ष 1986 में पाकिस्तान द्वारा IBM PC के लिए प्रोग्राम किया गया था। यह कम्प्यूटर वायरस दुनिया भर में फैलकर कई कम्प्यूटर को प्रभावित किया था। वर्ष 1987 में पहली बार बर्ड्ज़ फ़्रिकस द्वारा “वियना” वायरस के लिए एक एंटी वायरस बनाया गया था। यहीं से एंटी वायरस का जन्म हुआ। 

 

 

 12 मई, 2017 को विश्व का अबतक का सबसे बड़ा एवं ख़तरनाक साइबर हमला, जिसे “रैनसम वायर” नाम दिया गया था। इसने सर्वप्रथम ब्रिटेन के स्वास्थ्य विभाग को अपना शिकार बनाया। इसके बाद इसने अमेरिका की कूरीयर कम्पनी फ़ेडेस को हैक किया। इस तरह इसने विश्व के उन तमाम कम्प्यूटर को हैक किया जो अभी भी विंडोज़ का पुराना ओपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल कर रहे थे। लगभग़ 100 से अधिक देश इसका शिकार हुए। सबके सिस्टम को पूरी तरह लॉक कर दिया। उनके निजी डेटा को वापस करने के लिए एक तरह से फ़िरौती माँगी। अब सवाल उठता है बड़ी-बड़ी अंतरराष्ट्रीय कम्पनी जो एंटी वायरस बनाती है, वो ये दावा करती है की सभी तरह के मैल्वेर, ट्रोजन, स्पाई डीबग्ज़ आदि को रोकने का दावा करती हैं, वो इस हमले को रोक क्यों नही पायी ? तो उसका जवाब है कि हर प्रोग्राम में कोई न कोई लूप होल होता है, बस उसे खोजना होता है। उस key तक पहुंचना होता है जिसके द्वारा प्रोग्राम को मॉडिफ़ाई किया जा सके। हैक़र यही key खोजते है और उसी के अनुसार अपना वायरस को प्रोग्राम करते है।

 

 

अब प्रश्न उठता है कि इन साइबर हमलों से बचने का उपाय क्या है ? तो विशेषज्ञों का कहना है कि जागरूकता ही इन हमलों से बचने का उपाय है। सी॰ई॰आर॰टी॰ भारत सरकार का निकाय है, जो समय समय पर इन साइबर हमलों एवं अपराधों से बचने के उपाय सोशल मीडिया, समाचार पत्रों, T.v. आदि के माध्यम से लोगों तक पहुँचाई जाती रहती है। लेकिन इतनी जागरूकता के बाद लोग अब भी ऑनलाइन जालसाज़ी का शिकार क्यों हो रहे है ? दरसल आम स्मार्ट फ़ोन उपभोक्ता प्ले स्टोर से फ़्री ऐप्लिकेशन डाउनलोड करते है। गूगल पर बिना एच॰टी॰टी॰पी॰एस॰ वाली website पर लॉगिन करते है। जहां से उनके फ़ोन में बिना जानकारी से हैक़र कोई न कोई ट्रैकर एवं ट्रोजन भी भेज देते है। ये अधिकतर फ़्री एंटीवायरस के साथ आते है। ये फ़्री एंटी वायरस भी एक तरह का वायरस ही होता है। सी॰ई॰आर॰टी॰ के अनुसार प्रत्येक सेकंड लाखों वायरस हमले भारत पर किए जाते है। हम इन्हें ब्लॉक करते रहते है। इतने के बावजूद उपभोक्ता को जानकारी के अभाव में वो इसका शिकार हो जाता है। गूगल प्ले स्टोर से जो भी ऐप हम डाउनलोड करते है, जब उसको इंस्टाल करते है तो वो आपसे कुछ बातों की अनुमति माँगता है। ज़्यादातर उपभोक्ता सभी तरह की अनुमति दे देते है। बिना ये देखे कि इस ऐप को इसकी आवश्यकता है भी की नही।

 

 

उपरोक्त ग़लतियों के अतिरिक्त अधिकतर उपभोक्ता अपनी Emil आई॰डी॰ और पासवर्ड वही रखते है, जो आधार, बैंक आदि सेन्सिटिव जगहों प्रयोग हो रहा होता है। यही वो आम ग़लतियाँ है जो उपभोक्ता करता है। हैकर को आपकी ईमेल और मोबाइल नम्बर से जानकारी पाना बेहद आसान हो जाता है, इसी जानकारी से वो आपको काल करते है और बैंक अकाउंट की जानकारी, ओ॰टी॰पी॰ आदि पूछकर, आपसे धोखाधड़ी करते है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत दुनिया में सर्वाधिक साइबर हमलों का शिकार होने के मामले में दूसरे नम्बर है। भारत सरकार को इस तरह के साइबर हमलों से निपटने के लिए एक ऐसा नेटवर्क तैयार करना होगा जो हमला करने वाले की लोकेशन और पहचान तीव्रता की के साथ ही उसकी सटीक जानकारी भी मिल सके। अभी हैकरों को पकड़ना आसान नही है। वे अपनी पहचान छिपाकर बड़ी चतुराई से अपने कार्य योजना को अंजाम दे रहे है। वे वी॰पी॰एन॰ और ओनीयोन ब्राउज़र की मदद से बिना अपनी सही पहचान और लोकेशन एवं आई॰पी॰अड्रेस बताए, समूह बनाकर या व्यतिगत हमले करते रहते है। कभी-कभी ये हमले एक देश दूसरे देश की व्यापारिक और आर्थिक गतिविधियों की जानकारी हासिल करने के लिए भी करवाते रहते है। दुश्मन देश की रक्षा प्रणाली पर भी साइबर हमले करवाते रहते है। इन देशों में चीन,रसिया, दक्षिण कोरिया, सीरिया आदि देश शामिल है।

 

 

उपरोक्त तथ्यों से यह निष्कर्ष निकलता है चूँकि इंडिया भी बहुत तेज़ी से डिजिटल हो रहा है, इसलिए इसको भी अपने लिए एक मज़बूत संचार निगरानी प्रणाली बनाने की तत्काल आवश्यकता है। ताकि नागरिकों और सरकार पर साइबर हमले कम से कम हो।

 

 

 

(नोट -उपर्युक्त विचार लेखक के निज़ी विचार है, इससे सहमत या असहमत होने का आपको पूर्ण अधिकार है। लेकिन लेख का इरादा किसी सरकार या संस्था या व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धूमिल करना नही है।)

महेन्द्र वीर विक्रम सिंह✍

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