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महानता!

maharathi
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पहले ही बता दूं कि आलेख किसी सत्य घटना विशेष से प्रेरित हो सकती है किन्तु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर वास्तविक नहीं है। नाम, स्थान भी काल्पनिक हैं। किसी व्यक्ति या संस्था की छवि को धूमिल करने का न तो लेखक प्रयास है न ही मानसिकता। यदि कोई घटनाक्रम,नाम या स्थान मेल खा जाता हैए तो वह एक संयोग मात्र ही है। फिर भी यदि किसी व्यक्ति या संस्था को ऐसा लगता है कि उसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आघात लगा है तो लेखक पूर्व में ही क्षमा प्रार्थी है।

खाली सीटों या कम फीस पर विश्व विद्यालय प्रबन्धन को विश्व विद्यालय में छात्रों को प्रवेश देना व्यावहारिक रूप से कदापि संभव नहीं है क्योंकि विश्व विद्यालय के भारी भरकम खर्चे इसी फीस से चलते हैं। अन्यथा विश्व विद्यालय के अस्तित्व पर ही एक बड़ा सा प्रश्न चिन्ह लग जायेगा। इसमें तनिक भी दो राय नहीं है अपितु वास्तविकता यही है। झूठी, फरेबी और लुटेरी सरकारों की दिखावे वाली लुभावनी बातें बस केवल बकवास हैं।
एक विश्व विद्यालय को कुछ पाठ्यक्रमों की कक्षाओं में आज तक ही प्रवेश देने थे, क्योंकि आज प्रवेश की अन्तिम तिथि निर्धारित थीं। विश्व विद्यालय में सीटें निर्धारित थीं जिनका भरा जाना आवश्यक था। क्योंकि कुछ सीटें अभी तक खाली रह गयी थीं।

विश्व विद्यालय ढ़ूंढ़ ढ़ूंढ कर एस.सी. और एस.टी. के छात्रों को प्रवेश देने के लिए मजबूर है। आज प्रवेश एस.सी. और एस.टी. के बच्चों के दरवाजे पर पहुंच कर दरवाजा पीट रहा है। कारण है कि इनकी फीस सरकार से बिना किसी मशक्कत के, आसानी से एवं अनिवार्य तथा आवश्यक रूप से मिल जाती है। कई बार दुत्कार खाने के बाद भी प्रवेश उसके दरवाजे पर ही खड़ा दरवाजा खटखटा रहा है।

एस.सी. और एस.टी. वर्ग का वह छात्र पढना नहीं चाहता है तभी तो इतनी सुविधाओं के चलते भी उसने अभी तक कहीं कोई प्रवेश नहीं लिया। लेकिन प्रवेश उसके दरवाजे से हटने के लिए तैयार नहीं है। समझाये जा रहा है कि पढने पर उसे छात्रवृत्ति मिलेगी, सरकार फीस दे देगी, विश्व विद्यालय पढाई पूरी होते होते उसकी नौकरी की व्यवस्था भी कर देगा।

दूसरी ओर, एक छात्र जो कि मध्यम वर्गीय सवर्ण है, पिछले कई दिनों से विश्व विद्यालय के चक्कर लगा रहा है। उसके पास विश्व विद्यालय को देने के लिए भारी भरकम फीस का अभाव है और न ही कुटिल सरकारें मध्यम वर्गीय सवर्ण छात्रों को कोई सहायता देती हैं। वो बेचारा पढना चाहता है, आगे बढना चाहता है लेकिन उसका एक ही दोष उसके आढे आ रहा है कि वह मध्यम वर्गीय सवर्ण है।

