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….फिर क्या तूने ख़ाक किया

vevaak mahesh
vevaak mahesh
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=== फिर क्या तूने खाक किया===

दुनिया में आकर के वंदे,

अगर ना कुछ नापाक किया,

हँसते हुए को नहीं रुलाया,

फिरक्या तूने खाक किया….

मई जून की गर्मी हो और,

तपिश भयंकर हो रही हो,

दूभर हो जब सांस का लेना,

तन की खाल झुलस रही हो,

502 की बीड़ी पीकर,

ना धूँये का ताप दिया,

नहीं फेंफडा चाक किया तो,

फिर क्या तूने खाक किया…..

पड़े हुए सब मस्त नींद में,

ले रहे हों सब खर्राटे,

गहरे शांति के समुद्र में,

भर रहे हो सब सर्राटे,

घट में डाल के मदिराचुल्लू,

ना गलियों में रॉक किया,

नहीं सुनाए ईश्लोक सुनाए पड़ोसी को,

फिर क्या तूने खाक किया….

सुंदर बीबी बसी हो दिल में,

बच्चे हों जवान हो घर में,

बाल रंगा कर मूंछ कटा कर ,

बूड़ो बैल मिले खर में ,

अपने घर में आग लगा कर,

ना पर औरत का जाप किया,

लड़की पड़ोस की छेड़ी तो,

फिर क्या तूने खाक किया…

करो साहब की चमचागिरी ,

आगे पीछे लगे रहो,

गलती गर हो जाए किसी से,

बढ़ा चढ़ा कर खूब कहो,

भर भर कर कान बॉस के,

उसका इंक्रीमेंट ना हाफ किया,

ना उसको लताड़ पड़वाई ,

फिर क्या तूने खाक किया….

शादी लायक हो पड़ोस में,

गबरू जवान कोई छोरा,

रिश्ता होने वाला हो तो ,

तुम जरूर लगाओ रोरा,

तिल का ताड़ वना कर ,

ना उसका पत्ता साफ किया,

ना खाई उसकी चुगली तो ,

फिर क्या तुमने खाक किया…

‘प्रेम’ से मैया बाप ने तुमको ,

खिला पिला कर बड़ा किया,

जा जा कर मन्नत मांगी,

तब कहीं तुम्हारा दर्श किया,

आँखों के तारे ना ही उनका,

जीवन ना वरवाद किया,

नहीं रुलाया नौ नौ आँसू,

फिर क्या तुमने खाक किया….

हँसते हुए को नहीं रुलाया ,

फिर क्या तुमने खाक किया….

+++++++महेश चंद्र शर्मा ‘प्रेम’

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