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ब्लू व्हेल गेम बना मौत का अड्डा

aandolan
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blue whale game

दुनिया इक्कीसवीं सदी में सांस ले रही है। संचार और प्रौद्योगिकी इस युग में सभी को अपने अगोश में समाहित करने को बेताब दिख रही है। यह युग भले ही विज्ञान का है, लेकिन अगर वही विज्ञान अभिशाप साबित होने लगे, तो उससे सचेत रहने की नितांत आवश्यकता है। आज सोशल नेटवर्किंग का जमाना है। चीजें सेकेंडों में एक स्थान से दूसरे छोर तक पहुंच जाती हैं। यही हुआ है ऑनलाइन गेम्‍स के साथ। जो ईजाद तो विदेशों में हो रहे है, लेकिन अपनी पैठ सम्पूर्ण विश्वपटल पर बना रही है।

ताजा वाकया हमारे देश में घटित हुआ है। ब्लू व्हेल नामक ऑनलाइन गेम खेलने की वजह से एक किशोर की जिंदगी खत्‍म हो गई है। संख्या के आंकड़े में यह बड़ी छोटी मामूल पड़ सकती है। परन्तु इस ऑनलाइन गेम का उद्देश्य जो पता चलता है, उसकी स्थिति समाज को डरावनी लगनी चाहिए। जिस समाज ने आधुनिकता और पश्चिमी सभ्यता से पीड़ित होने के बावजूद आपत्तिजनक सामग्री के प्रकाशन और किशोरों के जीवन पर गलत प्रभाव डालने वाली फिल्मों के खिलाफ कड़े कानूनी प्रावधान की वकालत की है, वह बच्चों को जान देने के लिए उकसाने वाले इस तरह के ऑनलाइन गेम के प्रति सजग और सचेत नहीं है। यह आने वाले समय में समाज के लिए घातक और खतरनाक परिणाम देने वाले साबित हो सकते हैं। यह गैरजिम्मेदाराना लगता है।

मुंबई में बीते दिनों एक टीनएजर बच्चे की मौत ब्लू व्हेल नामक गेम के प्रभाव में आकर हो जाती है। बावजूद इसके देश में इस आपत्तिजनक और अवांछित गेम के प्रति आवाज नहीं उठती। यह साबित करता है कि समाज में कहीं न कहीं समय की कमी अपने पाल्य के लिए साफ झलक रही है। नौकरी-पेशा की भागदौड़ के चक्कर में जिस तरीके से माता-पिता और संरक्षक अपने बच्चों के प्रति लापरवाही भरा रवैया अपना रहे हैं, उसके परिणाम तो घातक एक न एक दिन दिखने ही हैं। चाहे वह आज हो या कल।

आज इस खतरनाक खेल से एक बच्चे की जान गई है, कल और कोई शिकार होगा। इसका कारण बच्चों के हाथ में झुनझुने के रूप में मोबाइल थमा देना है। नवजात शिशु को रोना नहीं आया कि आज हमारा समाज उसके कान में ईयरफोन ठूंसकर खुश करना चाहता है। उसी का कारण है कि वर्तमान समय में देश के प्राचीन खेलों के प्रति युवाओं की पहुंच कम हो रही है। मैदानों में बच्चों की चहल-कदमी न के बराबर दिख रही है। इनडोर गेम्स की फितरत में बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास भी अवरुद्ध हो गया है।

ब्लू व्हेल गेम के प्रभाव से यह समझा जा सकता है कि किशोंरों का मन कितना नाजुक और संवेदनशील होता है। क्योंकि इस गेम से बच्चों का दिमाग इतना प्रभावित होने लगा है कि वे आत्महत्या के प्रति अग्रसर होने लगे हैं, जो समाज के सामने खतरे की घंटी है। सोशल नेटवर्किंग की वजह से मुसीबतों का जाल काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। सिक्के के दो पहलू होते हैं, जिसमें से मोबाइल-फोन के गलत पहलू तेजी से पांव पसार रहे हैं। तभी तो देश और दुनिया में जहां आपत्तिजनक सामग्रियों के कारण युवाओं पर गलत प्रभाव पड़ना हावी हुआ, तो उस पर रोक की आवाज तेज हुई। उसके बाद सेल्फी रूपी बीमारी भी समाज में अपने खतरनाक इरादे जगजाहिर कर चुकी है।

ब्लू व्हेल गेम के खतरनाक होने की शत-प्रतिशत पुष्टि हो जाती है। जब यह पता चलता है कि गेम से अभी तक विश्व भर में ढाई सौ से अधिक युवाओं को अपनी जान गवांनी पड़ी है, जो समाज को स्तब्ध और सचेत कराने वाला है, तो फिर समाज कुछ सीखने को तत्पर क्‍यों नहीं है। यह आने वाले समय में खतरे के प्रति अगाह कर रहा है। सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि जिस फिलिप बुदेकिन नामक व्यक्ति ने इस गेम को तैयार किया है। वह साइकोलॉजी का विद्यार्थी रह चुका है। उसके अनुसार उसके शिकार युवा जैविक कूड़ा हैं और समाज में उनका कोई अर्थ नहीं। उसकी ऐसी बातों से यह उम्मीद की जा सकती है कि उसके इरादे समाज के प्रति कितने खतरनाक हैं और वह समाज के लिए कितना बड़ा अपराधी है।