वास्तविकता तो यह है कि चाहे पढने के लिए फीस की सुविधा हो, नौकरी में आरक्षणए रोजगार, घर घर बिजली, गैस कनैक्षन, बैंक लोन, या स्वास्थ खर्च की सुविधाए अथवा राशन की सुविधा हो या निजी घर पाने की सुविधाए मेरा मतलबए कोई भी सरकारी सुविधा मध्यम वर्गीय सवर्णों के लिए नहीं है। सभी नाकारा एवं पक्षपाती सरकारें इस वर्ग का अनपढ, रोजगारहीन, गृह हीन, भूख से बिलबिलाते हुए और बीमारियों से पीढित हो कर तिल तिल कर मरना देखना चाहती हैं।

प्रश्न यह उठता है कि मध्यम वर्गीय सवर्ण होने में नयी नस्लों का अपना कितना दोष है? मेरा सोचना है कि इसके लिए हमारी पीढी दोषी है क्योंकि नयी पीढी को हमारे घर में जन्म लेने के लिए हमारी पीढी ने ही मजबूर किया है, वह स्वतः चल कर या पेड़ से टपक कर नहीं आयी। खुशी के जश्न हमारी पीढी ने ही मनाये थे। फिर भी हमारी नस्लें हमारी पीढी के पापों को ढो रही हैं और उफ् तक नहीं कर रहीं हैं। क्यों न कहूँ कि ये उनकी महानता है?

इतनी अधिक पक्षपात पूर्ण सरकारी नीति और नीयत के बाद भी यदि कोई मध्यम वर्गीय सवर्ण स्वतः आगे बढने का प्रयास करता है तो उसके लिए आरक्षण, और आधुनिक एस.सी. और एस.टी. एक्ट जैसे धार-दार हथियार हैं जिनके माध्यम से उसका मार्ग अवरुद्ध किया जाता है। यह किसी दल विशेष की बात नहीं है सभी दल एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। प्रत्येक आने वाली सरकार यह सिद्ध करना चाहती हैं कि वे मध्यम वर्गीय सवर्णों का खून चूसने में पिछली सरकारों की तुलना में चैम्पियन आफ चैम्पियंस है। एस.सी. और एस.टी. प्रत्येक बार की भांति इस बार भी चुनाव आते ही वे झूठे और मनभावन सपने दिखाते हैं और हम फिसल जाते है। इस प्रकार फिर से वे राजनीतिक दल मध्यम वर्गीय सवर्णों के वोटों के बल पर जीत कर सरकार बनाते हैं और फिर से पुराने खेल में सम्मिलित हो जाते हैं।

 

गहराई से सोचिये! और गहराई से मनन कीजिए कि इस बार उन्हें वोट क्यों कर दिया जाय। मुझे पता है कि कई लोग मेरे मत से सहमत नहीं होंगे, फिर भी मेरा निवेदन यही है कि जब तक कोई ठोस विकल्प सामने न आ जाय तब तक-

‘वोट फार नोटा’

विचारिये! कितना खूंखार मंजर और भयावह भविष्य होगा। आज की परिस्थितियों को देख कर मुझे ऐसा आभास होने लगा है कि वर्तमान परिदृश्य में नयी पीढी भले ही कहे कि भारत वर्ष मेरा है लेकिन भारत माता अपने लाल को गले लगाने के लिए तैयार नहीं होगी। अपने ही देश में वह अनजाना, बेगाना और शरणार्थियों की भांति अपनी मौत की प्रतीक्षा करेगा। तनिक प्रतिकार करने पर वह बाकी जीवन जेल में काटेगा। भूल जाओ कि यहाँ मध्यम वर्गीय सवर्ण को कोई न्याय मिलेगा।

इसका कारण है हमारी अनेकता। तब पुरानी पीढी से नयी नस्ल का यही सवाल है, वह समय कब आयेगा? क्या समय समय से आ जायेगा? या धन, दौलत, मान, सम्मान, माँ, बहन और बेटियां सब कुछ लुट और मिट जाने के बाद आयेगा, जब सभी सवर्ण एक साथ मिलकर खडे़ होंगे। सवर्ण एकता जिन्दाबाद का शंखनाद करते हुए पूरी ताकत से एक साथ व्यवस्था परिवर्तन का बिगुल फूंकेंगे।

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