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हर रोज सडक पर जिंदगी या तो जा रही है या घिसट रही है। सडक दुर्घटनाओं मे लगातार इजाफा हो रहा है। भले ही संसाधन बढ रहे है लेकिन जान जाने की तादात में कमी नहीं हो रही। वैसे लोगों को सुरक्षित यात्रा करने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास जरुर किए जा रहे हैं लेकिन वह कितना कारगर है । यह कहना कठिन है। नवंबर माह में हर साल जिंदगी बचाने के लिए जददोजहद की जाती है,वह अब भी जारी है। काश यह प्रयास सालों साल चलता तो शायद कुछ न कुछ जरूर सकारात्मक प्रभाव पडता।
भारत में सडक दुर्घटना से मरने वालो की संख्या हजारों में नहीं बल्कि लाख में है। अन्य तरह के अपराध से लोगों की जान कम जाती है लेकिन सडक पर तेेज रफतार या बेढंगे वाहन चलाने से लोगों की जान चली जा रही है। यातायात के नियम बने तो जरुर हैं लेकिन अमल न तो सरकारी तंत्र के जिम्मेदार कराते हैं और न ही जिम्मेदार नागरकि ही करने की कोशिश करते है। सडक पर जिंदगी बचाने की जददोजहद चल रही है। इसमें सभी को सजग होना पडेगात्र इसके साथ ही दुर्घटनाओं को रोकने के लिए प्रशिक्षण कैंप का भी इंतजाम करना होगा। जिससे कि अप्रशिशित और यातायात कानून की जानकारी न रखने वालों को सचेत किया जा सके।
भारत में बढ रहा मौत का ग्राफ
आंकडों पर गौर करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ ने दुनिया भर में सड़क सुरक्षा को लेकर एक नई रिपोर्ट निकाली है। रिपोर्ट के मुताबिक तेज़ रफ्तार से गाड़ी चलाना, हेल्मट या सीट बेल्ट का इस्तेमाल न करना और बच्चों को नियंत्रण में न रखना दुर्घटना का कारण बनते हैं।विश्व भर में हर घंटे, 25 की उम्र से कम लगभग 40 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पांच से लेकर 29 वर्ष के लोगों में मौत का यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है।
हर घंटे मौत का पैगाम – 2009 में भारत में हर घंटे 14 लोग सड़क हादसों में मारे गए। 2008 में यह आंकड़ा 13 था। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो एनसीआरबी के मुताबिक सड़क हादसों में मरने वाले लोगों की संख्या सालाना 1,35000 पार कर चुकी है।
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