मनप्रीत ने छत से छलांग लगाने के दौरान आखिरी फोटो खींचकर जो मैसेज भेजा कि यह तस्वीर आखिरी तस्वीर होगी, यह समाज को झकझोरने वाली तस्वीर है। यह सोचने पर विवश करती है कि उसके दिमाग पर उस ऑनलाइन गेम का क्या असर हुआ होगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ब्लू व्हेल गेम का एडमिन पहले ऑनलाइन हैंकिग के द्वारा बच्चों की जानकारी इकट्ठा करता है। फिर वह ऐसे बच्चों को अपना शिकार बनाता है, जो समाज से अलग-थलग हैं। तो ऐसे में समाज में सुधार की दरकार है, क्योंकि जिंदगी की भागदौड़ में बच्चे परिवार और समाज से दूर होते जा रहे हैं। इस ओर समाज और परिवार को ध्यान देना होगा। इस गेम को खेलने वाला नवयुवक बीच में गेम को छोड़ नहीं सकता, नहीं तो उसके साथ अनहोनी की धमकी मिलती है। यानि यह गेम समाज के लिए खतरा उत्पन्न करने वाला है।

खेल के नाम पर यह समाज के लिए नासूर है। इस गेम ने युवाओं को सम्पूर्ण विश्व भर में अपनी जद में लेना शुरू कर दिया है। इसका पता इसी से चलता है कि इस ऑनलाइन गेम की चपेट में सिर्फ रूस के 130 से अधिक किशोर शिकार हो चुके हैं। इसके अलावा अमेरिका और पाकिस्तान समेत विश्व के उन्नीस देशों के किशोर इस गेम के शिकार हो चुके हैं। 2013 में इस गेम को बनाने वाला फिलिप इस वक्त जेल में है। इस गेम के तहत प्रत्येक टास्क को पूरा करने के बाद हाथ पर एक कट करने के लिए प्रेरित किया जाता है। इसके साथ टास्क के आखिरी दिन हाथ पर ब्लेड से एफ-57 उकेरकर फोटो भेजने को कहा जाता है। जिसके साथ-साथ धीरे-धीरे हाथ पर व्हेल की आकृति उभरकर आती है। पचास दिनों तक चलने वाले इस गेम को अगर स्काइप द्वारा कंट्रोल किया जाता है, तो यह विश्व जगत में खेल के नाम पर एक साजिश रची जा रही है, जिसका दोषी फिलिप है, जो इसका एडमिन है। ऐसा शख्स समाज और विश्व के लिए खतरा है। इससे निपटने के लिए सार्थक प्रयास और कड़े प्रावधान होने चाहिए।

दुनिया में ऐसी लोगों की कमी नहीं है, जिन्‍होंने समाज और विश्व के लिए गलत तरीकों को ईजाद किया हो, मात्र निजीस्वार्थ और अपने शौक की पूर्ति के लिए। अब वर्तमान दौर में अगर ऑनलाइन गेम ब्लू व्हेल के जरिए अपनी सनक को पूरी करने का तरीका ईजाद किया जा रहा है, तो उस पर तत्काल प्रभाव से लगाम लगनी चाहिए। इसके साथ फिलिप जैसे घृणित मानसिकता के पुजारियों की समाज में कोई जरूरत नहीं है। समाज को यह समझना होगा। आज के परिवेश में देश-दुनिया में ऑनलाइन गेम और वीडियो गेमों की लंबी फेहरिस्त है। इनमें कुछ बच्चों के दिमाग को विकसित करने वाले भी हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। इसी कारणवश शायद हमारे समाज और विश्व परिदृश्य ने इन गेमों की तरफ सकल निगरानी तंत्र विकसित करना उचित नहीं समझा है। मगर अब जब ब्लू व्हेल की चपेट में किशोर तेजी से आ रहे हैं और ऐसे गेमों का उद्देश्य कुछ लोगों का निजी मकसद बन गया है, तो समाज और व्यवस्था को इन गेमों के प्रति मजबूत तंत्र और व्यवस्था बनाने की तत्काल जरूरत महसूस होनी चाहिए। अन्‍यथा आज का मनप्रीत कल और कोई बनकर ब्लू व्हेल गेम का शिकार होगा।

इसके साथ परिवार के सदस्यों माता-पिता और संरक्षकों को भी अपनी बच्चों की जिम्मेदारियों के प्रति सजग और नियमित होना पड़ेगा। परिवारवालों को समझना होगा कि अपने किशोरों को मोबाइल-फोन तो दें, लेकिन निगरानी जरूर रखें कि कौन सा ऑनलाइन गेम खेल रहा है और उसके क्या नुकसान व फायदे हो सकते हैं। जिंदगी आज के वैश्विक युग में भले ही काफी तेज भाग रही है, लेकिन अपने पाल्य के प्रति भी परिवारवालों को सजग होना पडेगा। तभी वे अपने युवा और किशोरों को ब्लू व्हेल जैसी बड़ी त्रासदी और मानसिक बीमारी से बचा सकते हैं। इसके इतर अब जब सोशल नेटवर्किंग साइट्स और अन्य संचार प्रौद्योगिकी के साधनों का प्रयोग व्यक्तिगत रूप से अपने किसी खास मकसद और इच्छापूर्ति के लिए किया जाने लगा है, जो समाज, विश्व और सामाजिकता के लिहाज से उचित नहीं है। उस दौर में सोशल साइट्स के लिए निगरानी तंत्र को काफी मजबूत करने की ओर कदम उठाना चाहिए। ब्लू व्हेल जैसे समाज के लिए नासूर बनने वाले गेमों की गहन जांच-पड़ताल के बाद ही अनुमति देनी चाहिए। जिससे समाज और विश्व को कोई खतरा न हो।

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