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अपने ही मोक्ष की कामना कर रही मोक्षदायिनी गंगा

aandolan
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सेंट्रल पाॅल्यूशन कन्ट्रोल बोर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा सफाई पर विभिन्न परियोजनाओं के मद में लगभग 20 हजार करोड़ रुपये पानी की तरह बहाए जा चुके हैं। फिर आज क्या हम इस स्थिति में पहुंचे हैं कि मोक्षदायिनी गंगा को स्वच्छ नदी का दर्ज दे सकते हैं? बिडंबना यह है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण जैसी संस्था गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए समय-समय पर चिंतित और प्रयासरत है। दुर्भाग्यवश सामाजिक और राजनीतिक सरोकार की कमी की वजह से मोक्षदायिनी गंगा आज अपने लिए मोक्ष प्राप्ति की कामना करती हुई नजर आती है।

ganga

कागजी आंकड़ों पर भी आज तक हमारी सरकारें यह बताने को तैयार नहीं हैं कि गंगा कितनी स्वच्छ और निर्मल हुई? गंगा पुनरुद्धार मंत्रालय का गठन बस दिखावा और छलावा ही साबित हो रहा है। सबसे बड़ी बात, जब तक गंगा की सफाई को लेकर सामाजिक सरोकारिता से जुड़े लोग और सामान्य जनमानस कदम उठाता प्रतीत नहीं होगा, गंगा को मोक्ष नहीं प्राप्त हो सकता है।

एक बार पुनः मोक्षदायनी गंगा को निर्मल बनाने के लिए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने फैसला लिया है कि गंगा में हरिद्वार से उन्नाव के बीच कचरा फेंकने वालों पर पचास हजार का जुर्माना लगाया जाए। मगर सोचने योग्य तथ्य यह है कि जुर्माना लगाने का यह खेल नया तो नहीं है। जुर्माना पहले से भी लगता अाया है, लेकिन कोई सरकार या संस्था यह जहमत उठाती नहीं दिखी। कितना जुर्माना वसूला गया और इस कदम से गंगा स्वच्छ कितनी हुई, यह आज तक पता नहीं चला।
नदियों पर हमारा कल निर्भर करता है। इसके प्रति हमारे समाज में धीरे-धीरे जागरुकता फैल रही है। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चिंता व्यक्त की थी, जो यह दिखाता है कि केंद्र सरकार नदियों के संरक्षण की दिशा में सचेत दिख रही है। नदियों के प्रति हमें और हमारे समाज को ही नहीं, बल्कि कल-कारखाने को संचालित करने वालों को भी स्वच्छ बनाए रखने की दिशा में कार्य करना होगा। कुछ स्वार्थ पूर्ति की खातिर आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय करना कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता। नर्मदा के उद्गम स्थल से बीते दिनों देश के प्रधानमंत्री ने नदियों के भविष्य को लेकर जो चिंता की लकीर खींची थी, उससे लगता है कि अब वक्त की मांग है कि समाज द्वारा नदियों को बचाने के लिए सार्थक विचार-विमर्श हो।

कुछ वर्ष पूर्व केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने अध्ययन में कहा था कि देश के लगभग 900 से ज्यादा कस्बों और शहरों का अमूमन 70 फीसदी गंदा पानी पेयजल की प्रमुख स्रोत नदियों में बिना शोधन के ही छोड़ दिया जाता है। यह देश का दुर्भाग्य है कि देश आने वाले समय की चिंता छोड़कर मात्र वर्तमान दौर की लड़ाई में आंखें मूंदकर आगे बढ़ रहा है। सबसे बड़े स्तर पर कारखाने और मिल नदियों की जान के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। यह हमारे समाज के समक्ष विडंबना नहीं तो क्या है कि जिन नदियों को हम मां आदि का दर्जा देते हैं, उसे ही हमने मल-मूत्र विसर्जन का अड्डा बनाकर रख दिया है।

नदियों में सीवेज छोड़ने की वजह से नदियां आज नाले के रूप में रूपांतरित होती जा रही हैं। अगर देश की 70 फीसदी नदियां प्रदूषित हैं और मरने के मुहाने पर खड़ी हैं, तो इनको बचाने के लिए धरती पर एक बार फिर किसी को भगीरथ बनाना होगा। यह काम हमारे नीति नियंताओं से अच्छा कोई और नहीं कर सकता। जिनको उत्तर प्रदेश की काली, हिंडन, अन्य छोटी नदियों के साथ देश के अन्य भूभागों की नदियों को बचाने के लिए आगे आना होगा। नहीं तो आने वाले वक्त में स्वच्छ जल के अभाव या यूं कहें कि जल संकट जो प्रति वर्ष बढ़ता जा रहा है, उसके कारण मानव जीवन अधर में लटक जाएगा।

एक बार फिर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का यह फैसला काफी सराहनीय है कि गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए 100 मीटर के क्षेत्र को नो डेवलपमेंट जोन घोषित कर दिया है। यह घोषणा तब और अधिक कारगर सिद्ध होगी, जब स्थानीय प्रशासन और सरकारी रहनुमाई तंत्र के लोग अपने हितों को त्याग दें। इसलिए सर्वप्रथम आवश्यकता है कि सामाजिक सरोकार की दृष्टि को पैदा करना, जो धीेरे-धीरे समाज से स्वहित के कारण गुम होती जा रही है।

इसके साथ हरिद्वार से उन्नाव के मध्य गंगा नदी के किनारे 500 मीटर तक कचरा फेंकने पर 50 हजार का जुर्माना लगाने की बात कही गई है, लेकिन हमारे देश में अगर सिर्फ फरमान जारी होने पर लोग सुधर जाते, तो आज देश की स्थिति कुछ ओर होती। इसलिए सर्वप्रथम समाज के लोगों को अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति वफादार होना पड़ेगा, तभी कुछ सकारात्मक पहल अंजाम तक पहुच सकती है।
सरकारें नदियों की स्वच्छता और संरक्षण पर पानी की तरह करोड़ों फूंक देती हैं, लेकिन होता वही है ढाक के तीन पात। इस नीति में मोदी के दिए गए वक्तव्य के बाद बदलाव होना चाहिए। प्रधानमंत्री जी ने बीते दिनों कहा था कि नक्शे पर निशान हैं, लेकिन पानी का नामोनिशान नहीं है। इसके साथ अब हरित प्राधिकरण के जुर्माना लगाने की नियत के बाद नदियों की स्थिति में बदलाव होना चाहिए।

केरल में एक नदी है, भारत पूजा। इसका जीवन काल आगे होगा यह निश्चित नहीं। इसका कारण नदियों की रक्षा का तत्व गायब होना है। इस तथ्य से साफ है कि देश में नदियों के संरक्षण के प्रति माहौल बन रहा है। बस इसे जनांदोलन बनाना होगा। इसके साथ नीतिनियंताओं को देखना होगा कि नदियों को बचाने की नीति में कहां चूक हो रही है। क्या उपाय हो कि नदी नाला न बनें। अगर नदियों में औद्योगिक कचरे और मल-मूत्र छोड़ना फौरी रूप से बंद करवा दें, तो कुछ हद तक नदियों की स्थिति बदल जाएगी।

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