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भारत नेपाल सीमा का एक ऐसा जिला है। जहां सैकडों गांव ऐसे हैं,वहां के बूढे ही नही बल्िकि किशोर अभी तक रेलगाडी देखने का सपना सजोए हैं। बूढों का हाल यह है कि वह उम्र के अंतिम पडाव पर हैं लेकिन अभी तक न तो रेल देखी और न हीं उन्हें उम्मीद ही दिखती है। किशोरों का हाल यह है कि करीब पंद्रह साल के हो गये, पर रेलगाडी कैसी होती है। इसका अनुभव नहीं है। कोई कहता है कि उडती है तो कोई जमीन पर चलने की कल्पना पर आधारित बात करता है, पर एक बात तो जाहिर है कि सबके मन में रेलगाडी को देखने के साथ उस पर बैठने का सपना है। वह सपना कब पूरा होगा इसका कोई भरोसा नहीं है।
यह जगह है यूपी का महराजगंज जिला। जहां के कई गांव में मै दौरा किया तो यहां के लोगों की तस्वीर कुछ इस तरह की दिखाई दी। वह गांव है गबडुआा, बागापार, चिउरहा आदि। जहां के तमाम लोग रेल पर बैठे नहीं हैं। यह पिछडापन का उदाहरण है, जहां आजादी के बाद का विकास की तस्वीर को दर्शाने के लिए काफी है।
यह जगह है यूपी का महराजगंज जिला। जहां रेलगाडी आधा से ज्यादा हिसा को टच नहीं करती।
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